बंजारा पंद्रह अगस्त
बंजारा पंद्रह अगस्त
गांव में सड़क स्वीकृत हो गई। सबके मजे ही मजे हो गए। बीच चौक की कुल दो चार दुकानों पर चहल-पहल बढ़ गई। गाँव की पिछली पीढ़ी तो सड़क के ख्वाब देखते -देखते ही चल बसी।गाँव की नदी जो कि अब नाले में तब्दील हो गई है उसके चारों और कई तंबू खिंच गए हैं।
गृहस्थी परिवार लेकर मजदूर आ गए हैं आठ दस महीने की तो छुट्टी हो गई,सड़क पूरी होने तक अब इधर-उधर नहीं भटकना पड़ेगा।
लाली भी आई है अपने माँ बाबा के साथ, नाले के किनारे एक तंबू में दो बरस के अपने भाई को दिन भर खिलाती रहती है। यूं तो पाँच बरस की है पर है बड़ी वाचाल। माँ बाबा तो सुबह से काम पर निकल जाते हैं। जब भाई सो जाता तो वह तंबू से बाहर निकल कर नाले के किनारे खड़े होकर टुकुर-टुकुर सारे गाँव को देखती रहती।
उसे सबसे ज्यादा आकर्षित करते स्कूल जाने वाले बच्चे। सब एक जैसे कपड़े पहन कर तैयार होकर जाते तो उसे देखने में बड़ा मजा आता। गाँव का प्राइमरी स्कूल नाले के अंतिम छोर पर था, जाने वाले अधिकतर बच्चे उसके तंबू के सामने से होकर ही गुजरते थे। जब घंटी बजती तो सारे बच्चे ख़ुशी से चीखते हुए स्कूल से घर की ओर भागते लाली भी अपनी जगह पर जोर-जोर से ताली बजाने लगती।
इधर कुछ दिनों से स्कूल में बहुत चहल-पहल बढ़ गई है। ढोलक पेटी बजने की आवाज स्कूल से आने लगी है, लाली बड़े आश्चर्य से कोशिश करती जानने की कि आखिर स्कूल में चल क्या रहा है? पर उसे कुछ समझ नहीं आता।
तंबू के सामने एक झोपड़ी नुमा घर में रहने वाली मुनिया जो एक आध बरस लाली से बड़ी ही होगी लाली की सहेली बन गई है उसी ने लाली को बताया की स्कूल में पंद्रह अगस्त आने वाला है। लाली की आँखें खुशी से चमक उठी जब उसे यह पता चला कि उस दिन खूब नाच गाने होंगे और बच्चों को लड्डू भी मिलेगा। मुनिया ने लाली से कहा कि बहुत सुबह तैयार हो जाना तो वह उसे भी ले जाएगी। मुनिया ने यह भी बताया की पंद्रह अगस्त को अच्छी धुली हुई फ्राॅक पहनना पड़ेगी और अच्छे से कंघी करना पड़ेगी। बस ....फिर क्या था लाली की खुशी का ठिकाना न रहा।
पिछली बार मेले से जो फ्राॅक खरीदी थी वो माँ ने संभाल रखी है। और हाँ ... वो माँ बाबा को कह देगी जिस दिन पंद्रह अगस्त आएगा
न... उस दिन छोटे बाबू को वह नहीं संभालने वाली वो तो जाएगी मुनिया के साथ और फिर खूब मजा आएगा।
एक दिन पहले मुनिया फिर जता गई लाली को कि कल जल्दी तैयार हो जाना। लाली ने पूछा नहीं बस फैसला सुना दिया माँ को कि कल मैं भी स्कूल जाऊंगी मुनिया के साथ।लाली के बाबा ने भी कहा कि जाने देना छोरी को यही चार हाथ पे तो स्कूल है। लाली समझ गई थी कि पंद्रह अगस्त सुबह सुबह बहुत जल्दी आने वाला है।
सुबह पाँच बाद में बजे लाली पहले उठ गई। एक बाल्टी से पानी भर लाई, खूब मल-मल के नहायी। नई वाली फ्रॉक पहनी माँ ने तेल डालकर अच्छी चोटी कर दी। आहा.. मजा आ गया लाली को तो..। फुदकने लगी यहाँ से वहाँ...जितने ज़्यादा लोग नई फ्राॅक देखे उतना अच्छा। मुनिया को बिलकुल तैयार मिली लाली।बस दोनों हाथ पकड़ कर स्कूल में पहुँच गई।
सरपंच जी ने झंडा वंदन किया ...सब बच्चों ने राष्ट्र-गान किया। इसके बाद लड्डू बांटे गये।
गाँव के पटेल साहब ने हर बच्चे को जलेबी खिलायी। लाली ने तो जैसे ही जलेबी मुँह में रखी गले तक रसभर आया। और आज तो लाली की किस्मत इतनी अच्छी थी कि एक मैडम ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए अपने पास का भी लड्डू और केला भी उसे दे दिया।
बस इसके बाद रंगारंग कार्यक्रम शुरू हुआ बच्चे खूब नाचे और लोगों ने खूब तालियाँ बजायी सबसे ज्यादा तालियाँ बजायी लाली ने। जब कुछ बात समझ में नहीं आती तो लाली इधर-उधर देखती और जब सारे लोग
ताली बजाते तो वो भी उछल-उछल कर बजाने लगती। कार्यक्रम की अंतिम प्रस्तुति हो चुकी थी, मुनिया ने लाली का हाथ पकड़ा और घर की ओर चल दी। लाली अभी बिल्कुल नहीं जाना चाहती थी, पर मुनिया ने बताया कि अब पंद्रह अगस्त खत्म हो गया। मुनिया का हाथ थामे वह आगे तो बढ़ रही थी पर मन वहीं पीछे छूट रहा था। लाली ने मुनिया से पूछा कि यह पंद्रह अगस्त इतनी जल्दी क्यों चला जाता है। तो मुनिया ने बताया था कि हर साल इतने बजे ही चला जाता है।ये केवल स्कूल में ही आता है तो फिर माँ-बाबा को कैसे दिखाएगी जब उसने मुनिया से पूछा तो उसने कोई जवाब नहीं दिया। बहुत सोचने के बाद भी लाली अपनी सहज बुद्धि से इस प्रश्न का जवाब नहीं पा सकी कि पंद्रह अगस्त उसके माँ बाबा के लिये कब आयेगा?