बिश्नपुर_खादर_13
बिश्नपुर_खादर_13
"ताऊजी, आप हट जाओ.... आज तो भगवान भी हमें रोक नहीं पाएंगे.... या मरेंगे या मारेंगे...." एक भतीजे की आवाज़ गूंजी....
"भाई साहब, हम ना रुकने वाले.... जब इज्ज़त ही चली गई तो जीने का फायदा... मरे तो हैं ही, मार के मरेंगे...." #शाम_बाबा से छोटा बोला....
"ताऊजी आप को तो सबसे आगे चलना चाहिए... आप ही हमें रोक रहें हैं....." अंजलि के सगे भाई अर्जुन की आवाज़ गूंजी...
जितने मुंह, उतनी आवाजें....
शाम बाबा को लगा कि अब रोक नहीं पाएंगे तो ढीला पड़ने लगे... उन्हें ढीला पड़ते देख अजय ने क़दम आगे बढ़ाया....
शाम बाबा एकाएक ड्योढ़ी की चौखट पर लेट गए.... "जिसे जाना है, उसे मेरी लाश पर से गुजरना होगा...."
अब किसी की इतनी हिम्मत नहीं हुई कि शाम बाबा का विरोध कर सके.... कोई आगे तो नहीं बढ़ा पर किसी ने क़दम पीछे भी नहीं किए...
"मैं तुम में से किसी को खोना नहीं चाहता.... तुम सब मेरे शरीर का अंग हो... एक ग़लत क़दम पूरे परिवार को बर्बाद कर देगा..." शाम बाबा लेटे लेटे बोले.....
"वो जो चली गई, वो भी तो अंग ही थी...." कोई बोला....
"जो अंग सड़ जाए, उसे काट दिया जाता है... वो सड़ा हुआ अंग थी... कट गई..." बाबा बोले....
"आपकी वजह से ही सड़ा था वो अंग भी...." बाबा का छोटा बेटा विजय बोला....
"मेरी गलती की सज़ा का हकदार मैं हूं.... कोई और उसकी सज़ा नहीं भुगतेगा ...." बाबा खड़े होते हुए बोले.... "सब वापस जाओ...." आवाज़ में वही पुरानी कड़क थी...
सभी थोड़ा थोड़ा पीछे हो गए....
" मेरी सज़ा ये है कि आज के बाद जिंदा रहते हुए इस घर में कदम नहीं रखूंगा... और ना ही परिवार की किसी बात में बोलूंगा.... बस एक आखिरी बात कहनी है..... आज के बाद इस घर में उस लड़की का कोई नाम नहीं लेगा... भूल जाओ कि कोई अंजलि नाम की लड़की इस परिवार का हिस्सा थी..." कहते हुए बाबा ने अपनी मूंछें नीचे करी और बाहर की तरफ़ मुड़ गए...
" बापू, हमें छोड़ कर ना जाओ..." बाबा की लड़की भागकर अपने बाप के गले से रोते रोते चिपक गई....
"नहीं मेरी बच्ची.... मैंने गलती करी है तो मुझे सज़ा मिलनी ही चाहिए.... और तुम जानती हो कि मेरा फैसला कभी वापस नहीं होता..." कहते हुए बाबा दृढ़ कदमों से बाहर निकल आए....
कुछ लड़के भी साथ साथ बाहर आए... अब उनके हाथों में हथियार नहीं थे....
"अजय!!! एक बिस्तर हाथीखाने पहुंचा देना...." अजय को ये आवाज़ बहुत दूर से आती महसूस हुई.... जैसे किसी कुएं की मुंडेर पर खड़े होकर बोलने से आवाज़ गूंज रही हो.... कुछ समय में बाबा कोहरे में गुम हो गए...
आस पास के कुछ पड़ोसी खिड़कियों की झिरीयों से बाहर देख रहे थे... असली मुद्दा किसी को भी पता था... सब लड़के अंदर आ गए....
अंजलि की मां अब भी एक कोने में बैठी सिसक रही थी... खाना तो क्या बनना था... छोटे बच्चों को दूध पिला कर सुला दिया गया.... बाकी सब अपमान और गुस्से में तप रहे थे... किसी को अंजलि पर और किसी को बाबा पर... सब गुमसुम एक दूसरे से दूर पास खड़े बैठे थे... लड़कियां सहमी हुई दरवाजों के पीछे अपने आप को छुपाने की कोशिश कर रहीं थीं....
"ये भईया बाबा को दे आओ...." बाबा की लड़की अंदर से एक बिस्तर गोल करके ले आई थी , अजय को देते हुए बोली....
सब जानते थे कि बाबा के मुंह से निकले शब्द पत्थर की लकीर हैं... अब बाबा घर नहीं लौटेंगे....
अजय ने बहन के हाथ से बिस्तर लिया और हाथीखाना जाने के लिए निकल पड़ा... छोटा पहलवान भी चुपचाप पीछे हो लिया...
क्रमशः

