डाकिया
डाकिया
डाकिया डाक लाया, डाक लाया
खुशी का पयाम, कहीं दर्द नाम
डाकिया डाक लाया...
सुपर स्टार राजेश खन्ना की फिल्म का यह गाना तो आपने सुना ही होगा। साल 1977 में जब यह फिल्म रिलीज हुई उस समय एक-दूसरे की कुशल-क्षेम पूछने का यही सर्वोत्तम तरीका था।
एक चिट्ठी के इंतजार में दिनों-महीनों निकल जाते थे। फिर कहीं डाकिया दिख जाए तो पूछ-पूछकर उसे परेशान कर दिया जाता था कि हमारी चिट्ठी आयी या नहीं।
चिट्ठी ना कोई सन्देश
जाने वो कौन सा देश
जहाँ तुम चले गए
इस दिल पे लगा के ठेस
जाने वो...
परदेस गए किसी अपने की एक चिट्ठी के इंतजार में ऐसा लगता था कि सदियां बीत गई लेकिन कोई संदेश नहीं आया। हिंदी गीतों में भी इन चिट्ठियों के महत्व को बखूबी स्थान दिया गया था।
चिट्ठी आई है आई है चिट्ठी आई है -२
चिट्ठी है वतन से चिट्ठी आयी है
बड़े दिनों के बाद, हम बेवतनों को याद -२
वतन की मिट्टी आई है, चिट्ठी आई है ...
इस ग़ज़ल की लोकप्रियता ही यह बताने के लिए काफी है कि तत्कालीन समय में चिट्ठी और डाकिए की कितनी धमक थी।
मेरे पिया
ओ मेरे पिया गए रंगून
किया है वहाँ से टेलीफून
तुम्हारी याद सताती है।
1949 में पतंगा फिल्म का यह गाना सुपरहिट रहा हो लेकिन टेलीफोन भी चिट्ठियों के महत्व कम करने में असफल ही साबित हुआ.
समय बदला और टेक्नोलॉजी के अभूतपूर्व डेवलपमेंट के बाद इंटरनेट और मोबाइल कंपनियों की फ्री डाटा सर्विस के सामने चिट्ठियों और डाकियों की कमर ही टूट गई है। अब व्हाट्सएप और वीडियो कॉलिंग के दौर में इनको कौन पूछता है?
भारत में हर साल 10 अक्टूबर को राष्ट्रीय डाक दिवस मनाया जाता है। यह दिन पिछले 150 वर्षों से भारतीय डाक विभाग द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका को मनाने के लिए मनाया जाता है। भारतीय डाक विश्व डाक दिवस के विस्तार के रूप में मनाया जाता है।