STORYMIRROR

Arun Gode

Romance

4  

Arun Gode

Romance

देहाती इश्क

देहाती इश्क

6 mins
300

एक किसान का देहात में रहनेवाला बेटा पढाई के लिए बडे शहर आता हैं। तन-मन-धन लगाकर अपनी स्नातक तक की पढाई पुरी करता हैं। साथ में शिक्षक बनने के लिए बी।एड की भी पदवी प्राप्त कर लेता हैं। इत्तफाक से उसी शहर के नामांकित स्कूल में शिक्षक बन जाता हैं। आगे पदोन्नती पर उसी स्कूल का मुखियां भी बनता हैं।स्कूल में शिक्षक की सरकारी नौकरी और पिता की गांव में जायजाद, उस में माता-पिता की एक मात्र संतान याने सोने पे सुहागा। कई अच्छे घरनों से शादि के लिए रिश्ते आये थे। कहते हैं, उपर वाला जब देता हैं तब वो छप्पर फाडके देता हैं। वैसा ही इस पुत्र के साथ हुआं था। उसी शहर से एक सरकारी शिक्षीका का शादि प्रस्ताव आया था। लडकी सुंदर, सुशिल और धनवान पिता की कमाऊं लडकी थी। खुशहाल जिंदगी के लिए और क्या चाहिए था ?। उन दोनों की शादि हो गई थी। जिंदगी बहुंत आराम और चैन के साथ गुजर रही थी। शहर में एक बडा सा बंगला भी खडा हो गया था। शहर में शान-शौक्त के कारण इज्जत भी बढ चुकी थी। उन्हे एक सुंदर, होनहार लडकी तथा एक सिधा ,सरल स्नेही और सामान्य बुध्दिमत्तावाला लडका था। लेकिन उस लडके में तकनिकी गुणों का भंडार था।

माता-पिता शिक्षक होने के कारण शुरु से ही घर में पढाई का माहोल बना था।लडकी ने पोस्ट ग्रेजुएशन तक की पढाई कर ली थी।लेकिन लडका जैसे-तैसे मॅट्रिक तक पढ लिया था। उसे आगे पढने में विशेष रुची नहीं थी।इसलिए उसने औद्योगिक संस्थान में से मोटर यांत्रिकी का कोर्स पुरा किया था। सभी प्रकार की घडियां दुरस्त करने का भी हुनर उस में था। माता –पिता संपन्न और उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा होने के कारण वे अपने लडके को कम से कम स्नातक तक की पढाई पुरी करने के लिए अपने लडके प्रोत्साहित कर रहे थे।लेकिन लडके को पढाई में रुची न होने के कारण वे सफल नहीं हो सके थे। जो लडका अभी तक उनके आँखो का तारा था, वह उनके आँखो में खटकने लगा था। उसे बार-बार कोसा जा रहा था। इस कारण वो फिर अपने दादा के गांव चला गया था। जहाँ उसे दाद-दादी का प्यार मिलने लगा था।

अभी उसकी पढी-लिखी बहन शादि के लायक हो गई थी।मात-पिताने एक प्राध्यापक के साथ उसका रिश्ता पक्का कर दिया था। शादि के बाद बहन अपने ससुराल चले गई थी। अभी उसके भाई का भी घर में आना –जाना बंद हो चुका था। उसके पिताने अपना घर का चिराग निकम्मा निकला ये बात अपने दिल पर लगा ली थी। पिता के साथ माता भी उसके साथ खपा हुंई थी। कहते हैं खून पानी से ज्यादा गाढा होता हैं। लेकिन नाराज मात-पिता ने लडकी की अपेक्षा लडके की उपेक्षा करना शुरु कर दी था।इसी दौरान उसके दादा-दादी भी मर चुके थे। अभी वो अकेला हो चुका था। कभी-कभी वो अपने माता को मिल आता था। कभी –कभी पिता के दूर से ही दर्शन हो जाते थे।

उसने खेती के साथ गांव में मोटर रिपेरिंग का भी व्यवसाय शुरु किया था। उसे उसके खेत पर काम करनेवाली लडकी से प्यार हो गया था। लडकी का परिवार अत्यंत गरिब था। रोजगार मिलने पर ही उनके घर में चुल्हा जलता था। अन्यथा जो भी जंगलो में गिल-सुखा मिलता उसी से गुजारा कर लेते थे। लडकी जरुर गरिब घर की थी। लेकिन वो मेहनती और काम-काज चंट थी।उसका रंग निम गोरा या सावला था। लेकिन शरिर से दुबली –पतली,उंची और चेहर से कॉफी आकर्षक दिखती थी। उनके इश्क के चर्चे गांव में मशहुर थे।

किसी रिश्तेदार ने इसकी खबर उसके मात-पिता को दी थी। पहिले ही दिल के जले मात-पिता और भी खपा हो गऐ थे। जब लडके ने शादि का प्रस्ताव अपने मात-पिताके सामने रखा। तो दोनों आग-बबुले हो गये थे। उन्होने रिश्ते के लिए साफ मना कर दिया था।इस तरह उन्होने अपने पांव पर आप कुल्हाडी मार ली थी। लेकिन उनका इश्क तो आसामान छुने लगा था। दोनों सच्चे प्रेमि थे। उसने अपने माता –पिता के इच्छा के विरुध्द जाकर शादि रचाई थी।इसके कारण माता-पिता के अरमानों की होली जल गई थी।पिता ने अपना आपा खो दिया था।दोनों इस हादसे के कारण अपना सा मुँह लेकर रह गयें थे। और वो हमारा लडका नहीं ऐसी भीष्म गर्जना कर डाली थी। बचा-कुचा रिश्ता भी तोड दिया था। पिता ने अपने बच्चे के भावना और मिजाज को अपने अंहकार के कारण समजने की भूल की थी। पिता को अपने अंहकार को खुंटी पर टांग कर उनके सच्चे प्रेम की कद्र करनी चहिए थी। अमिरी –गरिबी तो धूप-छाव के तरह आती-जाती रहती हैं। वो अढाई दिन की बादशाहत होती हैं। मात-पिता वहाँ अंहकार में जलते रहे थे। इधर बेटा-बहु अपनी खुशहाल जिंदगी जी रहे थे। उन्हे भी दो लडके प्रकृति ने दिए थे। अभी उन्हे भी अपने बच्चे के भविष्य के बारे में सोचना पड रहा था। दोनों ने निर्णय लिया था कि जहाँ बच्चों के दादा-दादी रहते हैं। उसी इलाके में किराया का मकान लेगें !।

योजनानुसार शहर में एक दादा-दादी के आस-पास एक किराऐ पर मकान लिया गया था।उसने पहिले वहाँ वॉच रिपेरिंग की दुकान लगाई थी। बच्चों को स्कूल में डाला था।खाली समय में उसने अपनी अर्धांगिनी को घडी दुरस्ती के काम में निपुन कर दिया था। वो अकेले शॉप सभांलती थी। उसने बाद में वहीं मोटर रिपेरिंग की दुकान भी डाली थी। सुबह अपनी खेती बाडी देख आता था। दोपहर मोटर रिपेरिंग का काम करत था। कुछ ही सालों में दोनों के धंदे ने रफतार पकडी ली थी। कॉफी धन की बचत होने से उन्होने वही अपना मकान बना लिया था।शहरवासियों से संपर्क बढने से और स्थानिय रिश्तेदरों के संपार्क में आने से, उस परिवार की अकसार भिंडत अपने माता –पिता से हो जाती थी। दादी अकसर पोता-पोती से मिल लिया करती थी। लेकिन दादा इतना बडा दिल नहीं कर सके थे। वे अपने में नहीं होते थे। इस मुसिबत से छुटकारा पाने के लिए उन्होने अपने आप को चार दिवारों के अंदर आजीवन कैद कर लिया था। वे अंहकार की आग में भस्म हो गये थे। आखिर पुत्र और उसके परिवार को उनका आशीर्वाद नहीं मिला था। फिर भी पुत्र ने रिति-रिवाज से अपने पिता का अंतिम संस्कार किया था क्योंकि अपनी पगडी अपने हाथ में होती हैं। यह पुत्र भली-भाती समझ गया था।

    उसके बहन ने अपनी माता को अपने साथ उसके गांव रहने का प्रस्ताव रखा था। लेकिन माता ने उस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया था। उसने अपने पुत्र के परिवार के साथ रहने की मंनशा व्यक्त की थी। उसके बहुने सांस के प्रस्ताव को अविलंब स्वीकार किया था। सुबह का भुला ,अगर शाम को घर लौट आऐ तो उसे भुला नहीं कहते।

देर आए दुरस्त आए। फिर से परिवार एकत्र हुआं था। अगर दादा अपने पुत्र के पवित्र भावनाओं को समझता। एक आदर्श शिक्षक बनकर वो अगर आर्थीक असमानता की दीवार तोड देता, समाज के सामने एक लाचाए गरिब पिता के बेटी को दिल से लगा के एक आदर्श प्रस्तापित करता। तो उनकी समाज में कितनी प्रशंसा और प्रतिष्ठा बढती। अगर समाज में परिवर्तन लाने की शुरुवात समाज का सक्षम और लिखा ‌‌पढा नागरिक कर तो उसे समाज बहुंत आसानी से पचा लेता हैं। और समाज उसका अनुकरण भी करना आरंभ कर देता हैं।लेकिन दादाजी अपने झुठे अंहकार के कारण ये महान आदर्श प्रस्तापित नहीं कर सके थे। अपने पोत-पोती को अपने प्यार से वंचित रखा था। और् खुद भी उनके प्यार वंचित रहकर दुनिया को छोड गयें थे। अहंकार को अंत में छोडकर वे अंत भला तो सब भला कर सकते थे।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Romance