कसौटी
कसौटी
"क्यों रे गज्जू, तूने तो अभी से झोपड़ी टिप-टॉप कर ली।"
"अरे ! साहब... आप...कुछ अखबार के लिए पूछने आए हो.. क्या?" गज्जू ने झोपड़ी के बाहरी हिस्से को मजबूत और मोटे कपड़े से ढँक कर उसे तारों से कसते हुए कहा।
"अखबार का आदमी हूँ पूछूँगा तो सही ...पर तुम्हारी झोपड़ी देखकर मन प्रसन्न हो गया...चेहरा भी देखो कैसा खिल गया है।"
"अरे साहब क्यों मजाक करते हो... मानसून के पहले सब ठीक-ठाक करना पड़ता है... अभी टाइम मिल गया है फिर काम पर लग जाऊँगा.. ।"
" सीधे-सीधे पूछता हूँ...कौनसी पार्टी सही लगती है?"
" हम गरीबों का क्या... जो समझ में आ गया वह पार्टी अच्छी।"
" यार तुम सीधे-सीधे नहीं बता रहे हो... अच्छा चलो इतना बताओ पिछले चुनाव में तुम्हें कौन सी पार्टी का उम्मीदवार अच्छा लगा था और क्यों?"
"सही बताऊँ... साहब जो निर्दलीय खड़ा हुआ था न वही अच्छा लगा।"
"निर्दलीय.... वह तो हार गया था न?"
"हाँ साहब...।"
" फिर...क्या तुम्हारी जान पहचान का था...या तुम्हारा कुछ काम करवाया क्या उसने?" पत्रकार ने आश्चर्य से पूछा।
"बाकी के तो बैनर फट गए...पर साहब उसने इतने अच्छे कपड़े के बैनर बनवाए थे कि...बाद में सब मेरी झोपड़ी में काम आ गए....कित्ती बारिश हुई...एक बूंद पानी अंदर नहीं आया साहब ।"
