छपछप
छपछप
आज पहली बार बंटी तीन दिवसीय कॉलेज ट्रिप पर जा रहा था । जबसे छपछप को घर लाया था वह एक दिन के लिए भी घर से चौबीस घंटे के लिए बाहर नहीं रहा था। छपछप की पूरी जिम्मेदारी उसके सर पर थी । क्योंकि माँ ने इसी शर्त पर उसको अनुमति दिया था कि उसके देख रेख की सारी जिम्मेदारी उसकी होगी। माँ की स्वीकृति के लिए उसने उनकी सब बातें मान ली थी।
बबलू सरिता देवी का इकलौता लाडला बेटा है जो टॉयलेट में अपना साफ करने अलावे और कोई भी काम नहीं करता था । घर मे यहाँ का खर वहाँ भी नहीं टकसाता था। वैसे तो सरिता देवी को घर के काम में कोई भी हाथ नहीं बटाता था । फिर भी अपने पति और बेटे की जिम्मेदारी बोझ थोड़ी लगती है। उनका स्वास्थ जब गिरने लगा तो बर्तन-कपड़ा धोने के लिए बाइ भी रख दी गयी थी।
जब बबलू बडा हुआ तो उसकी इक्षा थी कि वह अपने घर मे एक पेट रखे - कुत्ता, बिल्ली, तोता , खरगोश या कछुआ - कुछ भी । पापा ने कहा मुझे कोई एतराज नहीं यदि तुम्हारी माँ तैयार हो तो !
बहुत कोशिश के बाद भी माँ नहीं मान रही थी । एक कारण तो यह था कि उनको पालतू जानवर रखने का शौक नहीं था दूसरा उनसे होने वाली गंदगी को कौन साफ करेगा । बबलू ने कहा कि पेट की देख रेख और सफाई की पूरी जिम्मेदारी मेरी, आप सिर्फ अनुमति दे दो। माँ ने सशर्त अनुमति दिया - जब तुमको बोर्ड एग्जाम में 85% प्लस मार्क्स आएगा तो तुम फिश रख सकते हो क्योंकि उससे रूम में कहीं भी गंदगी नहीं फैलेगी । माँ की तरफ से बात आई - गयी हो गई ।
लेकिन बबलू ने इस शर्त को पूरा करने की ठान ली। वैसे वह औसत दर्जे का स्टूडेंट था लेकिन इस चैलेंज के चक्कर मे उसने पढ़ाई पर कुछ ज्यादा ही ध्यान लगा दिया और बोर्ड में 92.5% मार्क्स लाया। अब माँ को उसकी बात माननी पडी लेकिन कंडीशन यही था कि फिश का पूरा देख रेख बबलू ही करेगा ।
बबलू ने 3x2 का एक फिश टैंक और उसका तामझाम खरीदा। माँ की अनुमति के बाद बजट की कोई समस्या नहीं थी। फिर ढाई हजार रुपए में एक फ्लॉवर हॉर्न सिकलिड फिश लाया। उसके लिए बेस्ट ब्रांड & क्वालिटी का दाना और कीड़ा मँगाया । पूरी तन्मयता से वह फिश का ख्याल रखने लगा । फिश टैंक साफ करना ,उसको समय पर खाना देना , उसके विकास का बारीकी से अवलोकन करना। उसके इस समर्पण और लगन को देखकर सरिता देवी ने कहा लगता है इस छपछप जलपरी का तुम पिछले जन्म में माँ था। उसदिन से बबलू के पेट फिश का नाम "छपछप" पड़ गया ।
यह फिश महँगी तो थी लेकिन बहुत ही खूबसूरत थी। बबलू धीरे धीरे एक ज्ञानी फिश लवर बन गया। उसने अपनी माँ को बताया कि यह जेनेटिकली मॉडिफाइड फिश ब्रीड है जिसको मलेशिया और थाईलैंड की खास प्रजाति के क्रॉस बीडिंग से1994 में बनाया गया है। ढाई इंच की छपछप काफी तेजी से बढ़ रही थी क्योंकि उसके देखरेख और खाना खोराकी में कोई कमी नहीं थी। बबलू उस पर रोज नई रिसर्च करता था । उसको समुचित तापमान देने के लिए हीटर भी लगाया गया। यह सब बातें सरिता जी को फालतू लगती थी लेकिन उनको लगता कि इसी फिश के चलते मेरा बेटा पढ़ना सिख गया । अतः फीस पर होने वाला मासिक खर्च उनको खलता नहीं था।
धीरे धीरे उनका भी छपछप से लगाव हो गया । वह किसी भी बाहरी मेहमान को देखकर छुपने का प्रयास करती और घर के तीनों सदस्यों को देखकर बिंदास घूमती थी। उसके इस शर्मीली स्वभाव के चलते सरिता देवी का मानना था कि वह मादा है। फिश टैंक के जिस तरफ सरिता देवी खड़ी होती छपछप उधर ही चिपकी रहती।
अपने गिरते स्वास्थ के चलते वो घर से बाहर बहुत कम ही जा पाती थी। बेटा के कॉलेज जाने और पति के ऑफिस जाने के बाद दो ही लोग घर मे बचते थे - सरिता देवी और छपछप । एक मसौढ़ी की और दूसरी मलेशिया की । उनको अपनी और छपछप की स्थिति एक जैसी लगती थी । दोनो चारदीवारी में कैद हैं। एक का दायरा छह फीट का और दूसरे का छह सौ फीट का। पति के पास उसके लिए समय नहीं है और पुत्र को उससे कोइ मतलब नहीं है क्योंकि उसकी दुनिया अलग है। दोनो का अकेलापन एक दूसरे के करीब लाता चला गया ।सरिता देवी के फिश टैंक के पास पहुँचते ही छपछप उछल कूद करने लगती। टैंक के बाहर से सरिता देवी जिधर उँगली घुमाती उधर ही छपछप जाती। उनकी उँगली रुकते ही वहीं रुक जाती। वक्त के साथ उन दोनों का यह मन बहलाने का खेल बन गया। उनके उँगली के इसारे पर वह उँची से उँची छलांग लगा देती।
अब बबलू की छपछप सरिता देवी की जरूरत बन गयी थी। अपनी माँ की छपछप के प्रति लगाव को देखकर बबलू बहुत खुश था । सरिता देवी ने जबसे उसको खिलाने का काम अपने हाथ में लिया छपछप को उनके हाथ से दान खाए बिना पेट ही नहीं भरता था । एक बार सरिता जी की तबियत खराब हो गयी और वो बेड से नहीं उठ पा रहीं थी तो छपछप ने खाना छोड़ दिया । बबलू को लग रहा था कि उसको कोई बिमारी हो गयी है। उसने इंटरनेट पर बहुत रीसर्च किया , कितने ऑन लाइन कंसलटेंट से पूछा , उनके बताए उपाय भी किया , लेकिन सब बेकार ।
इस बीच सरिता जी की तबियत में कुछ सुधार हुआ और वह जैसे ही फिशटैंक के पास बैठी छपछप उछल कूद करने लगी उनके दाना डालते ही खाने भी लगी। बबलू को छपछप का यह व्यवहार समझ में नहीं आया। उसने माँ से पूछा यह चमत्कार कैसे हो गया?
सरिता देवी ने कहा नारी मन को समझना पुरुष के वश में नहीं है ।
कुछ महीने बाद छपछप को कोई बिमारी हो गयी और बहुत उपाय के बावजूद भी उसे बचाया नहीं जा सका। सरिता देवी ने दूसरी मछली लाने से मना कर दिया क्योंकि फिशटैंक उनको कैद लगता था । धीरे-धीरे उनका स्वास्थ तेजी से बिगड़ने लगा और उनका अंतिम शब्द था "छपछप"।
