धरती माँ समझा रही है
धरती माँ समझा रही है


भारत की गंगा यमुना सरस्वती नदियां लॉक डाउन में स्वच्छ जल से खिलखिला रही है जैसे माँ अपने अस्तित्व की सही पहचान दिखा रही है कि देखो मानव ईश्वर का करिश्मा मेरे अस्तित्व को मिटाने वाले मेरे बच्चे जो तुमने मेरे पवित्र जल को दुषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी आज हमारी शक्ति जिसका अस्तित्व तुम मिटा रहे हो आज हमने तुम्हारे जीवन की रक्षा के लिए थोड़े से बदलाव से पूरा विश्व थरथर कांप उठा है कोरोना तो एक बहाना है तुमको यह समझना है कि जीवन अनमोल है अपने फायदे के लिए पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले देखो समझो नेचर का करिश्मा जीवन बदल सकता है धरती माँ की गोद भी सुनी हो जाएगी अगर तुम नही बदले तो तबाही जीवन को बदल देगी यह वक़्त समझने का है तुम मिट भी सकते हो सोचो जब तुम सब मिलकर हमारे वातावरण को दूषित कर रहे हो तब हम कैसे महसूस कर रहे होंगे तुमने जल, थल, वायु सबको दूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
पर्यावरण के गिरते हुए प्रकोप से भी सबक नहीं लिया तो अंतरिक्ष ने धरती पर एक पैगाम पहुचाया कि मैं जीवन दे सकता हूँ तो जीवन ले भी सकता हूँ दर्द(कोरोना) तो एक बहाना है तुम सबको मिलकर यह समझना है जो धरती तुम्हें जीने के लिए दी थी। उसको तुम सब ने मौत की सैइया बना दिया।
आज धरती के महत्व को समझो जीवन कुछ करने के लिए मिला है इसको बर्बाद मत करो (जीओ और जीने दो) तुम यहाँ हमेशा के लिए अमर नहीं हो। जाना तुम सबको है फिर किसके लिए मुझे क्यों तबाह कर रहे हो। तुम्हारी शक्ति क्या मुझसे से अधिक है मैं धरती माँ हूँ हजार गलती माफ़ कर सकती हूँ पर अन्याय सह नहीं सकती आज मेरे निर्मल जल और वातावरण को हानि पहुंचा कर जीवन अपना क्यों बर्बाद कर रहे हो आज जीवन तेरा, कल भी तेरे अपनो का ही तो है। क्या देकर जाएगा अपने आने वाली पीढ़ियों को उनके जीवन का उधार चुकाएगा। मत खेल इस जहां से लौट कर किस रूप में आना पड़ जाएगा तो तू रंग मंच की कठपुतली है। नाटक मुझे ही दिखना है। हिसाब मुझसे ही बनना है।