बिश्नपुर_खादर_14
बिश्नपुर_खादर_14
उसी शाम गाज़ियाबाद बस स्टैंड...
रोडवेज की बस चौक में रूकी.... उतरने वाली सवारीयों में दो बुर्कानशीन मोहतरमाएं भी थी.... उनके साथ दो लड़के भी थे.... ये चारों रज़िया सलमान जावेद और अंजलि थे.... कोई पहचान ना ले, इसलिए रज़िया ने सुबह अपने घर से ही अंजलि को अपना बुर्का पहना दिया था....
" भाई ये बनावर रोड के लिए टुकटुक कहां से मिलेगा...???" एक रिक्शा वाले से सलमान ने पूछा.... रिक्शा वाले ने आगे की तरफ़ हाथ से इशारा कर दिया.... चारों उधर चल दिए.... उधर सड़क के किनारे कुछ टुकटुक खड़े थे....
" बनावर रोड....???" एक टुकटूक वाले ने हाथ के इशारे से पूछा. ...
" कितने लोगे...???" सलमान बोला...
दो रुपए सवारी...
"चलो...." कहते हुए सब टुकटुक में बैठने लगे... पिछली सीट पर पहले ही एक महिला और एक पुरुष बैठे थे... अंजलि उनके साथ बैठ गई... बाकी तीनों सामने फट्टे पर बैठ गए...
"कब तक चलोगे...???" सीट पर बैठे पुरुष ने पूछा...
"बस दो सवारी और..."
थोड़ी देर बाद एक बुर्कानशीन मोहतरमा और आई... साथ में चार पांच बच्चे भी थे... दो सवारी के रेट में वो भी बैठ गई.... सीट पर बैठा पुरुष और सलमान आगे ड्राइवर के साथ चले गए तो महिला सीट पर दो बच्चों को लेकर बैठ गई... दो बच्चे फट्टे पर और खड़ा हो गया.... अजीब सी गंध फैलने लगी टुकटुक में... अंजलि ने अपना मुंह बाहर की तरफ़ घुमा लिया ताकि कुछ तो ताज़ा हवा मिले....
टुकटुक चल दी.... चूंकि अंजलि पहली बार बड़े शहर आई थी तो वो गौर से सड़क पर भागती गाडियां, बड़ी बड़ी इमारतों को देख रही थी.... बनावर रोड शहर से बाहर बन रहा इंडस्ट्रीयल एरिया था.... आधे घंटे के सफ़र के बाद कोठियों इमारतों की जगह बड़े बड़े शेडों और दीवार से घिरे हुए खाली प्लाटों ने ले ली.... फिर एक कच्ची रोड़ पर टुकटुक मुड़ गई.... सड़क ने नाम पर बड़े बड़े गड्ढे, जगह जगह खड़ा गंदा पानी और गंदगी के ढेर थे... आगे टुकटुक एक मोड़ मुड़ कर संकरी सी गली के मोड़ पर टुकटुकी रुकवा लिया.... सब वहीं उतर गए....
आगे आगे सलमान और जावेद, पीछे पीछे अंजलि रज़िया के साथ... गली के दोनों तरफ़ बेतरतीब टीन तिरपाल की झुग्गियां.... कहीं जुगाड़ करके बनाए दरवाजे और कहीं कहीं पर्दे के नाम पर लटकती बोरियां..... नालियों का पानी आधी गली में फिर रहा था... कहीं रास्ते में चारपाई, कहीं ठेला और कहीं कहीं तो कबाड़ वाले बड़े बोरे.... उन्ही नालियों पर दो तीन साल से लेकर आठ नौ साल तक के बैठे पेट हल्का करते बच्चे... लड़के लड़कियां दोनों.... हां बड़ी उम्र की लड़कियां नहीं थी... मर्द तो पेशाब करने के लिए कहीं भी उकडू होकर बैठ जाते थे, चाहे 20 साल का लड़का या 70 साल का बुजुर्ग....
शाम का अंधेरा घिर रहा था... नालियों के पानी और आसपास की चीजों से बचते बचाते अंजलि दो बार गिरने से बची...
आगे एक घर का टीन खड़काया... अंदर से लुंगी पहने हुए एक आदमी निकला... सलमान ने उसके साथ कुछ बात की.... वो आदमी अंदर गया और तुरंत ही बाहर आ गया... उसके हाथ में एक चाबी थी.... सब उसके पीछे हो लिए... आगे वो आदमी एक बहुत ही संकरे रास्ते में मुड़ गया... एक ही आदमी का रास्ता था.... सब लाइन बना कर उसके पीछे चलने लगे... रास्ते के आखिरी से पहली झुग्गी के दरवाजे पर लगा ताला खोला और चला गया.... दरवाजे के नाम पर टीन के दोनों तरफ लकड़ियां लगाकर तारों से बांधा गया था....
सब अंदर चले गए... 8*10 की झुग्गी... चारों तरफ टीन लगाकर ऊपर बांसों के साथ नीले रंग की तिरपाल.... टीन भी कहीं कहीं से गली हुई तो वहां टीन के टुकड़े काटकर बांधे हुए....अंदर जाले लगे हुए, पूरे कमरा धूल से भरा हुआ... सामान के नाम पर बाबा जी का ठुल्लू...
"मैं झाड़ू लेकर आता हूं...." सलमान बोला.... जावेद भी पीछे पीछे निकल गया... रज़िया और अंजलि बैग उठाए वहीं खड़ी रही....
क्रमशः

