जरूरत
जरूरत
"हलो.. भैया मैं बाबा को सुबह लेने आ रहा हूँ... आप बार-बार फोन कर रहे थे पर क्या करूँ खेत में खड़ी फसल थी छोड़ कर आ भी नहीं सकता था बस इसीलिए थोड़ी देर हो गई।" रमेश ने बड़े भाई महेश को देरी का कारण बताते हुये कहा।
करीब एक महीने से बाबा शहर में बड़े बेटे के पास बड़े शौक से रहने आये थे ....रमेश को बड़े भाई के फोन लगातार आ रहे थे उसमें स्पष्ट तो नहीं पर सांकेतिक कुछ ऐसा होता था ...जैसे वो संकोचवश कुछ कह न पा रहे हो.... उसकी सोच का आसमान उनकी अस्पष्ट बातों से धुंधला रहा था।
पर पिछले तीन चार दिन से तो भैया के बार-बार फोन आ रहे थे, और अब वे स्पष्ट बोल रहे थे की आओ बाबा को ले जाओ।
"अरे सुन छोटे अब आने की जरूरत नहीं है बाबा को लेने के लिए।" बड़े भाई ने अचानक फैसला बदल छोटे को आश्चर्य चकित कर दिया।
" क्यों भैया दो तीन दिनों से तो आप बार-बार फोन पर यही कह रहे थे कि तेरी भाभी उनके साथ एडजस्ट नहीं कर पा रही है...बाबा को ले जाओ.. बाबा को ले जाओ। अब क्या हुआ?"
"अरे छोटे... आज ही पता चला कि तेरी भाभी का ऑफिस अब ऑफलाइन हो गया है अब उसे ऑफिस जाना पड़ेगा...और सनी इतना छोटा है कि उसे अकेला घर में नहीं छोड़ सकते बाबा रहेंगे तो संभाल लेंगे इसलिए अब उनको हमारे साथ ही रखते हैं।"
..........
"भैया...आप बाबा को अपने साथ रखना चाहते हैं... परंतु मैं बाबा के साथ रहना चाहता हूँ... बस इसीलिए आपके न कहने पर भी आ रहा हूँ बाबा को लेने के लिये... माफ करना भैया ...सुबह पहुँच रहा हूँ।"
अब आसमान से बादल छँट चुके थे।
