बंधन

बंधन

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"मल्लाह चाचा,क्यों बाँध कर रखते हो नाँव, कहीं चली जायेगी क्या ? या कोई चुरा ले जायेगा ?"

सुमन ने नदी किनारे बंधी नाँव की ओर इशारा कर पूछा। रोज की तरह आज भी वो नदी किनारे तक टहलने आयी थी। "अरे बिटिया, ये जो हमाई कुमरी (नाँव) है न ,बहुतै मनमौजी है।लहरन के साथ खेलती कूदती निकल जायेगी दूर।

फिर हाथ न आयेगी हमाए।" सुमन सोचने लगी, मल्लाह चाचा और बाबा एक ही तरह से सोचते है।कल मैने बाबा से कहा-- " बाबा मैं दसवीं के बाद आगे भी पढ़ना चाहती हूँ। मुझे विश्वास है इस बार भी परीक्षा मे मेरे नम्बर अच्छे आयेंगे।" "बहुत पढ़ लिया बिटिया।

देव उठान के बाद ,इसी साल तुम्हारा विवाह हो जाएगा।घर परिवार अच्छा है।गोविंद अच्छा लड़का है" "पर बाबा---'" "कोई पर वर नहीं। नारायण बाबू की बिटिया भी शहर पढ़ने गई थी।का हुआ उसका ? दो साल बाद लहास मिली वहाँ तालाब में जाने खुद मरी कि मार कर फेंकी गई।

सुनने मे तो आया की वो-------" आगे की बात बाबा न बोल पाये पर मैंने सुना था बिन्दिया दीदी के पेट मे दो माह का गर्भ था। इन्ही विचारों मे डूबती उतराती वो घर पहुंची।आज उसका बोर्ड परीक्षा का रिजल्ट भी आना है। उसने देखा घर पर, स्कूल की प्रिन्सिपल बहिन जी बैठी थीं अखबार लिये।

उन्होंने सुमन को गले लगा लिया, बोली--- "सुमन तुमने बोर्ड परीक्षा में जिले में टॉप किया है।इस छोटे से कस्बे का नाम रोशन किया है तुमने। हम सबको तुम पर गर्व है" खुशी के आँसू बाबा की आंखों के कोरों तक झिलमिला गये थे। बोले---- "बिटिया तुम आगे भी पढ़ोगी, जितना चाहो पढ़ो।आशीर्वाद है हमारा तुमको।"

इस कथा के माध्यम से मेरी मानना है किसी की भी प्रतिभा पर बंधन नहीं रखना चाहिये।


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