शबाना
शबाना
शबाना से हमारी मुलाकात कचहरी में हुई, गोल मटोल साँवली सी शबाना, हँसती खिलखिलाती शबाना। अपने पति से तलाक लेने आयी थी। यही शायद उसकी ग़लती थी और मज़ाक बन कर रह गयी, थोड़ी थोड़ी बात पर रो भी पड़ती।
सब उसको खिलौना समझते थे जब बातचीत होने लगी तो बोली, पति की दूसरी बीबी जो कि शरीयत के हिसाब से ठीक थी, पर शरीयत में यह भी तो लिखा था कि सब बीबीयों को बराबर का हक़ मिलना चाहिये रोटी कपड़ा, मकान शारीरिक सुख भी मिलना चाहिये। पर हुआ कुछ गलत उसके साथ, मारपीट गाली गलौज, जो नहीं होना चाहिये सब हुआ।
आज कचहरी में खड़ी है, नंगी हो गयी है और लोग मज़ाक उड़ा रहे है। कह कर फफक पड़ी। हम उसकी पीड़ा को समझते है, औरत चादर नहीं है और जूती भी नहीं औरत तो औरत है। हम सब को बदलना होगा बहुत बदलना होगा।
