डायरी आठवाँ दिन
डायरी आठवाँ दिन


प्रिय डायरी दुर्गा अष्टमी के दिन ही बंद का आठवाँ दिन है। हे माँ आज तेरे चरणो मे तेरे भक्तों की अरदास है की सम्पूर्ण विश्व का कल्याण कर माँ और इस कारोना विपदा से सभी को सुरक्षित कर दो जगदम्बे। तुम तो कष्ट हरती हो अपने भक्तों का। तुम ही तो जगत माता हो आज अपने बच्चों के इस कष्ट को भी हर लो माँ अपने बच्चों को भय मुक्त और रोगमुक्त करो माँ। आज की मेरी पूजा मानव कल्याण के लिये सभी की सुरक्षा के लिये सम्पन्न हुई।
रोज के काम निपटा एक बार बहार झांकने की तीव्र इच्छा हुई ।. ये क्या झुंड के झुंड बच्चों को लेकर इधर उधर घूम रहे थे। पूरी तरह के बंद का मतलब समझ क्यूँ नहीं आता इन मूर्खों को। आस्था जीवन का महत्वपूर्ण दायित्व है तभी अराजकता को बल नहीं मिलता और कोई शक्ति है तभी लोग डरते भी हैं कुछ ।ऐसे कार्य नहीं करते जिससे उन्हें भय हो की उनके देवता रुष्ट हो जाएँगे। परन्तु आपातकाल मे कुछ नियम मानने ज़रूरी हैं।
अपनी आस्था को बनाए रखने के साथ साथ समस्या का हल भी निकलना है। कन्या भोजन की बजाय एक गरीब परिवार को राशन दे दिया जाय तो भी दान ही कहलाएगा और पुण्य भी मिलेगा। माँ भी प्रसन्न होंगी।
वो कभी नहीं चाहेंगी की मेरे बच्चे सड़कों पर रुग्ण पड़े रहें औरों को भी बीमारी दें।. मै भी भक्त हूँ उस सर्वशक्तिमान मन की पर आज सिर्फ़ राशन दान और कुछ नहीं मेरी माँ मेरी भेंट ज़रूर स्वीकार करेगी ऐसी मेरी आस्था है। सारा दिन उन्ही बच्चों के विषय में सोचते सोचते निकल गया। बच्चों का कसूर तो बिल्कुल नहीं माता पिता ही हैं जो बच्चों को कुछ नहीं होता कहकर उनकी जान जोखिम में डाल देते हैं।
प्रिय डायरी जब दुनिया मे इतना हाहाकर मचा है लाखों लोग इस बीमारी के शिकार हो गये हैं और हज़ारों मर गए हैं तब रोज इस तरह के हादसे होना चिंता का विषय है। हम सुन नहीं रहे केवल अपने मन की कर रहे हैं जैसे हम ही ईश्वर हैं और सब हमारे नियंत्रण मे है। गलत सोच है हमारी । अपने साथ साथ हम कई मासूमों की ज़िंदगी से भी खिलवाड़ कर रहे होते हैं।. अब भी ना सम्भले तो कौन बचाएगा पता नहीं।
प्रिय डायरी खबरें सुन सुन भी दिल बैठा जा रहा है। इस महामारी का आतंक ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा। कुछ वक्त किताबें पढ़ कर इस खबर से ध्यान बटाने की नाकाम कोशिश तो कर रहीं हूँ परन्तु रह रह कर टी वी की तरफ निगाह चली जातीं हैं और कान भी खबर सुनने का मोह नहीं छोड़ते। कुछ देर घर के सदस्य बात करते हैं फिर अपने अपने कार्य करने लगते हैं। पढ़ाई, ऑफ़िस का काम, भजन, किचन का काम सभी के कार्यछेत्र हैं। समय मिलते ही मेरी निगाहें तुम्हें ढूँढती हैं मेरी प्यारी डायरी और लिखने लगती हूँ मै धीरे धीरे अपने मन की बातें। इस मुश्किल घड़ी में तुम ही तो हो मेरी सच्ची दोस्त। माँ अष्टभवानी, सूरखण्डा देवी नन्दा देवी और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की देवियों को प्रणाम करते हुए आज यहीं विराम लूँगी प्यारी डायरी कल फिर करेंगे बातें सुख दुःख की तब तक माँ के चरणो में समर्पित मैं।
तुम जगत कल्याणी
तुम ही दुर्गा तुम ही भवानी
कष्ट हरो विश्व कल्याण करो माँ
यही विनम्र विनती आज हमारी।