Rashmi Sinha

Horror

3.3  

Rashmi Sinha

Horror

डर

डर

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देवचरन को अपने ब्राह्मण होने पर गर्व है, देवचरन मिश्र पूरा नाम है। उसने जीवन यापन के लिए गांव में ही खेती किसानी से संबंधित दुकान खोल ली। उसकी दुकान अच्छी चल पड़ी, आसपास के गांवों से भी सामान लेने आने लगे। लोगों के मदद करने में हमेशा आगे रहने से देवचरन मिश्र का मान सम्मान काफी बढ़ गया। अब उसके बच्चे बड़े होने के साथ ही व्यवसाय सम्हाल लिए। एक दिन देवचरन ने गांव के पंडित जी से कहा कि "अब मैं पूजा पाठ में ध्यान लगाना चाहता हूं, मेरे पूर्वज बहुत ही ज्ञानी पंडित रहें हैं। मुझे क्या करना चाहिए कृपा कर मार्ग दर्शन कीजिए।"

पंडित जी ने कहा कि "मंदिर में आकर सुबह शाम एक घंटा गायत्री मंत्र की जाप करो।"

देवचरन ने मंदिर में बैठ कर एक एक घंटा गायत्री मंत्र का जाप किया फिर दिन भर मंत्र का जाप चलने लगा। कुछ साल बाद उसे लगा कि इससे फायदा नहीं हो रहा है। देवचरन एक तांत्रिक पंडित से मिला। तांत्रिक पंडित श्मशान घाट में पूजा करते हैं, इसलिए उसे श्मशान घाट पर बुलाया। श्मशान घाट गांव से बाहर होता है। देवचरन के गांव से बाहर दूर में श्मशान घाट है जिस रात को देवचरन तांत्रिक पंडित से मिलने को निकला वो रात अमावस की रात थी। अमावस की रात में अधिक अंधेरा होता है। गांव में बिजली की व्यवस्था कम होने से काली अंधेरी रात लग रही थी। सड़क सुनसान थी जिससे देवचरन को चोर डाकू का डर सताया। कुत्ते रो रहे थे जिन्हें अच्छा नहीं माना जाता। मन ही मन गायत्री मंत्र और हनुमान चालीसा जाप करते आगे बढ़ते हुए श्मशान घाट के पास पहुंच गया। वहां पहुंच कर घबराहट बढ़ गई। हवा के तेज बहाव से सूं सूं....... आवाज बड़ी डरावनी लगी । उसने सोचा कि हवा भी डरावनी हो सकती है। हिम्मत कर पैर आगे बढ़ाया तभी हवा में उड़कर एक पत्ती उससे टकराया। देवचरन को लगा कि कोई आत्मा उसे छूकर निकल गई ।अब रहा सहा हिम्मत जवाब दे दिया, पांव जम गए, धड़कन थम सी गई। आंखें खोली तो देखा कि चारों तरफ धुएं के छोटे-छोटे टुकड़े उड़ रहे है, मन ही मन कहा शायद ये आत्माएं है तभी ‌‌हँसने की आवाज आई इतनी भयानक हँसी पहली बार सुना। उसने पलट कर देखा चबूतरे पर हरीश, कालू काका,‌ हलवा और बहुत से लोग बैठे हैं और उसे देख कर हँस रहे हैं। यहां पर जितने लोग दिख रहे थे सभी की मृत्यु हो चुकी थी। सभी की पलकें खुली हैं पर झपक नहीं रहीं है आंखें ऐसे चमक रही है जैसे लहकता‌ कोयला हो। उनके सिर के बाल बिखरे हुए हैं, पूरा मुंह खोलकर हँसने के कारण चमकते दांत साफ ‌दिखने ‌से बहुत ही डरावना लगा। हरीश उसका दोस्त था जिसकी‌ मृत्यु एक साल पहले हुई थी। हरीश ने उसकी तरफ 4 - 5 फीट लंबी हाथ बढ़़ाई, देवचरन की धड़कन थम गई कुछ बोलना चाह रहा था पर आवाज ही नहीं निकली। उसी समय तांत्रिक पंडित जी ने कहा कि "कहां खो गए हो, मैं कब से इंतजार कर रहा हूं, जल्दी चलो।"

देवचरन ने देखा चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ है, हवा भी शांत है, अभी कुछ देर पहले कितनी कोलाहल थी। देवचरन यंत्रवत पीछे पीछे चल दिया। वे दोनों पूजा के स्थान पर ‌पहुंचे, पंडित जी ने मंत्र पढ़ कर प्रेत आत्मा को बुलाया परन्तु वो दूर खड़ी थी उसने आदेश दिया कि सामने आओ।  तब आत्मा ने कहा कि "मैं सामने नहीं आ सकती क्योंकि  देवचरन  ने गायत्री मंत्र का जाप इतनी बार किया है कि इसकी तेज से भस्म हो जाउंगी। " ‌‌  

 जब देवचरन को इस बात की जानकारी दी तो वो चकित था। फिर देवचरन घर वापस लौट आया। उसका मन बेचैन था वहां पर जितने लोग दिखे सब अपने गांव घर के लोग थे। उस समय उन्हें देख कर डर लगा किन्तु अभी उनकी स्थिति पर दुःख हो रहा है। दूसरे दिन सुबह मंदिर में जाकर बैठ गया और गायत्री मंत्र का जाप करने के बाद उसने चिंतन किया कि रात को मैंने मौत को साफ अनुभव किया। मोह माया ऐसी चीज है कि मरने के बाद भी अपने ‌घर ‌परिवार की चिंता रहती है। शायद वे लोग उनकी देखभाल की जिम्मेदारी दे रहे हों। अब मुझे अपनी जिंदगी गांव की भलाई में लगाना है । जन सेवा ही मेरा परम लक्ष्य है।



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