डरावनी कागज का एक जहाज
डरावनी कागज का एक जहाज


क्या लगता है ,आप लोगो को ..भूत ,प्रेत ,आत्माये, छलावा, यच्छिनी ,चुड़ैल या कोई भी ऐसी डरावनी चीजे होती हैं या हम लोगो ने अपने मनोरंजन के लिए ये कहानियाँ बना लेते हैं !सच तो पता नहीं है ,पर एक कहानी मेरे पास भी है ,शायद आप लोगो को पसंद आये!
ये जगह कितनी डरावनी है ,पता नहीं क्यों पापा को ऐसी जगह पर घर मिलता है , हमारा पुराना घर कितना अच्छा था ,हां थोड़ा छोटा था पर शहर के बीचोबीच था,स्कूल भी नजदीक था, मार्किट और मॉल भी करीब था !ये जगह तो इतनी गन्दी है ! पापा की जॉब भी अजीब है कही भी ट्रांसफर कर देते हैं।
प्रिया ( मेरी बहन ) मुझे टोकते हुए बोली " ओये बहुत बड़ी बड़ी बाते कर रहा है न ..
पापा जैसी जॉब पाने को लोग तरसते हैं , देख रहा है न शहर का घर कितना छोटा था , और ये देख कितना बड़ा बंगला है , कितना बड़ा पार्क है ,आसपास कितनी शांति है !
मैंने कहा " हां दीदी तुमको ही पसंद आएगा ये भूत बंगला !हर जगह मनहूसियत फैली हुई है, किसी भी रूम में अकेले जाना मुसीबत है , ना कोई दोस्त ना कोई साथी ना कोई पडो़सी ! कोई तो नहीं है ,यहाँ कहां से ये जगह अच्छी है "
प्रिया - "अच्छा - अच्छा फालतू की बात छोडो़ , माँ अकेले घर की सफाई कर रही है ,चलो उनकी हेल्प कराये , हम अपनी बाते बाद में कर लेंगे !"
"ओके दीदी बोलते हुए हम दोनों घर में चले गए और घर की सफाई में लग गए !"
पूरा का पूरा दिन आज सामान को अपनी जगह लगाने में चला गया , पर फिर भी काम रह ही गया ! हम सब थके हुए थे , तो डिनर कर के जल्दी ही सो गए !अगले दिन फिर से नाश्ता करके हम घर की सफाई में लग गए,लगातार काम करने के कारण दोपहर तक सारा काम ख़त्म हो गया,
मैंने और दीदी ने सोचा की बहार से कुछ आर्डर कर लेते है , पर माँ डाटने लगी , कि "हमेशा बहार का खाना .... रुको मैं घर पर कुछ बना देती हूं!"
माँ खाना बनाने किचन में चली गई ,मैं और दीदी आपस में बाते करने लगे !
" दीदी सच में आपको इस घर में डर नहीं लगता है?" , प्रिया बोली " "नहीं ! ये घर मुझे बहुत पसंद है !"
मैंने कहा " दीदी मैंने एक मूवी मेँ देखा था " ऐसा ही एक बड़ा और सुनसान घर ! वहा पर आत्माये रहती हैं”। ,
प्रिया - "ये सब बाते मत सोचा करो ! ऐसी बाते सोचने के कारण ही हमें डर का आभास होता है , और हम डरने लगते हैं !अगर हम यही सब ज्यादा सोचने लगे तो ये चीजे सच प्रतीत होने लगती हैं , इसलिए ये सब बाते मत सोचा करो !"
प्रिया दीदी ने जो भी बोला वो सच है ,कि नहीं !.... यही सोच रहा था कि प्रिया दीदी ने आवाज लगते हुए बोला " तू इधर आ आज मैं तुझे कागज़ का जहाज़ बनाना सिखाती हूँ। ", मैंने भी सोचा कि अच्छा है , जहाज बनाना सीख लूंगा तो स्कूल में सबको बना कर दिखाऊंगा !
प्रिया - "देखो ध्यान से ! ... पहले एक पेपर लो फिर ऊपर से 90° के एंगल से हाफ हाफ दोनों तरफ से फोल्ड करो,फिर जहा फोल्ड निचे की तरफ खत्म हो वह से निचे फोल्ड करो , और फिर उस फोल्ड पेपर को पहले की तरह 90° पर फोल्ड करो, अब दोनों तरफ मोड़ दो ! देखो बन गया ना देखो कितना आसान था !"
मैंने कहा - "हां दीदी ये बहुत आसान है ,मज़ा आ गया , ये अब मैं भी बनाऊंगा और उड़ाऊंगा !
मुझे बहुत पसंद है ,जहाज बनाकर उड़ाना !"
प्रिया - "ओके ओके तुम बनाओ और खेलो , पर कही बाहर मत जाना ! मैं भी अपना काम कर लेती हूं!" ये बोलकर प्रिया दीदी रूम में चली गई ! मैं अकेले अकेले पार्क में बैठकर जहाज बनाने लगा ! हर बार कुछ ना कुछ गड़बड़ हो ही जाती ! कई बार कोशिश करने पर आख़िरकार एक जहाज अच्छा बन गया ! मैं बहुत खुश हुआ !मैं उस जहाज को उड़ने लगा !
जहाज उड़ाते उड़ाते पता नहीं कब घर से बहार निकल आया ! और सड़क के दूसरी और चला गया ! जहाज उड़ता हुआ सड़क के दूसरी और चला गया ! मैं बहुत खुश था कि मेरा बनाया जहाज कितना अच्छा उड़ रहा है , मैं अपने जहाज के पीछे खुशी से दौड़ रहा था ! जहाज उड़ता जा रहा था , मेरी नज़र उसी जहाज पर टिकी हुई थीं , चेहरे पर ख़ुशी थी !
ये .....ये ....मेरी जहाज उड़ जा जहाज ये ... ये.... यही चिल्लाता हुआ मैं उसके पीछे भाग रहा था !
अचानक से मैं रुक गया ! मेरे पैरों को ऐसा लगा जैसे उनके निचे आकर कुछ टूट गया हो !
जब मैंने अपने पैरो के निचे देखा तो मेरी डर के मारे आवाज बंद हो गई !
मेरे पैरो के निचे एक कंकाल की खोपड़ी आ गई और मेरे पैरों से टूट गई ! जब मैंने अपनी नज़र ऊपर उठाई तो सामने पूरा कब्रिस्तान फैला हुआ था ! मैं यहाँ कब और कैसे आया मुझे पता भी नहीं चला ! डर के मारे मेरे पसीने छूट रहे थे , तभी मैंने जहाज की तरफ देखा तो मेरा जहाज कब्रिस्तान के ऊपर ही मंडरा रहा था !
अब आसमान एक दम काला होने लगा बदल घिर आये ,तेज़ हवाएं चलने लगीं ,सारे पेड़ पौधे तेज़ तेज़ हिलने लगे हवाएं शरीर से टकरा कर ऐसा आभास करवा रही थी कि वो मुझे यहाँ से धकेल रही हो , दूर कहीं से कुत्तों और सियारों की रोने की आवाजें आने लगी, अब ये मंजर इतना खतरारनाक हो गया कि मुझे समझ आना बंद हो गया की मुझे क्या करना चाहिए !
मैंने सोच लिया कि मेरी मौत करीब ही है , मैं भी अब रोना शुरू कर चूका था ,मेरे रोने की आवाज के साथ साथ मुझे एक और आवाज सुनाई दे रही थी ! कोई तेज़ तेज़ हस रहा था , मानों की मुझे डरा देख उसको बहुत खुशी रही हो !
मेरी साँसे तेज़ हो गई ,मैं बहुत कोशिश कर रहा था कि मैं भगवन का नाम लू पर मेरी जुबान नहीं खुल रही थी !हाथ पैर सुन्न पड़ गए थे,मैं सोचने के अलावा कुछ भी नहीं कर सकता था ! तभी मेरे सामने का कब्र फटा और उसमे से एक स ड़ी गली लाश बाहर निकली ! वो लाश इस कदर सड़ गई थी कि उसके चेस्ट के ऊपर का सारा मांस सड़ गया था, ख़ाली हड्डी दिख रही थी ,कही कही मांस के लोथड़े चिपके हुए थे, और उस लाश का दिल मैला सा था पर तेज़ तेज़ धड़क रहा था !एक आँख उसका गायब था उस जगह पर गड्ढा था ,और दूसरा आँख सड़ गया था !आँख से होते हुए कीड़े लाश के नाक और मुँह से निकल रहे थे !इतना घिनोना लग रहा था कि उसे देख के ही आदमी मर जाये पर फिर भी मैं जिन्दा था !और बेहोश सा सब देख रहा था ,मैं वहा से भाग जाना चाहता था , पर हिल भी नहीं पा रहा था ! वो लाश धीरे धीरे मेरी तरफ बढ़ रही थी , मौसम बहुत डरावना हो गया था , कुत्ते सियार सब रो रहे थे ,बस कोई रास्ता न देख मैंने आखे बंद करके हनुमान जी को पुकारने लगा !
हे हनुमान जी मुझे बचा लो हे बजरंगबली मुझे बचा लो यही दोहरा रहा था , मेरी सासे बहुत तेज़ तेज़ चल रही थी ! और मैं मन ही मन हनुमान जी को पुकार रहा था !तभी मुझे मंदिर की घंटियों की आवाज सुनाई दी ! अब मैंने अपना सारा ध्यान उस मंदिर की घंटी की ओर केंद्रित कर भगवान् का नाम लेने लगा !
धीरे धीरे ऐसा महसूस हुआ कि ये घंटी की आवाज मेरे करीब आ रही है ! थोड़ी ही देर में घंटियों की आवाज मेरे कानो के करीब थी !
मेरा मन शांत होने लगा था , तभी माँ की आवाज आई " बेटा उठ स्कूल जाना है "
मैं तुरंत घबड़ाते हुए उठा तो देखा कि माँ पूजा कर रही थी ,और घंटी की आवाज हमारे घर के मंदिर में पूजा के टाइम बजाई गई घंटी की आवाज थी , वो घर जहाज और भूत सब सपना था ! तभी मेरी बहन हंसते हुए आई और बोली !
"अरे वाह ! तूने तो बहुत अच्छा जहाज बनाया है ,ये बहुत ऊचा उड़ता है !"
जहाज को देखकर मुझे सपने की सब बात याद आ गई , और मैंने तेज़ चिल्लाते हुए जहाज को फाड़ दिया !
और सबको अपना सपना बताया तो सब हसने लगे ..., हा हा हा.