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Krishna Raj

Abstract

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Krishna Raj

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ब्रेकफास्ट उनके साथ.. उफ्फ

ब्रेकफास्ट उनके साथ.. उफ्फ

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अजी ,, काहे का नाश्ता... खाने पीने में तो उत्तर दक्षिण हैं हम और हमारे वो... हे शिव, कैसे साधु से पाला पड़ा है... हम ठहरे नमकीन और वो जनाब मीठे.. दूर दूर तक नाता नहीं उनका,, पकौड़े, समोसे, वड़े, उफ्फ क्या क्या गिनवायें..कई बार इच्छा होती है कि चलो आज नाश्ते में पकौड़े बनाते हैं, तो ज़वाब मिलता है,, तुम अपने लिए बना लो न,,

लो कर लो बात,, हम दो जीव, उस पर भी अकेले के लिए ये ताम-झाम भला कौन करे,, रह जाते हैं मन मार कर,,ना सब्जी तरकारी ढंग की खाते हैं ना कोई चटपटा सा नाश्ता ही करते हैं... और तो और आलू के पराठे भी नहीं खाते.. अब बताइए. इसके लिए कौन कमबख्त मना करता है.... पर हमारे भोलेनाथ का क्या करें..जैसा मौसम वैसा खान पान.. ये मंत्र का जप करते हैं.. आजकल तो सुबह सवेरे खरबूजा और छुरी लेकर बैठ जाते हैं.. हाय कित्ते प्यारे दिखते हैं उस रूप में.. जैसे कान्हा माखन की मटकी लिए बैठा हो...

अरे अरे,, भटक गए न हम.. शिकायत करते करते गुणगान करना शुरू कर दिया..क्या करें वो हैं ही ऐसे.. पर आज न सच में पकौड़े खाने का बड़ा मन कर रहा है... देखते हैं शाम को आयें ऑफ़िस से तो मनाते हैं कि आज हमारी इच्छा पूरी कर दें...वैसे भी आगे हमारे नाश्ते पर बैन लगने वाला है..

तरबूज खरबूज के बाद आम भी आने वाला है..



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