घनी अंधेरी रात
घनी अंधेरी रात
आज हमको इला की बहुत याद आ रही है इस रात के समय, इला जिस तकलीफ़ से गुजर रही थी, आज हम महसूस कर पा रहे है, वह रातों को जगती, या घंटो हमसे फोन पर बात करती, बेचैन रहती।
आज हमें समझ में आता यह वह दौर था जब इला तलाक लेने के दौर से गुजर रही थी। तब तो हम उसको समझाते आज मैं उसी दौर से गुजर रही हूँ, तो बड़ी पीड़ा होती है हर रात बड़ी ही घनेरी लगती है, यह नहीं कि हम को पुरूष का साथ चाहिये, वरन हमारी लडाई ही सेल्फ रेस्पेक्ट की है।
आज जब से हमने मना कर दिया कि नहीं सहेगे मारपीट गाली गलौज,आरोप मारपीट,नहीं रहना ऐसे आदमी के साथ जो मेरे दुख सुख का साथी ना हो, तो हालात बद से बततर हो गये है।
नोटिस तलाक का देने के बाद तो यह तो होना ही था, पर पता नहीं कहाँ से हौसला पाती हूँ, लड़ने का शायद माँ गंगा का आशीष है, या शिव की किरपा, की इस कठिन हालत में जीवित हूँ, या उन लोगो की दुआओं का नतीजा जिनके लिये हम लड़ते है। पर बड़ा ही अकेलापन लगता है जब कचहरी में अकेले धक्के खाती हूँ। पर समाज जिस जगह बैठा दिया वहां किसी से अपनी तकलीफ़ कही भी नहीं जा सकती है, बस इंतजार है कि सुबह तो होगी और सुबह ज़रूर होती है घनेरी रात के बाद यही शिव पर पूरा भरोसा है और अरदास भी।