दीर्घकालव्यापी को नमन
दीर्घकालव्यापी को नमन


"लगता है प्रलय करीब ही है?" कल्पना ने कहा।
"तुम्हें कैसे आभास हो रहा है?" विभा ने कहा।
"जिधर देखो उधर ही हाहाकार मचा हुआ है, साहित्य जगत हो, चिकित्सा जगत, फ़िल्म जगत..," कल्पना ने कहा।
"तुम यूसुफ खान साहब के बारे में बात कर रही हो न? वे तो बेहद शारीरिक कष्ट में थे।" विभा ने पूछा।
"लोग सवाल कर रहे उन्हें दफनाया जाएगा कि जलाया जाएगा?"
"कुछ देर की प्रतीक्षा नहीं होती न लोगों से...! वक्त पर सभी सवाल हल हो जाते हैं। उपयुक्त समय पर उपयुक्त सवाल ना हो तो तमाचा खाने के लिए तैयार रहना पड़ता है।"
"आज बाबा को भी गए दस दिन हो गए!" कल्पना ने कहा।
"कुछ लोगों को शिकायत है कि बाबा उन्हें अपने फेसबुक सूची में जोड़ने में देरी किये या जोड़े ही नहीं..! बाबा तो अपने फेसबुक टाइमलाइन पर केवल तस्वीर पोस्ट किया करते थे.. और उनका पोस्ट पब्लिक हुआ करता था...,"
"अरे हाँ! इस पर तो मेरा ध्यान ही नहीं गया। नाहक मैं उस बन्दे को समझाने चली गयी।"
"नासमझ को समझाया जा सकता है। अति समझदार से उलझ अपना समय नष्ट करना है।
प्रत्येक जीव प्रायः तीन प्रकार की तृष्णाओं से घिरा होता है, जैसे :-वित्तेषणा, पुत्रेष्णा, लोकेषणा।
वित्तेषणा का अर्थ है धन प्राप्ति की इच्छा। प्रत्येक मनुष्य अपने जीवनोपार्जन के लिए धन का अर्जन करने में लगा होता है। क्योंकि कामनायें अनंत हैं और एक पूरी होने पर दूसरी कामना पैदा हो जाती है मानो क्यूँ में लगी हो , इसलिए संतुष्टि रूठी दिखलाई देती है। और जीव वित्तेषणा के पीछे अपना सारा जीवन बेकार कर जाता है।
पुत्रेष्णा का अर्थ है पुत्र प्राप्ति की इच्छा। हर मनुष्य अपने वंश वृद्धि के लिए एक पुत्र प्राप्ति की इच्छा रखता है। यदि ना हो तो वह अपने को अभागा मानता है और सारा जीवन इसी ग्लानि में बीता देता है। जिन्हें पुत्र है वो सारा जीवन उसके लालन पालन और भरण पोषण की व्यवस्था में बीता देता है। यदि पुत्र किसी गलत आचरण में लिप्त हो गया तो जीवन आत्म ग्लानी में बीता देता है।
लोकेषणा का अर्थ होता है प्रसिद्धि। जब मनुष्य के पार पर्याप्त धन संपदा आ जाती है और उसे कुछ भी पाना शेष नहीं होता है साथ ही पुत्र-पौत्र से भी घर आनंदित होता है तब उसे तीसरे प्रकार की तृष्णा अर्थात लोकेषणा से ग्रसित हो जाता है। जब धन संपदा और पुत्र पौत्र से घर संपन्न हो जाता है तब उसे प्रसिद्धि की इच्छा होने लगती है कि कैसे भी हो लोग उसे जाने। इसके लिए वह अनेक प्रकार के यत्न करता है क़ि कैसे भी हो उसका समाज में मान सम्मान बढ़े। फिर वह किसी के थोड़े से सम्मान से भी गर्व का अनुभव करता है और कोई ज़रा से कुछ गलत बोल दे तो अपना घोर अपमान समझता है।
जिन्हें किसी से बिना मतलब शिकायत होती है न वे लोकेषणा से ग्रसित होते हैं..!"