Dinesh Divakar Stranger

Romance Horror

5.0  

Dinesh Divakar Stranger

Romance Horror

दिव्य दृष्टि- एक रहस्य 2

दिव्य दृष्टि- एक रहस्य 2

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अब तक प्रेम बस में मरने से बाल बाल बचा और ऑफ़िस में उसकी मुलाकात जेसिका से हुई और अब उसके ऊपर एक और मुसीबत आ गई है, उसके ऊपर पंखा गिरने वाला है और प्रेम को अनजान शक्ति कुर्सी पर बांध रखा है तभी पंखा नीचे गिरता है।

अब आगे..


पंखा नीचे गिरने वाला था मैं मदद के लिए चिल्लाता रहा लेकिन मेरी आवाज़ को किसी ने नहीं सुना। तभी पंखा नीचे गिरने लगा मैं डर कर अपने आँखें बंद कर लिया उतने में किसी ने कुर्सी को धकेला और कुर्सी दूर जाकर रुका मैं बहुत डर गया। "प्रेम प्रेम उठ जा क्या बड़बड़ा रहा है"- रोहन ने मुझे जगाते हुए बोला तू ठीक तो है ना ? मैं आश्चर्य से उठकर पंखे की तरफ देखने लगा, पंखा सही सलामत घूम रहा है। मैं पसीने से तर-बतर हो गया मैंने पूछा- "क्या यह सपना था ?"

रोहन- "हाँ तू सपना देख रहा था और मदद के लिए चिल्ला रहा था जब मैं तेरी आवाज़ सुना तो तेरे पास आया। लगता है तू थक गया है तू यहीं रुक मैं तेरे लिए पानी लेकर आता हूं।" रोहन पानी लेने चला जाता है, मुझे अब भी लग रहा था कि वह सपना नहीं सच है और अगर यह सपना है तो मेरे ही साथ यह सब क्यों हो रहा है। तभी मैंने महसूस किया की मैं सचमुच कुर्सी से चिपक गया हूं, ऐसा लग रहा है मानो किसी ने मुझे उस कुर्सी से बांध दिया है और मैं उस कुर्सी से निकलने की नाकाम कोशिश कर रहा हूं। तभी मुझे पंखे की कीट कीट के आवाज़ सुनाई दिया, पंखे की किले धीरे धीरे निकल रही है मैं मदद के लिए चिल्लाने लगा और उस कुर्सी से निकलने की कोशिश करता रहा, लेकिन मेरी कोशिशें नाकामयाब हो रहा था। पंखा अचानक दीवार से छूट कर मेरे उपर गिरने लगा मैं डर के मारे अपने दोनों आँखें बंद कर लिया तभी किसी ने कुर्सी को दूर धकेल दिया कुर्सी कुछ दूर जा कर रूका।


मैं आँखें खोल कर देखा तो पंखा ठीक उसी जगह गिरा है जहां मैं बैठा था अगर एक सेकण्ड की भी देरी हो जाती तो ना जाने मेरे साथ क्या हो जाता। अरे, लेकिन मेरे कुर्सी को धक्का किसने दिया आसपास तो कोई भी नहीं दिख रहा ? मैं डर के मारे पसीने से तर-बतर हो गया और तभी मैंने अपने आप को उस कुर्सी से मुक्त पाया तभी रोहन पानी लेकर आया और मुझे इस हालत में देख कर बोला- "क्या हुआ प्रेम तू इतना डरा हुआ क्यो है और, और ये पंखा कैसे गिर गया ?" प्रेम ने रोहन को सारी बात बताई और बोला- "देखा अब तुझे यकीन हुआ जो भी मैं सपने में देख रहा हूं वो सब सच हो रहा है लेकिन कोई तो है जो मेरे जान की रक्षा कर रहा है।"

रोहन- "प्रेम देख हो सकता है ये सब सच हो लेकिन ये भी तो हो सकता है कि ये सब सिर्फ एक इत्तेफ़ाक हो और देख ये पंखे में जंग लगा हुआ है इसलिए गिरा गया हो। तू इस बात पर ज्यादा ध्यान मत दे तू घर जाकर आराम कर सब ठीक हो जाएगा। हम इस बारे में बाद में सोचेंगे।"

प्रेम- "हूं।" यह कहकर प्रेम घर की तरफ चल पड़ता है। घर पहुँचकर खाना वाना खाकर आराम करने के लिए बिस्तर पर लेट जाता है। रात के बारह बज रहे थे धीरे धीरे प्रेम के कमरे में गंदी बदबू फैलने लगता है। उस बदबू से सांस लेना भी मुश्किल हो रहा था।

प्रेम- "ये बदबू कहाँ से आ रहा है और यह तो बढ़ता ही जा रहा है अगर मैं यहां रूका तो इस बदबू से मर जाऊंगा।" प्रेम अपने कमरे से निकल कर बरामदे में आ जाता है कुछ देर टहलने के बाद वह वापस अपने कमरे में आ जाता है। वहां जाकर देखता है तो बदबू का नामो निशान नहीं बल्कि फूलों की प्यारी प्यारी खुशबू आ रही है।

प्रेम- "अरे वाह क्या खुशबू है लेकिन अभी तो कितनी गंदी बदबू फैली थी और अचानक फूलों की खुशबू ?" प्रेम थोड़े ही दिन देर में नींद के आगोश में सो जाता है।

सुबह सुबह मम्मी का फोन आया- "बेटा कैसा है तू ? जाने के बाद एक बार भी फोन नहीं लगाया ? सब ठीक तो है ना ?"

प्रेम ने सोचा अगर माँ को अपनी परेशानी बताउंगा तो वो भी खामखाह परेशान हो जाएगी। फिर कभी इसके बारे में बता दूँगा - "नहीं माँ सब ठीक है। काम के वजह से भूल गया था इसलिए आपको फोन नहीं कर पाया।"

माँ - "कोई बात नहीं बेटा तू बस अपना ख्याल रखना इस बार तुम घर आओगे ना तो तेरा ख्याल रखने वाली ढूंढने चलेंगे" ( माँ मुस्कुराते हुए बोली)

प्रेम- "क्या माँ आप भी ना मुझे नहीं करना इतनी जल्दी शादी" ( प्रेम शरमाते हुए बोला)

माँ - "अच्छा मैं भी देखती हूं कैसे नहीं करेगा शादी।"

प्रेम- "अच्छा माँ मुझे अभी आँफिस के लिए लेट हो रहा है मैं आपको बाद में फोन लगाता हूं।"


बात करने के बाद प्रेम नहाने चला जाता है।

नल को आन करके टब में पानी भरने लगता है और पानी भरने तक अपने शरीर में साबुन लगाने लगता है। उसके बाद चेहरे पर साबुन लगाता है और टब के पानी से मुंह धोता है और आगे खोलकर देखता है तो चिल्ला उठता है। वो टब जिसमें पानी भर रहा था उसमें पानी नहीं खून भरा था। जो धीरे धीरे बहकर ज़मीन में गिरने लगा।

प्रेम बाहर जाने के लिए दरवाज़ा खोलने लगा लेकिन दरवाज़ा बाहर से बंद था, इधर खून की धारा बह कर प्रेम के पैरों को छूने लगे। प्रेम ने नल को बंद करने की कोशिश करता रहा लेकिन नल बंद ही नहीं हो रहा था और उससे लगातार खून की धारा निकल रही थी। और पानी बहकर जाने वाली पाइप भी बंद हो चुका था।

प्रेम बस तमाशा देखने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहा था, धीरे धीरे खून की धारा प्रेम के गर्दन तक आ गया, प्रेम लगातार मदद के लिए चिल्लाता रहा, कुछ ही देर में खून प्रेम के सर के उपर तक पहुंच गया, प्रेम सांस नहीं ले पा रहा था और थोड़ी ही देर में प्रेम बेहोश होने लगा। तभी नल अपने आप बंद हो गया और पानी जाने वाली पाइप भी खुल गया, धीरे धीरे वह धार बह गया लेकिन प्रेम वही बेहोश होकर गिर चुका था। थोड़ी देर बाद प्रेम को होश आया तो वहां खून का नामोनिशान नहीं था, टब में पानी भरा था प्रेम हैरान था कि ये सपना था या हकीक़त। अगर वक्त पर पानी जाने वाली नली नहीं खुलता तो उसका जान पक्का चला गया होता। प्रेम धीरे से उठकर दरवाज़े की तरफ बढ़ा, दरवाज़ा खुला था। वह इन सब बातों को सोचते हुए आँफिस पहुंचा।

प्रेम रोहन को सब कुछ बताना चाहता था लेकिन रोहन आज आँफिस आया ही नहीं था। प्रेम अपने कामों में व्यस्त हो गया तभी,

पीछे से एक आवाज़ आयी- "अब प्रेम साहब इतने व्यस्त हो गए हैं कि अपने दोस्तों को भी भूल गए, जेसिका पीछे से बोली।"

प्रेम- "जेसिका तुम, ऐसी कोई बात नहीं है मैं बस थोड़ा उलझन में था इसलिए तुमसे बात नहीं कर पाया, मैं तुम्हें कैसे भुला सकता हूं बताओं कैसी हो ?"

जेसिका- "मैं तो ठीक हूं, तुम बताओ तुम्हारा क्या हाल चाल है ?"

प्रेम- "मैं भी ठीक हूं।"

जेसिका- "अच्छा तो भ‌ई नये नये ट्रान्सफर हुआ है तो पार्टी नहीं दोगे क्या अपने दोस्त को" ( जेसिका हँसते हुए बोली)

प्रेम- "पार्टी क्यो नहीं , बताओ क्या चाहिए ?"

जेसिका- "आज एक न‌ई मूवी आई है" तुब्बाद" वो देखने चले।"

प्रेम- "जो हुकुम मेरे आका" ( प्रेम मुस्कुराते हुए बोला)

जेसिका- "अच्छा जी तो आज शाम को आँफिस के छुट्टी के बाद चलेंगे।"

प्रेम- "ओ.के"


आँफिस के छुट्टी होने पर मैं और जेसिका मूवी देखने चले गए, टिकट लेकर मैं पापकॉर्न और कोल्डड्रिंक लेकर जेसिका के पास आया और पूछा- "और कुछ चाहिए या इतने में चल जाएगा ?"

जेसिका- "अच्छा जी सस्ते में निपटना चाहते हो, चलो अभी तो पहले मूवी देखते हैं फिर आगे का डिसाइड करेंगे।"

प्रेम- "ओ.के. चलो।"

फिल्म शुरू हो गया, मूवी थोड़ी डरावनी थी बीच बीच में जेसिका मेरे हाथों को ज़ोर से पकड़ लेती फिर फिल्म का लास्ट कहानी चल रहा था, जब बहुत सारे राक्षस पैदा होकर खाने कि तरह बढ़ने लगे तभी उनमें से एक मुझे देखने लगा। पहले तो मैंने ध्यान नहीं दिया लेकिन तभी वह राक्षस मेरी ओर दौड़ा और थियेटर से निकल कर मेरे उपर कूद पड़ा और मेरी छाती को फाड़ने लगा।

मैं चिल्ला उठा। तभी जेसिका ने मेरे उपर पानी छिड़का मैं होश में आया। सभी का ध्यान मुझ पर आ गया था। मैंने सब को सॉरी बोला।

जेसिका- "प्रेम प्रेम क्या हुआ तुम ठीक हो ना ?"

प्रेम- "हाँ मैं ठीक हूं अचानक कुछ सोच में पड़ गया था।" ( प्रेम जेसिका से बहाना बनाते हुए बोला)

फिल्म खत्म हो गया

जेसिका- "चलो अब चलते हैं ?"

प्रेम- "ठीक है चलो।"

रास्ते में जेसिका मुझसे बहुत घुल मिल कर बातें करने लगी मुझे भी उसकी बातें बहुत अच्छी लगती थी।

प्रेम- "अच्छा जेसिका कल मिलते हैं।"

जेसिका- "अच्छा ठीक है, बाय अपना ख्याल रखना शुभरात्रि।"

मैं घर की तरफ बढ़ने लगा, लेकिन मुझे जेसिका की याद बार बार आ रही थी जब मैं उसके साथ होता हूं तो मुझे किसी बात कि चिंता नहीं रहती। ऐसा लग रहा है जैसे मैं उससे प्यार करने लगा हूँ।

लेकिन क्या वो भी मुझसे प्यार करती है उसके हाव भाव से तो यही लगता है कि वो भी मुझसे प्यार करती है।

यह सोचते सोचते मैं घर पहुंच गया। घर के अंदर जाकर फिर वही डरावना पल। घर के अंदर का माहौल एकदम डरावना था मेरे अंदर प्रवेश होते ही दरवाज़ा बंद हो गया और पूरे घर में गंदी बदबू फैल गई तभी मेरे से किसी के गाने की आवाजें आ रही है। वह बहुत ही डरावना गा रही थी-

अंजान है कोई, बदनाम है कोई,

किसको खबर कौन है वो

अंजान है कोई..


मैं हिम्मत करके बेडरूम की तरफ बढ़ा, कमरे का दरवाज़ा खोलकर अंदर देखने लगा। अंदर बेड पर एक परछाईं गा रही थी। मैंने आवाज़ लगाई- "कौन कौन है वहां ?" मेरे आवाज़ लगाते ही गाना बंद हो गया और वो परछाईं ज़ोर ज़ोर से रोने लगी। फिर एक कुटीर मुस्कान से मुस्कुराते हुए बोली- "कैसे हो प्रेम पहचाना मुझे ?"

मैं डरते हुए बोला- "नहीं कौन हो तुम क्यो मेरे पीछे पड़ी हो क्या चाहती हो।"

"मैं तुम्हारी काल हूँ। जिस तरह मैं तड़प तड़प कर मरी हूं तुम भी वैसे ही मरोगे हा हा हा वो भी तुम्हें बचा नहीं पाएगी हा हा हा।"

मेरे मुंह से आवाज़ ही नहीं निकल रहे थे, मैंने उस परछाईं को छूने के लिए हाथ बढ़ाया तभी ज़ोर से बिजली चमकी और वो परछाईं गायब हो गई।

मैं दरवाज़े की तरफ भागने लगा लेकिन मेरे पहुंचने से पहले दरवाज़ा बंद हो गया। तभी पीछे से कुछ आवाज़ आई। मैं पीछे मुड़कर देखा...

वो अचानक से मेरे पास आई और ग़ायब हो गई लेकिन ऐसा लगा जैसे वो मेरे अंदर समा गई हो। कितना डरावना चेहरा था उसका, लेकिन वह कौन थी ?


तभी मेरे मोबाइल का रिंगटोन बजा, मेरे दोस्त रोहन का फोन था।

रोहन- "क्या हुआ प्रेम सब ठीक तो है ना, आज तुने मुझे दस बार मिस कॉल किया है। मैं काम में व्यस्त था इसलिए तुमसे बात नहीं हो पाया।"

प्रेम- "यार रोहन लगता है अब मेरा आखिरी समय आ गया है वो मुझे मार डालेगी।"

रोहन- "ऐसी बातें क्यो करता है कुछ नहीं होगा तुझे। कौन मारेगा तुझे ?"

प्रेम- "वही जिसकी आवाज़ आती है हर एक्सीडेंट के बाद।"

रोहन- "आवाज़ कैसी आवाज़ ? किसकी आवाज़ ?"

प्रेम- "किसकी आवाज़ में तो पता नहीं लेकिन वह कहती है-

" इस बार तो तुझे इसने बचा लिया लेकिन

अगली बार तू नहीं बचेगा, मैं फिर आऊंगी "


क्रमशः


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