चाची जी
चाची जी
मुहल्ले मे एक चाची जी का रहना अनिवार्य है क्यूंकि कितना भी मेड घर-घर की सब कहानी सुना दे पर जो मजा चाची जी के हर घर की कहानी सुनने मे वह सुख कहीं नहीं मिलेगा।
हाँ तो हमारे मुहल्ले की चाची जी की बात ही निराली हैं।किसी भी घर मे पूजा हो बच्चा हुआ हो कोई सुख हो या दुख हो चाची जी हाजिर रहती हैं।
चाची जी धार्मिक प्रवृति की महिला हैं।एकादशी से महाशिवरात्रि तक पर्व चाची जी अपनी उंगली पर जोड़ कर बता देती हैं।कोई भी पर्व हो उसकी विधी -विधान सब बैठ के आराम से समझा जाती।एक दिन मीनु के कान मे बहुत दर्द था ।दर्द से रो रोकर घर मे सबको बेहाल कर दी। दवाई का कोई असर ही नहीं था ।चाची जी ने मीनु के रोने की आवाज सुन कर आई और उसे गोद मे लेकर बैठी ।अपने बेटे से बगीचे से सुदर्शन का पत्ता मँगवाई उसका रस निकाल कर मीनु के कान मे डाला। तुरंत ही मीनु का दर्द उड़नछू हो गया ।मीनु चाची जी के साथ खेलने लगी।
चाची जी से बात करने मे लगता हैं कि उनके पास हर समस्या का समाधान है।कुछ भी पूछना हो या किसी के बारे मे जानना हो तो सबसे पहले चाची जी ही याद आती हैं।चाची हैं भी हँसमुख और सहयोगी महिला ।
