चार बुजुर्ग
चार बुजुर्ग
उस दिन तेईस दिसम्बर का सुबह का समय था। बेटा का जन्मदिन था। मंदिर गई थी।
वहाँ बहुत बंदर थे। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे पूजा करूँ? सुबह का समय था मंदिर में पंडितजी भी नहीं थे।
तभी चार बुजुर्ग आये मुझे परेशान देख के पूछा... पूजा करना है। मैंने कहां हाँ, पर मंदिर में बहुत बंदर है। उन्होंने कहां... जाओ पूजा करो हमलोग बंदर को भगा रहे है। मैंने आराम से पूजा की। उन चारों बुजुर्ग को प्रसाद भी दी। मंदिर से बाहर निकली तो सोची चारों बुजुर्ग की वजह से पूजा की हैं तो उन्हें प्रणाम करना चाहिए। जैसे मंदिर गई वहाँ सन्नाटा था। मैं चारों बुजुर्ग का राज आज तक जान नहीं पाई।

