पथिक
पथिक
मैं हूँ एक पथिक छाया को तलाशता। वह दिख रहा है छायादार पेड़, वह बहुत दूर है। कितना थक गया हूँ छाया तलाशता तलाशता। चलूँ थोडी दूर बाद, दादा जी नेपेड लगाया था। वह तो छायादार हो गया होगा। बस थोडी दूर, बस बस, आ गया।
अरे यह कैसे? यह सड़क की चौड़ीकरण करते समय पेड़ काट दिया गया। हाय रे विधाता यह कैसा अनाचार? दादा जी की निशानी भी नहीं रही। यह कैसी बात? पेड़ तो हमे देते ही है। फिर यह कैसी बात? माँ हरित कितनी दुखी है। फिर भी समझ नही। आ रहा है, बरसात रुक गयी है। माँ धरा रो रही है। तभी समझ में नही आ रहा है। आज तो हमने तय कर लिया। ढेर सारे पेड़ लगाऊंगा। जगत बचाऊंगा, जागो इंडिया जागो।