ढिलाई
ढिलाई
"एक बार फिर सड़क पर बिना मास्क पहने लोग नजर आने लगे .... राहत क्या मिली लोगों की ढिलाई शुरू हो गई .... इसी तरह की ढिलाई पिछले साल भी की गई थी .... लोग खुद तो मास्क पहनना भूल ही गये थे लेकिन यदि उन्हें कोई मास्क पहने दिख जाता तो उसे ऐसे घूरते जैसे वो कोई अजूबा हो।" - सड़क पर जोर जोर से चिल्लाते हुए एक महिला कहे जा रही थी।
मास्क पहनी हुई उस महिला का एक हाथ पकड़कर खींचते हुए एक किशोर वय मास्कधारी लड़की चारों ओर से लोगों की घूरती नजर को देखकर शर्मिंदा होते हुए बोली - "माँ चलो यहाँ से ... तुम्हें क्या करना है ....?"
वह महिला उस लड़की को एकटक देखी फिर उससे लिपट कर रोने लगी। घरों से निकल निकल कर झांकते लोग एक दूसरे की तरफ सवालिया निगाह से देखने लगे मगर बोला कोई कुछ नहीं।
बहते हुए आँसुओं के साथ वह महिला उस लड़की से कह रही थी - "सब लोग मास्क पहनते तो आज तेरे लिए नोटबुक खरीदने तेरे साथ तेरे पाप जा रहे होते।"
वह लड़की भी सुबकने लगी। उसकी आँखों में उसके पिता का चेहरा नजर आने लगा। अक्सर मास्क लगाये रखने वाले उसके पिता को लोग घूरते भी और कभी कभार टोक भी देते कि आप बेवजह का डर फैला रहे हो, अब माहौल ठीक है। वही लोग जब बीमार पड़े तो मामूली सर्दी खांसी मानकर मास्क का मजाक उड़ाते रहे लेकिन जब सांसे उखड़ने लगी तो उसी के पिता दौड़ दौड़ कर सबकी मदद किये।
लड़की से लिपट कर सुबकती हुई उसकी माँ को याद आया वो दिन जब वो अपने पति को यह कहकर टोकी थी कि मजाक बनाने वालों की मुसीबत घर मत ले आना। याद रखना घर में एक पत्नी और बेटी भी है। तब पति देव ने आश्वस्त करते हुए कहा था - "तुम दोनों को कुछ नहीं हो इसका मुझे ख्याल है ... निश्चिन्त रहो।" अपनों के लिए उनका भरोसा सही साबित हुआ लेकिन उन बीमारों की तीमारदारी में दिन रात उनके साथ रहने के कारण, वे खुद को संक्रमण से बचा नहीं सके। अचानक एक दिन मोबाइल पर उनके मौत की खबर आई।
माँ बेटी कुछ देर तक आपस में लिपटी सुबकती रहीं फिर नजरें झुका कर एक ओर बढ़ गईं। लोग खुसर पुसर करने में व्यस्त हो गये।
