Vijaykant Verma

Abstract

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Vijaykant Verma

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डियर डायरी 03/05/2020

डियर डायरी 03/05/2020

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25 मार्च को 21 दिन का लॉकडाउन, 14 अप्रैल को फिर एक्सटेंशन, 3 मई को फिर एक्सटेंशन.. क्या इसके बाद पुलिस स्टाप है..?

पूरे देश को लॉक करने के बाद भी कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ती गई..! देश की अर्थव्यवस्था ठप हो गई उद्योग धंधे बंद हो गए मजदूर भूखों मरने लगे और सिर्फ इतना ही नहीं उन्हें अपने घर भी नहीं जाने दिया गया और इनमें से कितनों ने अपना दम तोड़ दिया भूख प्यास से और कितने घरों में इस लॉकडाउन के कारण मौतें हुई है, इसका आंकड़ा भी बहुत बड़ा है, लेकिन अदृश्य है..!

आपने एक मीटर की डिस्टेंस को जरूरी बताया है। लेकिन मैं इस बात को दावे के साथ कह सकता हूं कि पूरे देश मे लॉकडाउन होने के बावजूद भी इस नियम का सख्ती से पालन किसी ने नहीं किया, क्योंकि यह नामुमकिन है..! जब आप दुकान से कोई सामान खरीदते हो तो क्या एक मीटर की डिस्टेंस बना कर उससे सामान लेते हो..? क्या वो एक मीटर की डिस्टेंस से फेंक कर आपको सामान देता है..? क्या आप उसको एक मीटर की डिस्टेंस से फेंक कर उसको रुपया पैसा देते हो..? यह नामुमकिन है। 

 कोरोना फैलने में एक सेकंड का समय लगता है। किसी कोरोना मरीज के संपर्क में एक सेकेंड के लिए भी आप आएंगे तो आपको कोरोना हो सकता है। जबकि अगर किसी को कोरोना नहीं है, तो एक मीटर की डिस्टेंस का रूल फॉलो न करने पर भी आपको कोरोना का कोई खतरा नहीं है।  लेकिन सरकार करोड़ों अरबों रुपए सिर्फ इस बात पर बर्बाद करती है की एक मीटर की डिस्टेंस का होना जरूरी है, जबकि यह नामुमकिन है।

 इसी नियम के कारण बिना रोजी-रोटी के मजदूर तड़पते रहे और सच तो यह है किस सरकार के प्रति कितना गुस्सा होगा उनके अंदर इस बात की सरकार कल्पना भी नहीं कर सकती..!

अगर सुबह मॉर्निंग वॉक पर कोई दमा का मरीज निकलता भी है, तो उसे मालुम है कि कोरोना उसको नहीं होने वाला है।क्योंकि रोड पर सन्नाटा है और वह डिस्टेंस बनाकर ही मॉर्निंग वॉक कर रहा है क्योंकि अपनी जान की तो उसको भी चिंता है। मगर पुलिस के डंडे उस पर बरसेंगे। यहां कोरोना के फैलने का कोई मतलब नहीं है। फिर भी पुलिस की लाठी बरसेगी। कोई अपनी कार में बैठकर कहीं भी जा रहा हो अपने घर परिवार में या अत्यंत जरूरत पड़ने पर वह आदमी भी कार में बैठकर किसी और को कोरोना नहीं फैला रहा है, मगर आप उसको नहीं जाने दोगे..!

 कोई घर मकान मैं मजदूर काम कर रहा है चार पैसा उसको मिल रहा है और उसके घर परिवार का खर्चा चल रहा है लेकिन आप उसको काम नहीं करने दे रहे हो जबकि वो कोरोना नहीं फैला रहा है!

 आप पूरे रिकॉर्ड को देख लो जिनको कोरोना है, उनको बाहर वालों से हैं। जब फैक्ट्री से बेरोजगार होकर मजदूर निकले तो इनमें से किसी को कोरोना नहीं था। अगर इन्हें बसों में घुसकर भी इनके घरों को पहुंचा दिया गया होता तब भी इनके द्वारा कोरोना नहीं फैलता सरकार के करोड़ों अरबों रुपए भी बचते। और यह मजदूर अपने घर परिवार में होते और सरकार को दुआएं भी देते।

सच्चाई बहुत कड़वी है मगर सच यही है कि पूरा सरकारी प्रशासन सबसे ज्यादा उनको दंडित कर रहा है परेशान कर रहा है जिनसे देश को कोरोना का खतरा नहीं है। यही सत्य है और इस सत्य को सरकार आज शिकार करें या 1 महीने बाद लेकिन इस सत्य को उसे स्वीकार करना ही होगा अन्यथा देश की पूरी अर्थव्यवस्था चौपट हो जाएगी और लाखों घर बर्बाद हो जाएंगे..!

अगर अधिकारियों के दिल में दर्द होता मजदूरों के प्रति।

 कोई मजदूर भूखा ना होता, घर परिवार से दूर ना होता।


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