बोतल का पानी
बोतल का पानी
कहते हैं कि अजमेर शरीफ दरागाह पर जो मन्नत मांगो पूरा हो जाता है।हमिद मियाँ अपनी बीबी नजमा खातून को अजमेर शरीफ के दरागाह पर चादर चढ़ाने के लिये साथ ले जा रहे हैं।हमिद मियाँ और बीबी की मन्नत पूरी हो गई है वही दरागाह पर चढावा के लिये दोनों मियाँ बीबी साथ जा रहे है। चलते चलते नजमा को प्यास से गला सूखने लगता है।वह थक कर एक चबूतरे पर बैठ जाती हैं।हमिद मियाँ बोतल मे देखते है कि पानी खत्म हो गया है।वह आस पास पानी के लिये चापा कल -नल देख रहे है पर पास मे कोई छोटा दुकान भी नहीं है।एक छोटी सी लड़की गंगा का स्कुल से छुट्टी हो गयी है।वह पास के गाँव की छोटी सी लड़की है।रोज छुट्टी के समय मम्मी अपने साथ उसे ले जाने के लिये आ जाती है ।आज मम्मी का तबीयत ठीक नहीं है सो नहीं आई हैं।उछलती कूदती गंगा घर की तरफ जा रही है।हमिद मियाँ छोटी सी लड़की गंगा से पूछते है..."बेटा आस पास कहीं पानी मिलेगा।"गंगा हमिद मियाँ के तरफ देखती हुई कहती है..... "पानी तो मेरे बोतल मे ही भरा है ।आप पानी अपने बोतल मे ले लो।" पहले हमिद मियाँ सकपकाते हैं फिर अपनी प्यास से व्याकुल बीबी को देख गंंगा से पानी ले लेते हैं।और अपनी बीबी नजमा खातून की प्यास को बुझाते हैं।इसीलिये कहा गया है......नींद न देखे बिस्तर-तकिया,भूख-प्यास न देखे जात -धर्म।