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Neelam Sony

Others

4  

Neelam Sony

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बिश्नपुर_खादर_10

बिश्नपुर_खादर_10

4 mins
370


जब रज़िया के घर चारों साथ बैठे चाय पी रहे थे तो रज़िया ने बम सा फोड़ा... " हम दोनों गाज़ियाबाद जा रहे हैं...." 


"हैंय!!!!..." अंजलि का हाथ वहीं का वहीं रुक गया...


"क्या हुआ...???" सदमे की हालत से बाहर निकलने के बाद अंजलि ने पूछा....


"अम्मी अब्बू मेरे लिए लड़का देख रहे हैं.... मैं सलमान के बिना जिंदा नहीं रह सकती..."


"वहां मेरा एक दोस्त है, कंपनी में काम करता है, उससे बात कर ली थी मैंने... पिछले हफ्ते उसके पास भी जाकर आया था... वहीं अपनी नईं जिंदगी शुरू करेंगे...." सलमान बोला....


"सही है, अब साथ रहना है तो रहना है..." अंजलि ने समर्थन किया....


"पर हमारा क्या होगा....??? हम तो एक दूसरे से दूर हो जाएंगे...." जावेद के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं.... इस बात से अंजलि भी चिंतित दिखाई देने लगी...


" तुम भी हमारे साथ चलो..." रज़िया ने कहा….


"घरवालों का क्या होगा....??? मेरी मां तो जीते जी मर जाएगी...." अंजलि की आंखों में आंसू थे.... 


"और कोई रास्ता भी तो नहीं है..." जावेद उसके आंसू पोंछते हुए बोला.... " मैं तो तुम्हारे बिना जीने का तसव्वुर भी नहीं कर सकता...."


"छोड़ तो अपने मां बाप भी नहीं सकती मैं...." अंजलि रोते हुए जावेद के सीने से लग गई ...


"कुछ वक्त के बाद धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा तो हम लौट आएंगे... वो भी तुम्हारे मां बाप है, कोई दुश्मन थोडे हैं...." जावेद उसे अपने आगोश में लेते हुए बोला....


अब अंजलि कुछ आश्वस्त दिखाई देने लगी....


अगले दिन इतवार था.... सुबह सुबह बापू मंडी चले गए तो अंजलि उठकर मां की रजाई में घुस गई... मां कुनमुनाई... हाथ फेरकर देखा तो अंजलि थी..... मां ने अंजलि को अपनी तरफ खींच लिया.... अंजलि ने भी अपने हाथ पैर मां के इर्द गिर्द लपेट लिए और बगल में मुंह दबा कर पड़ गई... मां ने मुंह पर हाथ फेरा तो गाल गीले थे.... मां चौंक कर उठी और लाईट जलाई... हैरानी से अंजलि की तरफ देखने लगी...


"क्या हुआ मेरी बेटी को.....???" मां ने उसका चेहरा हाथों में लेते हुए पूछा..


"कुछ ना मां... बस ऐसे ही मन उदास सा है दो तीन दिन से..... अगले हफ़्ते सहेली की शादी है तो वो चली जायेगी...." अंजलि गाल पोंछते हुए बोली... 


" वा तो बिट्टो दस्तूर है जिंदगी का.... बेटियों को एक ना एक दिन तो अपने घर जाना ही होता है..." कहते हुए मां ने दोनों हाथ फैला दिए... अंजलि मां के आगोश में समा गई....


उस दिन अंजलि सारा दिन मां के आसपास ही घूमती रही..... कभी गाय के पास, कभी छोटे भाई बहनों के साथ.... सबसे छोटे चाचा का लड़का रोहित जो उसका हमउम्र ही था, उसी से सबसे ज्यादा झगड़ा होता था अंजलि का..... वो आया और अंजलि की चुटिया खींच कर भाग गया.... फिर आया और फिर चुटिया खींचने लगा तो अंजलि ने उसके आगे सिर झुका दिया.... रोहित सदमे में था... उसे ऐसी आशा थी ही नहीं... वहीं थमक कर रुक गया...


" ले भाई खींच ले... अपनी मर्ज़ी कर ले.... जब मेरी शादी हो जायेगी तो किससे झगड़ा करेगा.....???" कहते हुए अंजलि ने अपना सिर और आगे कर दिया...


मां दूर से उसे देख रही थी... और अंजलि की मनोस्थिति को समझ रही थी... आखिरकार वो भी तो कभी अपना मायका छोड़ कर आई थी.....


रात जब सब सोये पडे तो तो नींद अंजलि की आंखों से कोसों दूर थी.... आधी रात को चुपके से उठी और बिना आवाज़ किए मां का संदूक खोल लिया... अंधेरा था पर फिर भी उसे मां की गहनों की पोटली का पता था, आखिरकार वो सैंकड़ों बार पोटली रख निकाल चुकी थी.... तुरंत ही चांदी वाली हाथ आ गई... सोने के गहनों वाली नहीं मिली.... तीन चार बार और कोशिश करी, फिर भी नहीं मिली... आखिर में चांदी वाली पोटली ही अपने बैग में डाल कर बिस्तर पर लेट गई...


नींद आंखों से अब भी कोसों दूर थी.....


सुबह तैयार होकर रोज़ की तरह लूना लेकर कालेज के लिए निकल गई.... #शाम_बाबा कहीं दिखाई नहीं दिए... कल तो सारा दिन मंडी थे... आज भी सुबह से घर में ना दिखे... अंजलि जानती थी कि वो कहां होंगे... उसने अपनी लूना हाथीखाना की तरफ़ मोड़ दी.... ताऊजी सुबह सुबह वहीं जाते थे.... बाबा दादा के समय वहां हाथी बंधते थे... हाथी तो रहे नहीं, इसलिए अब वहां खेतीबाड़ी का सामान रखा जाता था... नौकर भी वहीं रहते थे....


शाम बाबा बाहर बैठे दिखाई दे गए.... अंजलि ने उनके पास लूना रोकी.... "का बात है बाबू...?? कोई काम है का...??? शाम बाबा ने पूछा...


"कुछ ना ताऊजी... बस आप दो तीन दिन से मिले ना थे तो मिलने आ गई...." अंजलि पास आते बोली...


शाम बाबा अपनी कुर्सी से उठे और अंजलि का माथा चूम लिया... अंजलि की आंखों में नमी थी, पर उसने बड़ी मुश्किल से काबू पा रखा था... फिर वो लूना उठाकर चल दी.... गांव से बाहर निकल कर उसने लूना रोककर पीछे मुड़कर देखा .... गांव का अकेला दो मंजिला उसका घर कोहरे में भी दिख रहा था... इतनी देर से रुके हुए आंसू छलक आए.....


रोते रोते वो रज़िया के गांव की तरफ चल दी.. उस समय इस पास कोई नहीं था..... चलते चलते मोड़ पर उसने मुंह घुमाकर आखिरी बार अपने गांव को देखा और फिर गांव उसकी आंखों से ओझल हो गया...


क्रमशः


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