बरगद का पेड़
बरगद का पेड़
वह एक अत्यंत व्यस्त सड़क थी। सड़क के बाईं ओर करीब बीस -तीस फुट पर एक बरगद का पेड़ था। आसपास दो तीन मंजिला अनेक दुकानें थीं; स्टेशनरी की,हलवाई की, फल सब्जियों की, ड्राई क्लीनर की और ठीक बरगद के नीचे था एक मंदिर ,जहां महिलाएं वट सावित्री और अहोई पूजा के दौरान पूजा करने के लिए एकत्रित होतीं, हम बच्चे भी प्रसाद मिलने की आस में मां के साथ जाते। यह बरगद लगभग 15 मीटर ऊंचा था जिसकी बहुत लंबी लंबी जताएं थीं।
और तना मजबूत था। यह एक घना छायादार वृक्ष था, जिसको काटने के बारे में कभी किसी ने नहीं सोचा था,बावजूद इसके किकाई दुकानें उस पेड़ की जद के नीचे आती थीं।लोग- बाग इसके चबूतरे पर बैठे रहते। बच्चे खेलते रहते।
मेरे स्कूल के रास्ते में वह बरगद का पेड़ पड़ता था। कभी जब पांच पैसे मिल जाते तो मैं पास की दुकान से खट्टी- मीठी गोलियां खरीदने के लिए रुक जाती थी।यूं भी इस जगह रोजाना कुछ न कुछ ऐसा होता रहता की मैं उसे देखने के लिए रुक जाती।कभी मदारी का खेल, जिसमें बंदर रूठी बंदरिया की मनाने की कोशिश में लिपस्टिक, चुनरी और पायल देता, कभी सपेरा सापों की पिटारी खोल कर बीन की धुन पर सांपों को नचाता, कभी नट करतब दिखाते दिख जाता। कोल्हू का बैल गोल- गोल घूमता, कैसे घानी से तेल निकलता, बुढ़िया के बाल वाला और कैंडी के चिड़िया,तोते...कितना कुछ तो था।
एक दिन स्कूल से लौटते हुए देखा कि पेड़ के नीचे बहुत भीड़ लगी है। वर्दीधारी पुलिस वाले हाथों में डंडे लिए भीड़ को हटने को कह रहे हैं। पुलिस के नाम से ही रूह फना होती है,मगर इतने लोगों की मौजूदगी ने मुझे भी हिम्मत दे दी। मैं भी रुक गई। माजरा क्या है, मैं अपनी उत्सुकता रोक नहीं पाई।
सभी ऊपर बरगद के पेड़ की तरफ देख रहे थे। पहले तो कुछ नजर नहीं आया,क्योंकि वह एक घना वृक्ष था
और उसकी पत्तियां बड़ी-बड़ी थीं, जो धूप को भी कैद किए रहती थीं। फिर धीरे-धीरे जो नजर आया वह दिल दहलाने वाला था। वहां किसी का सिर, काले बाल नजर आ रहे थे। मानो कोई लेटा हुआ है।
पुलिस के दो सिपाहियों को ऊपर चढ़ने की हिदायत दी गई, उन्होंने करता कहा वह तो नहीं मालूम मगर फिर जिसे उतारा गया वह था 15 -16 वर्ष के किशोर का मृत शरीर।
दरअसल मकर सक्रांति के आसपास खासकर गुजरात में उतरायण की बहुत धूम होती है। प्रतियोगिताएं आयोजित होती है।गलियों में,छतों पर बच्चे पतंग उड़ाने और लूटने के लिए दौड़ लगाते रहते हैं। अक्सर चलते वाहनों की चपेट में आ जाते हैं। कुछ बिना मुंडेर की छतों से नीचे गिरकर प्राण खो देते हैं। यह लड़का भी शायद पेड़ पर चढ़ा होगा और शायद बिजली के तारों के करंट ने उसकी जान ले ली होगी। कारण जो भी रहा हो, एक घर का चिराग बुझ गया था।
उसके बाद जब भी मैं उस बरगद के पेड़ के पास से गुजरती, मेरी निगाहें उसकी पत्तियों को भेदने की कोशिश करतीं। मुझे वहां से गुजरने पर अक्सर वह मंजर आंखों के आगे गुजर जाता।
मैंने सुना था बरगद जीवनदाई वृक्ष होता है, क्यों नहीं इस बरगद ने उस बालक का जीवन बचाया ?