शांति मिल जाए

शांति मिल जाए

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रमन और उषा की शादी हुए बरसो बीत गए थे। रमन एक दुकान में मैनेजर की नौकरी करता था। काम से उसको लौटने में अक्सर देर हो जाती।

रमन औऱ उषा के दो बच्चे थे जो बड़े हो गए थे और कॉलेज में पढ़ रहे थे एक बेटा और एक बेटी बेटी कविता और बेटा सचिन। उषा हमेशा रमन से कोई ना कोई फरमाईश करती और रमन पूरी करता रहता। उषा की किटपीट से रमन परेशान रहने लगा। उषा बहुत फालतू के खर्च करती और रमन की एक ना सुनती।

एक दिन इसी किटपीट के चलते रमन की नौकरी चली गयी घर चलाना मुश्किल हो गया रमन पर बहुत से कर्जे हो गए। घर उसने बीवी के नाम किया  हुआ था। बीवी ने उसको बाहर का रास्ता दिखा दिया। 

रमन बेघर हो गया बीवी उसको घर के आस पास भी ना आने देती। उसको तलाक दे दिया। रमन घूमता फिरता दूसरे शहर में चला गया वहाँ उसे छोटी सी नौकरी एक बुटीक में मिल गयी।

वो वही रहने लगा।

बुटीक की मालकिन का कोई नहीं था। दोनों में प्यार हुआ और दोनों साथ साथ रहने लगे शादी करके।

इधर उषा बेटी की शादी अपने भाई बहनो की मद्त से करती है। पर अपने पति को बुलाती नहीं कार्ड पर उसका नाम भी नहीं लिखती।

रमन के दिल को ठेस लगती है उसको अटैक आ जाता है। उषा ना खुद जाती है ना बच्चो को जाने देती हैं।रमन की दूसरी बीवी श्वेता उसका इलाज करवाती है। अपनी जमा पूंजी उस पर लगाती है।रमन की हालत कुछ समय तक ठीक रहती है पर फिर भी वो अपने बच्चो को मिस करता और उसे दोबारा अटैक आता है और वो मर जाता है। उषा फिर भी नहीं जाती पर बेटा माँ से लड़कर जाता है और पिता की अंतिम संस्कार करता है। जब बेटे की शादी होती है तो बेटा अपने पिता का नाम कार्ड पर छपवाता है। शायद इसी तरह से उसके पिता की आत्मा को शांति मिल जाये।


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