Rashmi Sinha

Others

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Rashmi Sinha

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शौक

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काव्या की दीप मौसी अस्पताल में भर्ती है। अभी उन्हें पेंइग वार्ड में रखा गया है। क्रिटिकल आई सी यू में भर्ती होने से वो सदमे में आ गई है जिसके कारण चुप सी हो गई है। उनके बच्चे परेशान हैं क्योंकि हंसमुख, चंचल दीप मौसी, 70 की उम्र में ‌वो 17 का‌ मन रखतीं हैं, चुप रहना उनका स्वभाव नहीं है। डाक्टर ने कहा है कि "उन्हें अधिक से अधिक हंसाने की, बातें करने की कोशिश करना है, जिससे सदमे से उबर जायें और वो मन से स्वस्थ हो जाएं।"

 इस वार्ड में टीवी लगी है, जिसमें गाने ‌चल रहें हैं, दीप मौसी लेटीं है, पास ही बेंच पर उनके बच्चे और काव्या बैठ कर टीवी देख रहें हैं और बातें भी कर रहे हैं। उनका तकलीफ़ से ध्यान हटाकर, सुनहरे पल की ओर मन ले जाने की कोशिश में लगे हुए हैं। उसी समय उषा उत्थुप गाना गाते हुए टीवी पर दिखीं। काव्या ने हंसते हुए कहा "मौसी देखिए उषा उत्थुप गाना गा रहीं है, उनके शो में इस गाने पर हम लोग भी गाए थे और झूमे थे। याद है न मौसी जी हम लोग इन को देखने और सुनने के लिए कैसे गए थे। सुन रही हूँ फिर आ रहीं हैं। इस बार टिकट लेकर जाएंगे। ठीक है न।"

दीप मौसी मुस्करा दीं। वहां पर बैठे बाकी लोगों को कुछ समझ नहीं आया, ‌वे चकित हो कर देखें। उनके बच्चों ने अब तक अपनी मां से बात करने और उन्हें  हंसाने की लाख कोशिश किये पर वो चुप चाप रहीं । उन्हें मुस्कुराते देख अच्छा लगा इसलिए अब इस विषय पर बातें करने लगे।

उनके बेटे शुभ ने कहा कि "आप लोगों ने हमें नहीं बताया, अकेले अकेले चले गए। इस बार तो पीछे लग जाना है । दीदी ऐसा कौन सा राज है कि मां मंंद मंद मुस्कुरा रही है, पर से पर्दा तो उठाइए।"

दीप‌ मौसी के दूसरे बेटे संस्कार ने आंख नचाते हुए कहा कि "हां भईया कुछ मजेदार लग ‌रहा है"

काव्या ने हंसते हुए कहा कि "अच्छा तुम लोगों को बता दे, मैं और मौसी जी इसे राज बना कर रखें है।" दीप मौसी के चेहरे पर आयी मुस्कान देख सभी के मन में आस बंध गई और इस पर बात करने लगे।

काव्या ने बताया कि "उन दिनों इनसे मेरी शादी की बात चल रही थी। ये मां, पापा जी को अपना फार्म हाउस दिखाना चाहते थे, इसलिए मुझे बड़े मामा जी के घर पर छोड़ कर इनका फार्म हाउस देखने चले गए।" उस दिन यहां उषा उत्थुप शो था, जिसके आयोजकों में बड़े मामा भी थे। शाम 4 -5 बजे से ही मुझे घर पर अकेले छोड़ कर चले गए। मैं खिड़की के पास चुपचाप उदास बैठी थी, सच मैं बहुत घबरा गई थी। 2 - 3 घंटे के बाद दीप मौसीजी को रिक्शे् से उतरते देख कर खुश हो गई। मैं दौड़ कर दरवाजा खोली और मौसी के गले लग गई। मुझे अकेले देखकर मौसी बहुत नाराज़ हो गई। मुझे लेकर मौसी, सीधे उषा उत्थुप शो पर गईं। रास्ते भर मौसी, बड़े मामा जी पर नाराज़ हुईं कि "मेरी जीठानी को  उत्थूप शो का  पास नहीं दिए, मुझे भी पास नहीं दिए।" सामने काव्या थी उसे नहीं ले गए बेचारी को घर पर अकेली छोड़ कर चले गए। ॓ 

वहां पर गेटकीपर से पूरे रौब से कहीं "मैं तुम्हारे सर की बहन हूं, मुझे रोके तो शिकायत कर दूंगी। जाने दो हमें।" सभी भाई बहन एक जैसे दिखते हैं, ध्यान से देखा फिर निवेदन किया कि "सर को बुलाकर ला रहा हूं, थोड़ी देर रूकिए।" जैसे ही वो अंदर गया, मेरा हाथ पकड़ कर अंदर ले गईं और मामा जी के पीछे हम दोनों बैठ गए। खुब मजे किए और उषा उत्थुप के साथ में राग में राग मिला कर गाए, झूमें और खुब मस्ती किए और समय पर घर आकर बैठ गए। मैंने पूछा कि "यदि मामा जी देख लेते तब क्या करते। " 

मेरी मौसी घबराने वाली तो है नहीं, दम से कहीं कि "बोल देते टिकट लेकर आए हैं।"

मामा जी आए तब और मज़ा आया। बताने लगे कि "शो खुब अच्छे से हो गया। बिना टिकट के चिड़िया भी नहीं घुस पाया। कोई महिला मेरी बहन बनकर अंदर आना चाह रही थी। मैं आया उसके पहले ही भाग गई।" हम दोनों मुस्कुरा दिए । मौसी उनकी खुब तारिफ की,  मामाजी खुश हो गए।

दीप मौसी को मुस्कुराता देख सभी का हौसला बढ़ गया और सब हंसने लगे । शुभ ने कहा कि ॔ आप भी न मां, मामा जी को गजब छकाई । टिकट लेकर जातीं। संस्कार ने कहा कि "ठीक‌ कीं मां, मामा जी मेरी मां को पास क्यों नहीं दिए और मेरी बड़ी मां को भी पास नहीं दिए, वो भी चार बातें सुना दी। और तो और दीदी को भी साथ नहीं ले गए गलती तो किए।"

काव्या ने हंसते हुए कहा कि "मौसी की सहेली भी बहुत अच्छा  गाती है। आप की शादी में कौन सा  गाना गायी थी ।"

दीप मौसी ने तुरंत कहा "उसके साथ भाई साहब भी गए थे बहरों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है।"

शुभ ने पूछा न मां, एक बार मौसी और मौसा जी आए थे। तब पापा जी के फरमाइश पर कोई गाना सुनाए थे।

दीप ने बताया  "देवानंंद की फिल्म, हम दोनों , जिंदगी का साथ निभाता गया। फिक्र को धुंए में उड़ाता चला गया।"

 काव्या ने हंसते हुए कहा कि "हमारे मौसाजी बहुत कम बोलते थे, पर उनकी नजर तेज थी, मन की बात पढ़ लेते। जब मुझे स्कूल छोड़ने जाते, मैं भी चुप रहती मौसाजी भी चुप रहते। बिना बोले ही समझ जाते कि मुझे बुढ़िया के बाल चाहिए कि‌ चाकलेट। चुपचाप खरीदकर दे देते और मैं चुप चाप ले लेती।"  

शुभ ने कहा कि "आप पापा जी की लाडली थीं, मां की बेटी तो है पर अच्छी दोस्त भी हैं।

काव्या ने हंसते हुए कहा कि "रूको तो मैं एक बात और बताती हूं। जब मौसाजी और मौसी जी ‌की शादी हुई थी उसके कुछ दिन बाद मौसाजी अपने दोस्तों के साथ गुरुदत्त की फिल्म कागज़ के फूल देख कर आये और मौसी के पास खुब तारीफ किए।"

दूसरे दिन मेंटनीशो की टिकट लेकर अपनी ‌तीनों भाभी और दीप मौसी दिए । अब मौसी लोग सबको खिला कर सुला दिए एक नौकरानी को बैठाकर पीछे के दरवाजे से चले गए। इसमें खास बात ये थी कि दादाजी को पता नहीं चला कि उनकी बहुएं फिल्म रहीं है।

दीप मौसी ने मुस्कुरा कर कहा कि "गुरु दत्त की फिल्म उन्हें पसंद थी। "

काव्या ने छेड़ते हुए कहा "अरे वाह मौसी जी, हमारे मौसाजी भी फिल्म देखने के शौकीन थे।"

उसी समय डाक्टर साहब ने देखा कि उनकी मरिज दीप के चेहरे पर चमक आया है और थोड़ी बहुत बातें

कर रही है तो उन्हें अच्छा लगा। सकारात्मक भाव आने पर दवा अच्छे से फायदा करता है। 

डाक्टर साहब ने कहा कि "मैंने देखा लिया, शौक जीवन में सुनहरे पल देकर ऊर्जावान बना देता है।"

संस्कार ने कहा कि "डाक्टर साहब, मुझे अब पता चला कि मुझे सुलाकर मां लोग पिक्चर देखने जाते थे।"

डाक्टर ने कहा कि "मैंने भी खुब फिल्म देखी है। कई बार कालेज के क्लास से भाग कर पिक्चर देखने जाते थे। एक बार पकड़ गए तब पापा ने जबरदस्त धुनाई की थी।" 

सभी खुब हंसे । काव्या की दीप मौसी जल्दी स्वस्थ होकर घर आ गई। सभी को देख लिया कि शौक दवा बनकर काम कर गई।



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