डैडू

डैडू

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हमारे मानस पिता ,अवधेश जी जो कि आयु में हमसे छोटे है। हमारे पिता है।हनारी उनकी मुलाकात एक कार्यक्रम के दौरान हुई ,वह हमारे सपनो का एक खूबसूरत महल था,हमारे सामने चकनाचूर हो गया ,हम सड़क पर आ गये थे। किसकी गलती कैसी गलती दोषारोपण का विषय नहीं है। विषय तो है हमारे डैडू,मझोला सा कद गठीला सा बदन , बड़ी -बड़ी आँखे हमेशा लोगो की मदत करना यही आता है उनको आज जो भी हूँ उनकी वजह से हूँ। हम को आज भी वह दिन याद है,जब हम रोते थे। वह गले लगाकर चुप कराते और कहतें कि तुमको तो अभी बहुत आगे जाना है रोते नहीं बुरी बात ।शहर में जितने भी नामचीन लोग है।सब को मुकाम तक पहुँचाया पर लोग मेरे डैडू को ही भूल जाते है।कोई डैडू को बुरा कहता है कहता है हमारा खून खौल जाता है। ऐसे है हमारे डेडू । जब धर छोडकर निकले तो डैडू ने छोटा छोटा सामान लाकर हमारा घर सजाया आइये हम सब मिलकर शिव से अरदास करे की डैडू हमेशा खुश रहे और बहुत आगे बडे डैडू ने हमको संसम करना सीखाया और और बताया कि जीवन इसी का नाम है।


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