बिश्नपुर_खादर_15
बिश्नपुर_खादर_15
झलक
सुबह सुबह खड़खड़ाते टीन के दरवाजे की आवाज़ से अंजलि की नींद खुल गई.... जावेद उसकी तरफ़ पीठ करके पड़ा हुआ था... रज़िया और सलमान भी पर्दे के दूसरी ओर कुनमुनाते उठे..... सुबह की होती रोशनी में वो अब धुंधले से साफ नजर आ रहे थे.... उनकी हालत देखकर अंजलि ने मुंह घुमा लिया..... जावेद भी आंखें मलता हुआ उठ खड़ा हुआ....
सलमान ने उठ कर दरवाज़े की कुंडी खोली.... सामने वाला बुड्ढा था.... दोनों में कुछ बातचीत हुई.... सलमान ने कल रात मांग कर लाया हुआ सुराही नुमा प्लास्टिक का बर्तन उठा लिया और फिर वो और जावेद बिना कुछ कहे बाहर निकल गए...
रज़िया ने पर्दे रुपी साड़ी को एक तरफ से खोला और दुसरी तरफ़ टांग दिया.... सपनों का राजमहल दो कमरों से एक कमरे में बदल चुका था....
अब अंजलि के पेट में प्रेशर बनने लगा... अब यहां तो सिर्फ झुग्गी टाइप कमरा था जिसे चारों और बांस गाड़ कर टीन से कवर करके ऊपर तिरपाल डाल दी थी... यहां स्नान घर या टायलेट का नामोनिशान नहीं था...
" लैट्रिन के लिए जाना है...." अंजलि ने रज़िया से कहा...
" अब मुझे भी नहीं पता.... किसी से पूछ कर आती हूं...." कहते हुए रज़िया बुर्का पहनकर बाहर निकल गई...
दो मिनट बाद ही रज़िया वापस आ गई.... "खेतों में जाना पड़ेगा.... बाज़ू वाली चच्ची ने भी जाना है, सलमान आता है तो कोई बर्तन लेकर साथ ही चलेंगे..."
आधे घंटे बाद जावेद और सलमान वापस आए.... रज़िया ने सलमान से कोई बर्तन मांगा जिससे वो शौच के बाद की सफाई के लिए पानी ले जा सकें... सलमान बाहर जाकर तुरंत वापस आया... उसके हाथ में रात वाला सुराही नुमा बर्तन था....
इसी से ही रात पानी पिया था, अंजलि को ये सोच कर ही उबकाई आ गई.... बड़ी मुश्किल से उसने मुंह पर हाथ रखकर आने वाली उल्टी को रोका....
"बुर्का तो पहन जा.... यूं कोई अच्छा ना लगे यहां....."
रज़िया के पीछे पीछे जब अंजलि भी बाहर निकलने लगी तो जावेद ने उसे टोका... उसकी आवाज़ में रूखापन था... शायद वो रात अंजलि द्वारा हाथ झटके जाने के कारण अभी तक नाराज़ था... अंजलि बिना कुछ बोले बुर्का पहनकर बाहर निकल गई....
दोनों पड़ोसन चाची के पीछे पीछे चलने लगीं.... पानी वाली सुराही रज़िया के पास थी... दो तीन मिनट में वो बस्ती से बाहर खेतों को जाने वाले एक कच्चे रास्ते पर थी ... जिसके दोनों तरफ़ बस्ती के पुरुष नित्यक्रम से निवृत्त होने के लिए बैठे हुए थे.... उठी हुई लुंगियाँ कमर से लिपटी थीं..... नग्नता के जैसे कोई मायने ही नहीं बचे थे .... पीछे निष्कासन के ढेर लगे हुए थे.... बीड़ी के धुंए और ताज़ा मानव मल की दुर्गंध से अंजलि का नाक बन्द हुआ था रहा था...
ये नजारा अंजलि के लिए एकदम अलग था...मोहतरमाएं बातें करते आ जा रहीं थी... उन्हें कोई असर नहीं था... अंजलि शर्म के मारे नज़रें झुकाए रज़िया के पीछे पीछे चलती रही.... थोड़ी दूरी पर कुछ महिलाएं छोटी छोटी झाड़ियों के पीछे बैठी हुईं थी.... साथ में छोटी उम्र की लड़कियां और जवान महिलाएं भी.…
साथ में आई चाची भी एक खेत में एक झाड़ी के पीछे बैठ ली...
"मुझे तो ना आएगी यहां सबके बीच..." अंजलि बोली...
फिर वो दोनों और थोड़ा आगे निकल गईं... दोनों वहां बैठ गईं और अपना नित्यक्रम निपटाने लगीं... रज़िया ने खुद को साफ़ करने के बाद आधे से कुछ कम भरा बर्तन उसके पास रख दिया... कंजूसी से पानी इस्तेमाल करते हुए अंजलि ने खुद को साफ़ किया.... दोनों वापस चल दीं... पड़ोसन चाची पहले ही जा चुकी थी... वापसी में पुरुषों की लाइन दोनों तरफ बदस्तूर लगी हुई थी.... पुराने उठते और नवें बैठते जा रहे थे...
घर आकर रज़िया ने सुराही नुमा बर्तन बाहर रखा और डालडा के डिब्बे से पानी लेकर हाथ धो लिए..…
" साबुन नहीं है...???" अंजलि ने पूछा....
"पानी तो पाक होता है... साबुन की क्या जरूरत..." रज़िया बोली...
अंजलि को ये सुनकर रज़िया के घर उसके हाथ से बना खाया खाना सोचकर फिर उबकाई आ गई....
उसने वहीं गली की गंदी मिट्टी से हाथ मांझ कर हाथ धो लिए... खोली के अंदर जाकर दोनों के अपने बुर्के उतार कर कील पर टांग दिए...
जावेद और सलमान किसी बात पर हंस रहे थे...
क्रमश:

