पाठशाला
पाठशाला
"हलो...नंदनी बोल रही है?"
"हलो ...जी मैम...मैं नंदनी।"
"तुम्हे क्या बोलूँ समझ नहीं आ रहा...न तो तुम फोन उठाती हो ...न कोई तुम्हारे घर से साल भर पैरेंट्स मीटिंग में आया...ये कम से पचासवाँ फोन काल होगा...कुछ सुनाई आ रहा है या नहीं।"
"जी आ रहा है...।"
"अब देखो! हिंदी का परिणाम तो हर बार सौ प्रतिशत आता था ...ये इस बार एक लड़की ने हिंदी का भी रिजल्ट बिगाड़ दिया।इस विषय में तो पास हो जाती ...तुम तो सभी विषय में फेल हो...हो कहाँ तुम और तो और रिजल्ट लेने आने तक के तुम्हारे ठिकाने नहीं हैं।"
"मैम मैं हास्पिटल में हूँ मम्मी भर्ती है...।"
"ओह...ठीक है अभी भर्ती हैं पर तुम्हारी लापरवाही तो पिछले सात-आठ महीने से चल रही है ...पिताजी कहाँ हैं तुम्हारे?"
"जेल में...।"
"क्या कहा! जेल में...क्यों?"
"मम्मी को मारना चाह रहे थे तीन बार चाकू से मारा फिर लोगों ने पकड़ लिया...
खून बहुत बह गया था बड़ी मुश्किल से हास्पिटल लेकर आई मैं फिर पुलिस भी आ गई...।"
"कब की बात है ये?"
"मैम आठ महीने पहले की...तब से आज तक हर दस बारह दिन में मम्मी को भरती करवाना पड़ता है।"
"ओ हो तुम्हारा कोई रिश्तेदार नहीं है?"
"कुछ दिन कुछ ने साथ दिया पर ...सात आठ महीने लगातार कौन साथ देगा..।"
"तुम्हारा भाई...नहीं है?"
"बस नशे के पैसे माँ नहीं देती थी तो पिताजी यही तो ताना देते थे कि बेटा पैदा किया होता तो अभीतक मुझे कमाकर देने लगता।"
"ओह...।"
"पर मैम माँ के इलाज में मैंने कोई कमी नहीं आने दी।"
"तुमने क्या किया बेटा...?"
"मम्मी घर पर झूलाघर चलाती थी ...मैंने वो बंद नहीं होने दिया...और मम्मी की देखभाल भी की...मैम मैं तो पेपर देना ही नहीं चाहती थी...पर मम्मी की बहुत इच्छा थी ...फोन भी रिचार्ज नहीं करवा पाई ।मुझे तो मालूम था कि मैं फैल हूँ।"
"बेटा तुम फेल नहीं हो...क्या कहूँ तुम्हें...तुम जिस पाठशाला में हो वहाँ तुम मेरिट में हो बेटा इसका आकलन नंबर नहीं कर सकते।"
