दगाबाज़ दोस्त
दगाबाज़ दोस्त
परसों मैंने मौलवी से दोस्ती की थी, उसने कहा, "इस्लाम अपना लो।"
मैनें उत्तर दिया, "नहीं।"
वह नाराज़ होकर चिल्लाया, "काफिर, दोज़ख में जायेगा।"
कल मैंने एक पंडित से दोस्ती की तो उसने कहा, "हिंदुत्व अपना लो।"
मेरा उत्तर था, "नहीं।"
वह क्रोधित हो बोला, "नास्तिक, नर्क में जायेगा।"
आज उन दोनों दोस्तों ने पूछा, "अरे भाई, मानते किसको हो?"
मैंने कहा, "मानवता को।"
और दोनों ने एक ही बात कही, " दोस्त तू तो दगाबाज़ निकला।"
मैनें चुप्पी साध ली।
यह देख मेरी अंतरात्मा मुस्कुराने लगी और बोली,
"दगाबाज़! चुप रह कर तूने मुझे ही मार डाला।"