Rashmi Sinha

Others

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Rashmi Sinha

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जहां राम वहीं अयोध्या

जहां राम वहीं अयोध्या

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मैं मायके जाने के लिए बस में सवार हुई, परन्तु मुझे बस रेंगते हुए नजर आ रहा है। मेरा मन तो पहले ही मेरे मायके जा चुका है, काश मैं भी उड़ कर पहुंच जाती। आंखें बंद कर बैठ गई तब आंखों के सामने रंगीन खुबसूरत चलचित्र चलने लगी मायके में सभी के हंसते हुए चेहरे उनकी बातें। सब याद आने लगे बगल में चाचा जी के परिवार , मोहल्ले के लोग, परिचित, सड़क, पेड़ पौधे, पक्षी, मेरे मायके की हवा भी तो शीतल‌ है सब कुछ अपना और प्यारा है, आखिर मैं इन सबकी बेटी हूं इनके गोद में पली बढ़ी हूं , मैंने इनसे भरपूर स्नेह पाया है। काश जल्दी पहुंच जाती और खुब सारा स्नेह और ढेेर सारी खुबसूरत यादें समेट लेती। जिससे मन उर्जावान हो कर जीवन के संघर्ष के लिए तैयार हो जाता। खैर बस अपने समय पर पहुंची, मुझे मायके पहुंचने में जो समय लगना था वो लगा। बस स्टैंड में भाई और बच्चों को देख सारी परेशानी भूूल मैं खुुशी से बच्ची बन गई। मैं बच्चों के साथ घर पहुंची। घर के दरवाजे से ही सुना लगा, अंंदर जाने पर मुझे मेरे मां पापा जी नहीं मिले। मन उदास हो गया। भाभी ने बताया कि"मां, पापा गांव में हैं। मां को सर्दी और बुखार है। फिर भी वो आ रही थी, हम लोगों ने उन्हें रोका क्योंकि सफर करने से तकलीफ़ ‌बढ़ जाती इसलिए हमने कहा कि दीदी को लेकर आपके पास आ रहे हैं।

   दरअसल मुझे ‌पता था कि 30 - 40 कि. मि. की दूरी पर गांव में अपनी जमीन है । पापा नौकरी से सेवानिवृत्त होने पर उस जमीन में ‌दो मंजिल ‌घर बनवाए हैं और बाग बगीचे तैयार किए है। मुझे उन दोनों के इस उम्र में अकेले रहना और मेहनत करना सही नहीं लगा। हम‌ सभी ने रोकने और समझाने की कोशिश किए । उन्होने कहा कि ॔ तुम लोग‌ हमारे ऊपर बंदिश मत लगाओ और हमें खुलकर जीनें दो। हम इस घर को, तुम लोगों को छोड़ नहीं रहें हैं। कभी यहां रहेेंगे, कभी गांव में  रहेंगे। इसमें हर्ज क्या है।" मैं समझाने की कोशिश की तो पापा जी ने कहा कि ॔ तुम हमें बूूूढ़ऊ समझ रही हो, हम अभी जवान हैं। तेरे से अधिक ताकतवर हैं।" मैंने उनके कमरे मेंं जाकर देखा उनका सारा सामान अपनी जगह पर रखा है मां पापा के फोटो को देख कर मन‌‌ ही मन कही कि"आप लोगों के बिना सब तरफ सूूना सूूना है, मैं आप लोगों को समझा नही सकी कि ॔आप लोगों को काम, नहीं आराम की जरूरत है।॑  तभी भाई मुझे बैठाते हुए कहा कि"आपको पता है मां पापा एक दूसरे के ‌साये की तरह है। पापा के लिए खाली बैैैठना यानिकि ‌बीमार पड़ना ‌है। आप चिंता मत करो, हम सब उनके पास जाते रहते हैं। उन्हें जो अच्छा लगे करने दो। बंंदीश लगा नहीं सकते , बस सहयोग कर सकते है। उनका शौक है बाग, बगीचा, गाय की सेवा करना। आप देखिएगा बहुत ‌अच्छे से व्यवस्था किए हैं। दो नौकर अपने परिवार के साथ रहते हैं। ये समझो कि नौकरी से सेवानिवृत्त हो कर व्यवसाय की ओर कदम बढ़ा लिए है। और बहुत खुश हैैं। हम लोगों को यही चाहिए न, मां पापा खुश रहें, स्वस्थ रहें और मस्त रहें। 

भाई की बातें बिल्कुल सही है । मां पापा के खुशी में हमें खुश रहना चाहिए। वे दोनों हम सब के लिए बहुत संंघर्ष किए हैं और हमारी हरेक खुुशी में अपनी खुशी ढूंढ लेते हैं। मुझे पता है कि भाई भाभी बहुत आदर मान के साथ नजरों में रखें है। फिर भी मन का एक कोना उदास है। एक ‌घंटेें में हम सब गांव पहुंचे। मां दरवाजे पर खड़ी थी, पापा जी सब्जी बागान में काम करवा रहे थे और उनके रेेडियो पर गाना चल रहा था। चारों तरफ संगीतमय सुकुन वाली शांति फैली हुई है। बच्चे नानाजी नानाजी, बाबाजी बाबाजी कहते हुए दौड़ गए। पापा जी भी बच्चों को देख कर खुश हो गए और गले लगा लिए। पापा जी मुझे चपत लगाते हुए कहे ॔॔मेरे काम में बाांधा डालने आ गई।"॓हम सब मां पापा जी को प्रणाम हम किए। हम सबका दिन कैसे बीत गया पता नहीं चला, शाम को भाई अकेले वापस लौट गया। दूसरे दिन सुबह मैंने देखा कि मां पापा जी बाहर कुर्सी पर बैठे हैं और बच्चे, गाय के बछड़े के साथ दौड़ रहे थे। आज कल बच्चों को आजादी से दौड़ते और खुुलकर हंसते देखने का अवसर कम मिल पाता है। पापा जी मुझे पूरा बगीचा घुुमाते हुए एक एक पौधा दिखा कर खुश हो रहेे थे साथ ही आगे की योजना बताये। मैं गांव में एक सप्ताह रही, तभी देेखा कि रिश्तेदार हो या जान-पहचान वाले मां पापा जी से मिलने गांव में आ जाया करते। ये देख मुझे बहुत खुशी हुई। पापा जी स्वभाव से ही कम बोलते हैं पर मां हर किसी से घुल-मिल कर बातें कर लेतीं इससे उनसे मिलने आसपास के लोग आते हैं। मैंने जैसा सोचा था वैसा सूना नहीं लगा। बस्ती और घर दूर दूर तक न होने से दिन डूबते ही अंधेरा और सूना लगता है। पर टीवी देखने में समय निकल जाता है। एक दिन मेरे पापा जी के दोस्त पांडेय अंंकल गांव आए । मैंने उनसे कहा कि"अंकल जी देखिए न। मां पापा जी कैसे सूनसान जगह पर रहते हैं।"

पांडेय अंंकल जी ने कहा कि"बेटी, जहां राम वहीं अयोध्या।"

मुझे उनकी बातें समझ में आ गई। सच ही है पहले ये जमीन बंजर थी, मेरे पापा जी और भाईयों ने इसे उपजाऊ जमीन ‌बना दिया है पूरी जमीन पर हरियाली चादर बिछी हुई है। मेरे मन में इस जमीन के लिए बहुत ही प्यार उमड़ पड़ी। मैंने मां पापा को गले लगा लिया शायद उन्हें कुछ समझ नहीं आया किन्तु गाय ने समर्थन में रम्भा दिया। तभी ‌मेरी भाभी ने चाय और नाश्ता लेकर आयींं, अंकल ने हंसते हुए कहा कि"मैं तो अपनी भाभी जी के बनाये इस सलोनी के लिए आता हूं।"

उनकी बातें सुन सभी हंस पड़े। मैं और भाभी टहल रहे थे । तभी भाभी ने कहा कि"यहां कितना सुुूकुन भरी शांति है। मैंने कहा कि ॔ क्यों न हो, तुम सबने मिल कर प्यार से संवारा है।

जब कुछ दिन बाद अपने शहर के घर पर गए।तब मैंने महसूस किया कि मां पापा के कदम घर पर पड़ते ही घर का कोना-कोना मुस्कुरा उठा और चारों तरफ रौनक साफ दिखाई देने लगा। सच है कि घर के बड़े बुजुर्ग अपने घर के रौनक है। उनके संंस्कार से घर ‌रोशन है। अंकल जी ने सही कहा कि"जहां राम वहीं अयोध्या।



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