बंद दरवाजे का राज
बंद दरवाजे का राज


मुझे ऐसा लगा कि कोई मुझे सुन रहा है..... अचानक दरवाजे के बाहर कुछ आहट सुनाई दी खोल के देखा तो दो तीन स्टूडेंट्स बाहर खड़े थे नीलांजना भी एकदम से सकपका गई...... और चुपचाप सिर झुका कर अपनी क्लास में चली गई।
बात उन दिनों की है जब शादी के बाद नीलांजना की तीव्र इच्छा होती थी आगे की पढ़ाई जारी करने के लिए। जिसमें उसके पतिदेव नलिन ने पूर्ण सहयोग प्रदान करते हुए आगे की पढ़ाई जारी करने की स्वीकृति दी।अब क्योंकि नीलांजना का एमएससी कंप्लीट हो चुका था तथा बी.एड़. करनें की हार्दिक इच्छा थी उसका एक कारण यह भी था कि पतिदेव बी एड कॉलेज में लेक्चरर थे।बस फिर क्या था जोश जोश में नीलांजना ने बी एड का एंट्रेंस एग्जाम अच्छे नंबरों से पास कर लिया और पतिदेव के ही कॉलेज में दाखिला लिया।
चूंकि संयुक्त परिवार था और पतिदेव को घर में बात करने का ज्यादा वक्त नहीं मिलता था और रात में भी पतिदेव अपने परिवार के साथ बातचीत में व्यस्त रहते नीलांजना थकी हारी जल्दी सो जाती थी जब तक पतिदेव कमरे के अंदर आते वह गहरी निद्रा में सो जाती। तो दोनों को बात करने का मौका भी कम ही मिलता था।तय हुआ कि घर के काम जल्दी से खत्म करके नीलांजना कॉलेज में जल्दी पहुंच जाएगी और नलिन को वहां एक अलग से रूम मिला हुआ था तो दोनों घंटों वहीं बैठ कर बातें करेंगे ।दोनों को देखकर ऐसा लगता था जैसे कि कॉलेज के युगल प्रेमी प्रेमिका हो......
नीलांजना को देखते ही कॉलेज के स्टूडेंट्स आपस में खुसर फुसर करने लगते और देख देख कर मुंह बनाते।नीलांजना को समझ में नहीं आता था कि क्या बात है अक्सर जब वह नलिन से बातें करके बाहर निकलती तो कोई ना कोई बाहर खड़ा उन दोनों की बातें सुन रहा होता ।
कॉलेज में नीलांजना की एक बहुत अच्छी फ्रेंड बन गई थी मनीषा वह भी आजकल उखड़ी उखड़ी सी रहती अच्छे से बात नहीं करती थी।एक दिन कमरे का दरवाजा आधा खुला रह गया था नलिन नीलांजना का हाथ अपने हाथों में लेकर बड़े प्यार से कुछ कह रहा था कि अचानक दोनों को लगा जैसे बाहर कोई सुन रहा हो नीलांजना हड़बड़ा कर बाहर निकली तो देखा मनीषा खड़ी थी।
मनीषा ने बड़ी हिकारत भरी नजरों से नीलांजना को देखा.......
"और बोली मुझे तुमसे यह उम्मीद नहीं थी
नीलांजना आश्चर्य से बोली "क्या???"
मनीषा ..."जान कर भी अंजान बनती हो??"
"यार !!अब बताओ भी ऐसा मैंने क्या कर दिया??"
नीलांजना गर्दन झटकते हुए बोली ।
"मनीषा -अब मेरा मुंह मत खुलवाओ बहुत दिनों से तुम्हारी हरकतें देख रही हूं तुम यहां पढ़ाई करने आती हो कि यह सब करने आती हो तुम्हारे परिवार वालों ने कितने विश्वास के साथ तुम्हें यहां पढ़ने भेजा और तुम!!! यहां इश्क लड़ाती हो। और आज तो तुमने हद ही कर दी सर का हाथ पकड़कर बातें कर रही थी तुमने यह सीमा भी लांघ दी ??"
अब नीलांजना का पेट पकड़कर हंसते-हंसते बुरा हाल हो गया।मनीषा अभी भी गुस्से में थी कितनी बेशर्म हो तुम कैसे बेशर्म की तरह हंस रही हो।
नीलांजना "अब हसूं ना तो क्या करूं?तुमने इल्जाम भी इतना प्यारा लगाया है कि मैं वर्णन नहीं कर सकती मन कितना खुश हो गया।"
अब हैरान होने की बारी मनीषा की थी "यार !! पहेलियां मत बुझाओ सीधे-सीधे शब्दों में बताओ क्या कहना चाह रही हो।"
और नीलांजना हंसते-हंसते पेट पकड़ते हुए बोली "यार अपने पति के हाथ ना पकड़ूं तो और किसके हाथ पकड़ू?"
"क्या कहा तुमने फिर से एक बार बोलो"
"अरे बाबा हां भाई हां तुम्हारे सर मेरे पतिदेव हैं और हम लोगों को घर पर बात करने की फुर्सत नहीं मिलती इसीलिए हमने तय किया था कि कॉलेज में कुछ वक्त साथ में बिताएंगे और यह छुप-छुपकर बिताया हुआ वक्त हमारे भविष्य में सुनहरी यादें बनकर जीवन रूपी एलबम में हमेशा के लिए कैद हो जाएगा।"
बंद दरवाजे के अंदर का राज जानकर मनीषा की भी सारी गलतफहमियां दूर हो गई और वह
खुश होते हुए अपनी सखी के गले से लिपट गई।फिर कॉलेज में जो चर्चे हुए लैला मजनू के पूरा वर्ष नीलांजना का हंसते खेलते कब बीत गया पता ही नहीं चला।और सचमुच आज भी वह वक्त नीलांजना की जिंदगी का सबसे सुनहरा वक्त है।