डायरी
डायरी
शाम के चार बज रहे हैं।
आज का दिन व्यस्तता भरा रहा। सुबह ही मैनपुरी के लिये निकल गया था। पूरे दिन अदालत की मारामारी तथा अब आकर घर लगा हूं। अभी एक कप चाय पीकर डायरी लिखने बैठ गया हूं।
मुझे लगता है समझदारी एक आंतरिक गुण है। जिसका किसी की पढाई तथा ओहदे से कोई भी अर्थ नहीं है। अनेकों समझदार माने जाते लोग इस तरह का आचरण करते हैं जो कि किसी भी तरह किसी समझदार को तो शूट नहीं करता है।
विभिन्न विभागीय आदेश भी केवल खानापूर्ति के लिये होते हैं। अनेकों महीनों से एटा के लिये स्टाफ की मांग की जा रही है। कल सर्किल आफिस ने दो अधिकारियों का आगरा से एटा के लिये स्थानांतरण आदेश निकाला। मजेदार बात यह है कि उनमें से एक अधिकारी विकलांग कैटेगरी के हैं जिन्हें नियमानुसार उनके होमटाउन आगरा अथवा उन्हीं की रजामंदी से उनके लिये उपयुक्त स्थान पर पोस्टिंग देने का प्रावधान है। दूसरे अधिकारी की पत्नी भी उत्तर प्रदेश सरकार के अंतर्गत आगरा में तैनात हैं। तथा विभाग की पोस्टिंग रूल के अनुसार अभी दोनों पति और पत्नी की नियुक्ति आगरा ही हो सकती है। जबकि उनका छोटा बेटा भी अभी चार या पांच वर्ष का है।
निश्चित ही ये दोनों स्थानांतरण आदेश स्थगित हो जायेंगें। पर प्रश्न आता है आदेश निकालते समय ऐसे मूलभूत भूलें कैसे हो सकती हैं। जबकि अब तो सेंट्रलाइज पोर्टल में ही सारी जानकारी सेव की जाती हैं।
जीवन में कितनी बार अंधेरे रास्तों से गुजरे हैं। वास्तव में जीवन के प्रत्येक पल में एक रिस्क है। कभी भी नहीं कहा जा सकता है कि जिस रास्ते को चुना है, वह कब और किन परिस्थितियों में बदलना पड़े।
लगता है कि यह कहना पूर्णतः गलत है कि रोटी, कपड़ा और मकान ही जीवन की मुलभूत आवश्यकता हैं। यदि ये ही मूलभूत आवश्यकता हैं तो फिर मूलभूत आवश्यकताओं से बहुत ज्यादा अधिक होने पर भी मन में यह वैमन्यसता क्यों है। क्यों मनुष्य सुखी नहीं रह पाता।
वास्तव में जीवन में सबसे महत्वपूर्ण प्रेम, विश्वास और समर्पण है। यदि जीवन से इन्हें निकाल दिया जाये तथा सब कुछ पास हो, फिर भी जीवन में कुछ नहीं रहता है।
अक्सर कहा जाता है कि मनुष्यों ने स्त्रियों पर ही ज्यादा जिम्मेदारी दी है। पुरुष को जिम्मेदारी से रहित किया है। इस विषय में मेरा मानना यही है कि एक स्त्री द्वारा जिम्मेदारी निभाना एक पुरुष द्वारा जिम्मेदारी निभाने से अधिक महत्वपूर्ण है। पुरुष पूरी क्षमता से जिम्मेदारी निभाये फिर भी वह स्त्री की जिम्मेदारी की कमी को पूरा नहीं कर सकता है।
किसी भी कारण से विश्वास न रहने पर प्रेम का दिखावा बहुत तकलीफदेह होता है। मनुष्य ऐसे अनेकों बंधनों में बंधा रहता है कि वह चाहकर भी उनसे मुक्त नहीं हो पाता है। केवल ईश्वर ही उन्हें मुक्त कर सकते हैं।
मेरा जीवन भले ही अंधेरे राहों से गुजर रहा है फिर भी मैं कह सकता हूं कि मैंने इन रास्तों में भी कोई धोखा नहीं दिया है। कोई झूठ नहीं बोला है। कोई अनैतिक आचरण नहीं किया है। तथा अंधेरे रास्तों से निकलने के लिये कोई अनुचित कदम नहीं उठाया है।
यद्यपि मैं ईश्वर पर पूर्ण विश्वास करता हूं फिर भी कभी कभी इन अंधेरे रास्तों में मन विचलित होने लगता है। कभी कभी लगता है कि क्या मेरा पूरा जीवन ही इन्हीं अंधेरे रास्तों में ही गुजर जायेगा।
खासकर ऐसे नकरात्मक विचार उस समय ज्यादा उठते हैं जबकि कुछ मुझे जीवन दर्शन बताने लगते हैं जो कि भौतिक ही अधिक होता है।
ऐसे विचारों की प्रवलता के समय मन में कुछ सकरात्मक आवाज उठती है। शायद वह मेरे अंतर्मन की आवाज ही होगी। ईश्वर जब किसी से कुछ विशेष चाहते हैं तो उसका जीवन भी कुछ विशेष बना देते हैं। ये अंधेरे पथ उसे आध्यात्मिक उन्नति की राह दिखाते हैं।
लगने लगता है कि जीवन में अंधेरे पथ व्यक्ति की विशिष्टता का द्योतक होते हैं।
लगने लगता है कि शायद जिन बातों का गम मना रहा था, उनमें तो दुखी होने की ही कोई बात नहीं है। दुख या सुख के भ्रम की स्थिति बनने लगती है।
शायद यह मानव मन की कमजोरी होती है कि वह नकरात्मक ही अधिक सोचता है। जबकि जिन बातों को वह नकरात्मक मानता है, उन्हीं में बहुत सकरात्मक भी मिल जाता है।
आज के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।
