बस स्टैंड
बस स्टैंड
सुबह सुबह का वक्त था आफिस के लिए बस का इन्तेजार में खड़े थे मैं और मेरी दोस्त बारिश का मौसम था
हमारे पास ही एक लड़का और लड़की खड़े थे रोज वो भी उसी वक्त उसी बस से जाया करते थे जिस से हम दोनों जाती थी
रोज हमको उनकी बातें सुनने को मिलती थी कभी दोनों खुश होते कभी कभी दोनों एक दूजे से रूठे हुए होते
उनके चेहरे के हाव भाव से ही हम समझ जाते उनके बीच की नजदीकियां दूरिया प्यार उन दोनों में बहुत था
जिसको भी पहले बस में सीट मिलती वो पहले एक दूजे को आफर करता अंत मे फिर वो लड़की ही बैठ जाती
उनकी लव स्टोरी बस स्टैंड से ही शुरू हुई थी ये देख कर खुशी होती है क्योंकि प्रेम तो कभी भी किसी से हो सकता है
प्रेम कभी उम्र जगह जाति पात नही देखता ये इंसान ही है जो हर दीवार बनाता है वरना प्रेम करने वालो के लिए कोई दीवार मायने नहीं रखती