Vijaykant Verma

Abstract

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Vijaykant Verma

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डियर डायरी 01/05/2020

डियर डायरी 01/05/2020

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सुन साहिबा सुन प्यार की धुन

मैंने तुझे चुन लिया तू भी मुझे चुन

1973 मैं आई फिल्म बॉबी के नायक ऋषि कपूर नहीं रहे। इस खबर ने बहुत विचलित कर दिया। उनकी उम्र 67 वर्ष थी। अपने 50 साल के फिल्मी जीवन में उन्होंने करीब 150 फिल्मों में काम किया। नायक के रूप में "बॉबी" उनकी पहली फिल्म थी, जिसने कई शहरों में गोल्डन जुबली मनाई। गोल्डन जुबली मनाने का अर्थ होता है, किसी एक ही टॉकीज में लगातार 50 हफ्ते तक किसी फिल्म का चलना। राज कपूर की इस फिल्म में डिंपल कपाड़िया ने हीरोइन का रोल किया था। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें।

 उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी ने सभी राज्यों में फंसे प्रत्येक श्रमिकों को अपने घर पहुंचाने की बात की है। उन्होंने कहा है, कि पैदल यात्रा न करें।जहां है, वही रहे। हम एक-एक व्यक्ति को उनके घर तक पहुंचाएंगे।

सवाल यह है, कि आज भी बहुत सारे मजदूर छह-सात दिन पैदल चलकर अपने घरों में आ रहे हैं। उनके पैरों में छाले पड़ जा रहे हैं। भूखे प्यासे हैं वो! कहीं रोटी मिल गई ,तो खा लिया और नहीं मिली , तो भूखे रह गए..!

आम जनता को यह मजदूर दिख जाते हैं पैदल चलते हुए..! पुलिस वालों को भी जरूर दिखते होंगे ये मजदूर पैदल चलते हुए..! प्रशासनिक अधिकारियों को भी जरूर दिखते होंगे यह मजदूर पैदल चलते हुए..!

लेकिन जब सरकार की तरफ से यह घोषणा है, कि सरकार इन प्रत्येक मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाएगी , तो क्यों यह लोग पैदल चल रहे हैं..? क्यों नहीं इनके लिए तुरंत कोई बस की व्यवस्था कर उन्हें उनके घर पहुंचाया जाता है..? दरअसल किसी बात को कहने में और उसे सही तरह से लागू करने में बहुत फर्क है..!

अगर प्रशासनिक अधिकारियों से पूछा जाए, कि सरकारी आदेश के बावजूद यह मजदूर भूखे नंगे क्यों पैदल चल रहे हैं, तो एक ही जवाब होगा~ व्यवस्था की जा रही है..! और जो काम भी होगा, नियमों के तहत ही होगा..! लेकिन अगर सरकार के नियम इन लाचार बेबस मजदूरों को पैदल यात्रा करने से रोकने में असमर्थ हैं, तो उन नियमों का कोई अर्थ नहीं..!

और यही सबसे कठोर सच्चाई है, कि सरकार के इन नियमों का गरीब मजदूर पालन कर सकने में असमर्थ है..! क्योंकि शायद उनका भरोसा सरकार से उठ गया है..! सरकार कहती है कि उनके लिए बस उपलब्ध कराया जाएगा , उनके लिए भोजन पानी की भी व्यवस्था होगी , उन्हें एक एक हज़ार रुपये की आर्थिक सहायता भी दी जाएगी, और फिर भी इन सारी सुविधाओं को छोड़कर अगर वो भूखे नंगे पैदल चल रहे हैं, तो इसे आप इसे क्या कहेंगे..?

अगर सरकारी सिस्टम सही होता, तो इन पैदल चलते हुए मजदूरों के लिए जैसे भी हो, तुरंत किसी बस का इंतजाम किया जाता, और उन्हें उनके ठिकाने पर पहुंचा दिया जाता।

लेकिन ऐसा नहीं है। जब तक सरकार उनको नियमों के तहत अपने घर तक पहुंचाएगी, उससे पहले शायद वो वह पैदल कर अपने घर पहुंच जाएंगे..! और उन्हें सरकारी मदद मिलना, पैसा मिलना, ये सारी बातें उनके लिए मृग मरीचिका के समान है..! और यही यथार्थ सच है उनकी गरीबी का, उनकी बेबसी का, और उनकी मजबूरी का..! क्योंकि मुझे अच्छी तरह मालुम है, कि न उन्हें सरकारी पैसा मिलना है और न उन्हें सरकारी मदद मिलनी है..! उनके पैरों में छाले तो पड़ने ही है और उन्हें भूखे भी रहना है..! यही सच है..!


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