बिश्नपुर_खादर_11
बिश्नपुर_खादर_11
सांझ को अंधेरा होते ही #शाम_बाबा घर आए तो अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ था घर में.... नलके पर गए हाथ मुंह धोने... रोहित भागकर आया और नलका गेड़ने लगा.... शाम बाबा हाथ मुंह धोकर हटे तो भतीजी ने परना आगे कर दिया...मुंह पोंछते पोंछते बैठक में चले गए.... पीछे पीछे दो भाई भी आ गए.....
"क्या हुआ...???" शाम बाबा दीवान पर बैठते हुए बोले...
दोनों भाई नजरें झुकाए खड़े रहे....
" मैं कुछ पूछ रहा हूं..." इस बार आवाज कड़क थी....
" जी भाई साहब, वो अंज...अंजलि..." छोटा भाई बुदबुदाया....
"क्या हुआ अंजलि को...???"
" जी वो कालेज से वापस नहीं आई अभी तक....." मंझला बोला... दोनों भाइयों की नजर अब भी झुकी हुई थी....
"अरे वो उसके घर होगी... वो क्या नाम है!!! मियां की बेटी का.... अभी आ जाएगी...."
" भाई साहब, वो भी अपने घर नहीं है....'
"कहीं बाज़ार वाजार होंगी, आ जाएंगी...."
" भाई साहब!!!! वो क्या है कि असल में...." छोटे भाई की आवाज में थरथराहट नहीं जा रही थी.....
" सीधे सीधे बताओ, क्या हुआ...???" शाम बाबा के मन में किसी अनहोनी की घंटी बजने लगी....
" जी , वो सुबह से ही नहीं है...."
"कहां नहीं है, कहां है....??? किश्तें छोड़ो, साफ साफ बोलो...."
" आज सुबह से ही कालेज नहीं गई दोनों..... लूना बस अड्डे पर खड़ी है सबेर से...." अंजलि की मां दरवाजे की पीछे से निकल कर बोली... शाम बाबा ने नज़र उठाकर देखा तो बहु का घूंघट थोड़ा सरका हुआ था....
" बहु तुम अंदर जाओ...." शाम बाबा गुर्राए....
"आप भी अंदर आइए...." कहते हुए अंजलि की मां बैठक से बाहर हो गई....
शाम बाबा स्तब्ध थे... जिस बहु की आज तक सामने आवाज नहीं निकली थी , वो उन्हें अंदर आने का हुक्म दनदना रही थी.... ये आवाज़ उन्हें किसी आने वाले बड़े तूफान का सूचक लग रही थी....
वो भी पीछे पीछे आंगन पार कर बरामदे में आ गए.... बाकी की तीनों बहुएं भी वहीं थी... शाम बाबा को आते देख सबने घूंघट काढ लिए....बच्चे और लड़कियां दरवाजों के पीछे छुप छुप देख रहे थे... जवान लड़के आंगन में बिना मतलब टहल रहे थे....
"यो लूना वाली बात किन ने बताई..." शाम बाबा ने पूछा....
" मैं खुद देख आया इन आंखों से..." शाम बाबा का छोटा बेटा विजय बोला...
"कहां...??? कैसे....???"
"बस अड्डे पे... जब शहर से आया तो स्कूटर उठाने लगा तो अंजलि की लूना वहीं खड़ी थी.... स्टैंड वाले ने बताया कि वो तो सुबह से वहीं है...." उसकी आवाज़ में विद्रोह था.....
शाम बाबा खामोशी से सुनते रहे....
" उसके साथ एक लड़की और भी थी बुर्के वाली.... फिर मैं रज़िया के घर गया तो वो भी नहीं थी.... उसकी मां ने कहा कि दोनों सुबह साथ ही निकली थी कालेज के लिए..."
अब आंगन में घूम रहे जवान लड़के भी वहीं कौले के पास खड़े हो चुके थे..... शांति ऐसी कि सुई गिरने की आवाज भी साफ सुनाई देती....
" उसी की क्लास की मास्टरनी ने बताया कि वो दोनों तो आज कालेज आई ही नहीं.."
सबको सांप सूंघ गया... मनहूसियत भरी चुप्पी छा गई वातावरण में....
" मैं तो कब से कह रही थी कि लौंडिया के लड़का देखकर ब्याह दो.... पर मेरी कोई सुने तो..... कोख पे मेरी कलंक लगाएगी ये लड़की..." अंजलि की मां पेट पर जोर जोर से हाथ मारकर रोते हुए बोली......
"चुप कर ह#@-*जादी..... खबरदार जो मेरी बेटी के बारे में उल्टा सीधा बोला तो...."अंजलि का बापू हाथ उठाते हुए अपनी पत्नी की तरफ बढ़ा.....
उससे बड़े ने पकड़ कर रोकने की कोशिश की....
" चांदी के गहनों की पोटली भी ना हैं संदूक में ..." अंजलि की मां अभी भी रोए जा रही थी..... ये सुनते ही उसके पति का हाथ हवा में ही ठहर गया....
उधर शाम बाबा कुर्सी का सहारा लेकर बैठते बैठते बेसुरत हो कर नीचे गिर गए.....
क्रमशः

