मधुबाला
मधुबाला
वह गोल गोल घूम कर, नाच रही थी....जोर-जोर से तालियाँ बजा रही थी। आजू-बाजू के घरों से निकल कर लोग भी पटेल साहब के घर में झुंड के झुंड बनाकर उस किन्नर का नाच देखने आ पहुँचे थे। सँजी-सँवरी मधुबाला कान में झुमके होठों पर लाली और आँखों में काजल सजा के जिस कदर इठला कर नाचती कि देखने वाले अपलक देखते ही जाते ।उसका अपना ग्रुप था सख्तजान इतनी कि जो मुँह से निकल गया लेकर ही जाती। मुँहफट इतनी कि घर-गुठान वाले तो उसके आने से घबराते।
कोई भी शुभ काम हो घर में तो जब-तक वह आकर नहीं चली जाती धुक-धुकी ही बनी रहती मन में। पटेल साहब के घर पोता होने की खुशी में आज आ धमकी है... पटेल साहब समझा समझा के हार चुके हैं...."भई ...ग्यारह सौ रुपए दे तो रहा हूँ...।" "पटेल बाबू .... मैं कोई ऐरी-गैरी नहीं हूँ, जो कुछ भी फेकोगे तो उठा लूँगी...मै मधुबाला हूँ मधुबाला....।"
अब वह ज़ोर-ज़ोर से तालियाँ बजा... शिकायती लहज़े में नाचने लगी,साथी किन्नर जोर-जोर से ढोलक पर थाप दे रहा था। पटेल साहब भी क्रुद्ध हो गए थे....वे ग्यारह सौ से दो हजार को भी पार करते हुए... दिल पर पत्थर रखते हुए तीन हजार पर आ गए थे ... पर वह तो टस-से-मस न हुई। अपने हाथ में रखे नन्हे को जोर-जोर से झुकाने लगी, "ऐ लल्ला... तेरे न्यौछावर को अटरिया में पैसे नहीं ...।" पटेल साहब भी खामोशी से एक जगह बैठ गए ... ।
लल्ला की मां को ससुरजी के सामने आ तो न सकती थी... पर नन्हे को जोर-जोर से उछालना उसे देखा ना गया... और वह व्याकुल सी आकर पल्ले की ओट से बड़ी कातर निगाहों से देखने लगी हालांकि उसे पता था वह कह कुछ नहीं पाएगी। अचानक नाचती हुई मधुबाला के पैर में मानों ब्रेक लग गया... उसने बच्चे को पटेल साहब के हाथ दिया, जो रुपए सामने रखे थे उठाए और नन्हे की सलामती की दुआ करते हुए निकल गई। ढोलकी वाले रूपा किन्नर को बड़ा आश्चर्य हुआ.."जब पटेल बिल्कुल देने को हुआ तो...तूने नाच ही रोक दिया!" "... .. बच्चे की माँ की आँख में...जो कुछ देखा न....अपनी माँ याद आ गई...जब घर, से मुझे डेरे पर लाया जा रहा था...मैं तो बहुत छोटा था... बस माँ थी जो बेबसी से देखती रही...पल्ले की ओट से... गली के मोड़ तक ...जब तक मैं उसे दिखता रहा।"
