पूर्णिमा
पूर्णिमा
शरद् पूर्णिमा के रात नियम है कि चाँद के चाँदनी मे खीर या बताशा या मिश्री या कोई भी उजला चीज थाली मे रख कर चाँद के रोशनी मे रखते है।बात उस समय कि है जब मै पहली बार प्रेग्नेंट हुई।
शरद् पूर्णिमा का समय चल रहा था।मेरा आँठवा महीना चल रहा था। शरद् पूर्णिमा की रात के समय मै सभी कामों से निश्चित हो गई ।सोने की तैयारी करने लगी।तभी मेरी सास ने कहा कि....चाँद की रोशनी मे मिश्री रख दो। शरद् पूर्णिमा की रात्रि है ओस गिरेगा तो मिश्री प्रसाद का रुप धर लेगा।मै भी उसी समय लकड़ी का पूजा का मडंप था उसी के पास आकर मिश्री का डिब्बा खोल के मिश्री थाली मे डालने लगी ।तभी एकाएक मडंप नीचे गिरने लगा तो मैने सोचा इसको ठीक से सेटिंग्स कर दूँ।सेटिंग्स के चक्कर मे मुझे अपनी प्रेग्नेंसी का ख्याल भी नहीं आया।मडंप को पेट के सहारा से पकड़ी तो पेट का बच्चा का एकाएक एक्टिव होना बंद हो गया।मेरा देह एकाएक तनाने लगा।मुझे चक्कर भी आने लगा ।समझ मे नहीं आ रहा था कि एकाएक क्या हो गया?ये जाके जल्दी से अपनी माँ से बोले तो सासु माँ ने कहां.... गरम चाय मे घी डाल कर पिये तो सब ठीक हो जायेगा।गरम चाय मे घी डाल कर पिया,तो आराम नहीं मिला उल्टी होना चालू हो गया।ये उसी रात को डॉक्टर के पास ले गये ।डॉक्टर ने उसी समय एडमिट करके दो सुई दी। साथ ही पानी चढाना शुरू कि जिससे मुझे आराम मिला।पानी जब शरीर मे जाना शुरु हुआ तो बच्चा भी एक्टिव हो गया। इस तरह एक पूर्णिमा को मडंप पेट पर पकड़ सेटिंग्स की दूसरे पूर्णिमा को यानी कार्तिक पूर्णिमा को प्यारी सी बेटी का जन्म हुआ।इसी घटना की वजह से मेरी बिटीया रानी का नामकरण भी "पूर्णिमा" हुआ।
