दादू के मोटू-पतलू
दादू के मोटू-पतलू
दादी मुँह फुलाए बैठी थी। दीवाली में कांजीवरम साड़ी लेनी थी लेकिन दादाजी से कहा भी था। हर साल दीवाली में दादू दादी को उपहार में उनके मन मुताबिक भेंट दिया करते हैं। इस बार दादी ने आशा की थी कि कांजीवरम की साड़ी ही मिलेगी। लेकिन दादू ने ग़लती से बनारसी ले रखी थी। हर साल बनारसी देते थे। तो ध्यान नहीं रहा। जैसे ही दादी ने अपना उपहार देखा उनका मुँह उतर गया। उन्होंने कहा- "मेरे पास तो बनारसी बहुत हैं लेकिन कानजीवरम नहीं। बड़ा मन था लेने का,सोचा था इस बार आप वही ला दोगे। पर आपको तो बनारसी ही लेनी थी। मुझे नहीं रखनी ये।"
दादू बहुत परेशान हुए। शाम को सबके घर मिठाई और नमकीन भेजने होते थे। लाल रंग की बंधेज चित्रकारी के डब्बे में दादी हमेशा बेसन लड्डू और लंबे पतले सेव ही भेजा करतीं । दादू को एक तरकीब सूझी। रूठी हुई दादी को मनाने के लिए दादू के पास जैसे ये आख़री पैंतरा था। दादू ने जान बूझकर मिठाई में पेड़े और नमकीन में नमकपारे डब्बों में भर दिया। घर में काम करने वाला शामू डब्बों को पैक करने के बाद पहले दादी के पास ले जाता और एक एक का नाम लिखकर उनके घर पहुंचा आता । अब की बार भी शामू ने वैसा ही किया ।
दादी की नज़र जैसे ही डब्बों पर पड़ी उन्हीने उसे हर बार की तरह एक बार खुद खोल कर देखने लगीं। गुस्से में लाल होकर कहा- "शामू तुम जानते हो न हर साल दीवाली पे हमारे घर से जो डब्बे बांटे जाते हैं उनमें सिर्फ़ बेसन के लड्डू और सेव भुजिया हुआ करते हैं। ये पहचान होती है हमारे घर की। अब की बार ये ग़लती कैसे होगई तुमसे?"
शामू ने कहा- "माफ़ करदें मुझे, पर ये सब साहब ने रखवाया है। "दादी का गुस्सा और बढ़ गया।
फौरन दादाजी के पास गईं और कहा- "क्योंजी, आपको क्या होगया है,ये डब्बे आपने भरवाए हैं? "
दादू ने बड़े चलाकी से जवाब दिया-" अरे भागवान , समय के साथ कुछ चीज़ें बदल जाती है। अब हमेशा की तरह वही लड्डू और सेव की जगह ये भेजते हैं।
दादी- "बरसों से ये करते आए हैं, अपनी पहचान है इस डब्बे से। लोग इंतज़ार करते हैं हमारे बेसन के लड्डू और करकुरे सेव की। के कैसे बदल दें?"
दादू ने देर न कि और कहा- "हमेशा की तरह इस साल भी मैन वैसा ही सोचा था। हर साल दीवाली पे मैं तुम्हे बनारसी साड़ी ही देता हूँ। इस साल भी वही किया। लेकिन तुम नाराज़ होगई। लाल-हरी चूड़ियां, मां जी की दी हुई पुराने ज़माने के ज़ेवर और मेरी लाई हुई बनारसी साड़ी पहनकर जब तुम दिया जलाने आंगन में आती हो तो मेरी नज़रें, और पूरे मोहल्ले वालों की नजरें तुमपे टिकी रहती हैं। सब कहते हैं वो देखो आज भी रसिक लाल की पत्नी नई व्याही बहु जैसी लग रही है इस बार भी मैंने वैसा ही सोचा था। मगर तुम्हारी पसंद बदल गई। इसलिए मैंने सोचा अब तुम्हारी असली पहचान ही बदल रही है तो इन डब्बों भी बदल दूं।"
दादी का गुस्सा अचानक ठंडा होगया और वो दादू से कहने लगी- "सही कहा जी आपने, मैं अभी सज कर आती हूँ लेकिन इन डब्बों का क्या करें?"
दादू ने पहले से ही अलग से मिठाई के डब्बे बेसन के स्वादिष्ट लड्डू और कुरकुरे लंबे पतले सेव भरवाकर रखे थे। दादू ने टेबल के नीचे छुपा रखे थे।
शामू से कहकर वो डब्बे मंगवाए और दादी से कहा-" ये कभी हो सकता है भला की दीवाली पे हमारे घर से कोई और डब्बे जाएं, डब्बे तो यही जाएंगे और वो भी तुम्हारी मुस्कुराहट की मिठास के साथ। "
दादी मुस्कुराई और एक एक डब्बे पर नाम लिखवाकर शामू के हाथों भिजवाने लगीं। इस तरह वो बेसन के लड्डू और सेव मोटू- पतलू की जोड़ी बनकर दादाजी के परेशानी का हल बन गए। जैसे वो हर मुसीबत से नए नए तरकीब निकालकर बच जाते हैं। वैसे ही आज इनदोनो ने मोटू- पतलू बनकर दादाजी की समस्या का हल निकाल दिया।अब दादू और दादी हंसी खुशी से दीवाली का आनंद ले रहे हैं।