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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Tragedy Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Tragedy Inspirational

दिल ढूंढता है प्यार

दिल ढूंढता है प्यार

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परमपिता परमात्मा का यह संसार बड़ी ही विचित्रताओं से भरा पड़ा है। प्रभु द्वारा सृजित विविध कृतियों विविध प्रकार का विरोधाभास देखने को मिलता है। किसी के पास पेट भरने के लिए भोजन नहीं है तो किसी के पास भोजन का वृहद भंडार होने के बावजूद वह भरपेट नहीं खा सकता क्योंकि ऐसा करने उसके स्वास्थ्य के लिए ख़तरनाक है। कोई अर्थाभाव के कारण जूते नहीं खरीद सकता तो किसी के बेशुमार दौलत है पर वह जूते नहीं खरीद सकता क्योंकि उसके पैर ही नहीं हैं। किसी को बहुत सारी सुख-सुविधाएं उपलब्ध करवाए जाने के बावजूद दुर्बलता से मुक्त नहीं हो पाता है तो कोई रूखी-सूखी रोटी खाकर भी हृष्ट-पुष्ट रहता है। किसी को प्यार-दुलार करने वाले लोगों की बहुत बड़ी संख्या में लोग होते हैं और दूसरी ओर कुछ लोगों की किस्मत में दुत्कार और डांट-फटकार के अलावा और कुछ होता ही नहीं।हम सब इन्हें किस्मत के खेल कहते हैं।


" साहब जी गालियां खाना तो हमारे भाग्य में भगवान ने ही लिख दिया है। शायद ही कोई भी ऐसा दिन बीता हो जिस दिन न खाई हों।जब से होश संभाला तबसे गालियों के साथ अपनी जिंदगी बिता रहा हूं। हमसे प्यार से शायद ही कभी किसी ने बात की हो।आप पहले ऐसे इंसान मिले जिसने मुझे बेटा कहकर बुलाया। सब मुझे छोटू ही कहते हैं।घर से ढाबे पर पहुंचने तक ही मेरा नाम रामू था यह बात केवल यादों में ही रह गई है।""- सोलह साल का युवा रामू बड़ी ही मायूसी के साथ अपने मन दर्द उड़ेल रहा था।


" परचून की दुकान पर तुम काम करने कब आए? "- मैंने रामू से जानना चाहा।


"अभी पंद्रह दिन पहले"- रामू ने संक्षिप्त सा दबाव दे दिया।


आज राशन की दुकान से घर तक सामान छोड़ने रामू हमारे घर तक आया था।राशन की दुकान वाले सेठजी आसपास के क्षेत्र में सामान अधिक होने पर सामान भेजने के लिए दुकान के किसी नौकर को भेज देते थे।इसी क्रम में आज हमारे घर तक सामान भेजने रामू आया था।मुझे उसका सुंदर सा चेहरा बड़ा ही मासूम लग रहा था। मैंने उसे खाने को फल दिए।फल खाने के बाद उसका चेहरा कुछ अधिक ही प्रसन्न नजर आया। मैंने रामू के अतीत का विवरण जानना चाहा।


रामू ने बताया- " मेरी मां तो बचपन में ही गुजर गई थी। मेरे पिता जी ने दूसरी शादी कर ली। मेरी सौतेली मां मुझसे घर का सारा काम मुझसे करवाती थी।जरा सी गलती होने पर पिटाई होना एक आम बात थी। मुझसे सीधे मुंह बात करना है यह शायद उन्हें पता ही नहीं था।मेरे करने लिए उनके पास ढ़ेरों काम थे और देने के लिए भांति-भांति की गालियां जिनमें कुछ मेरी स्वर्गीय मां के हिस्से में भी आ जाती थीं।घर पर मेरे खाने के लिए अक्सर आधा पेट बासी भोजन, ओढ़ने और बिछाने के लिए दो पुराने कम्बल। सौतेली मां के व्यवहार से दुःखी होकर पिताजी से बड़ी विनम्रता से अपनी समस्या बताई तो पिताजी के हाथों और अधिक भयंकर पिटाई हुई। इसके बाद तो सौतेली मां की प्रताड़ना ने और अधिक रिकार्डों को छुआ। उनके सुझाव पर मुझे ढाबे पर नौकरी पर रखवा दिया गया ।मुझे भरपेट भोजन तो मिला और उसके साथ नयी- नयी गालियों का स्वाद भी।जो ढाबे के मालिक के अलावा ढावे में बहुत से लोगों के अस्वस्थ दिमाग की कृति थीं।ढावे के बाद इस राशन तक यह गालियों और अपमान का सिलसिला लगातार जारी है।"

रामू की यह कहानी सुनकर यही लगा कि उसका "दिल ढूंढता है प्यार....जिसे अब तक न दे सका ये बेदर्दी संसार..."


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