बिखरे बाल और लाल कमीज़ वाला लड़का -1.
बिखरे बाल और लाल कमीज़ वाला लड़का -1.


ये उन दिनों की बात है जब मैं अपनी नौकरी के सिलसिले में अपने घर से हज़ार किलोमीटर दूर एक नगर में तैनात था। बच्चों की पढ़ाई और पत्नी की नौकरी के कारण मेरा परिवार मेरे साथ नहीं था। मैं अकेला ही रहता था। न तो मुझे इतनी छुट्टी मिलती थी और न ही मेरा बजट मुझे इजाज़त देता था कि मैं बार - बार अपने काम से छुट्टी लेकर कई गाड़ियां या बसें बदल कर घर जा सकूं। दूसरी ओर मेरी आयु लगभग बत्तीस साल थी जो मुझे एक संन्यासी की तरह अकेले रह पाने में सक्षम नहीं बनाती थी। मुश्किल दिन मुश्किल से ही गुज़र रहे थे।
एक फ्लैट लेकर अकेले रहना और सुबह से शाम तक काम में डूब कर दिन निकालना ही मेरी दिनचर्या थी। ऑफिस के अधिकांश लोग स्थानीय होने और अपने परिवारों के साथ होने के कारण मुझे ऑफिस समय के बाद समय या तवज्जो नहीं दे पाते थे। हां, कभी - कभी किसी त्यौहार या विशेष अवसर पर वो मुझे चाय अथवा भोजन के लिए अपने घरों पर आमंत्रित ज़रूर कर लिया करते थे। वैसे भी घर में महिलाओं- बच्चियों वाले लोग किसी अकेले युवक को अपने परिवार के साथ ज़्यादा मेलजोल बढ़ाने का मौका कहां देते हैं। तो मैं ख़ुद अपने सहकर्मियों से एक दूरी बना कर ही रहता था और दफ़्तर से छूटने के बाद ज़्यादातर अपने फ्लैट पर ही रहना और टीवी देख कर समय गुजारना पसंद करता था।
इन्हीं दिनों मैंने गौर किया कि दोपहर के समय एक लड़का किसी कोरियर कंपनी से डाक लेकर हमारे ऑफिस में आया करता है। रिसेप्शन पर कोई कर्मचारी उससे डाक ले लेता और लड़का रसीद आदि लेकर वापस लौट जाता।
संयोग से एक दिन लड़का अपने रोज़ाना के समय से कुछ जल्दी आ गया। अधिकांश लोगों के लंच के लिए अपने- अपने घर चले जाने से ऑफिस की ज़्यादातर सीटें खाली ही थीं। रिसेप्शन पर बैठने वाला कर्मचारी भी वहां नहीं था। लड़का इधर - उधर देखता हुआ डाक का पुलिंदा हाथ में लिए धीरे- धीरे मेरी मेज़ तक चला आया। वह कुछ संकोच कर रहा था कि डाक कर्मचारी के न होने पर किसी अफ़सर को डाक देना उचित होगा या नहीं। उसका संकोच भांप कर मैंने उसे इशारे से अपने पास बुलाया और डाक देने के लिए कहा। लड़का कुछ खुश हुआ और जल्दी जल्दी डाक सौंपने की तैयारी करने लगा। इसी समय ऑफिस में चाय लेकर आने वाला कैंटीन का एक आदमी भी चाय लेकर आ गया। मैंने कर्ट्सी के नाते चाय वाले को एक कप चाय उस लड़के को देने के लिए भी कहा। यद्यपि लड़का जल्दी में था किन्तु इस शालीनता से वह कृतज्ञ हो गया और झिझकते हुए खड़े- खड़े ही चाय पीने लगा। मैंने इशारे से उसे बैठ जाने के लिए कहा तो लड़का बेहद खुशी महसूस करने लगा।
इस बीच सामान्य से दो- चार वाक्यों में मुझे उसका कुछ परिचय भी मिला - लड़का तीन- चार किलोमीटर दूर से अपने केंद्र से साइकिल द्वारा डाक लेकर आता था। बारहवीं कक्षा पास उस लड़के की यह नई - नई नौकरी थी। उसकी उम्र लगभग अठारह - उन्नीस साल थी और स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद वह अब पढ़ाई छोड़ चुका था। निर्धन - साधारण से घरों के बच्चों पर इस उम्र के बाद कुछ कमाने का दबाव आ ही जाता है।
लड़का चला गया पर जाते- जाते अपनी कृतज्ञता आंखों से मुझ तक पहुंचा गया। उसने बेहद आत्मीयता से मुझे नमस्कार किया।
उसके बाद लड़का जब भी आता, वह काउंटर से ही मेरी ओर देखने की कोशिश ज़रूर करता और मेरे वहां होने पर मुझे नमस्कार करना भी नहीं भूलता।
कभी- कभी मेरे कुछ फ़्री होने पर अथवा डाक कर्मचारी के न होने पर वह सीधा मेरे पास ही चला भी आता। उससे एक दो बातें भी हो जातीं। लड़का जल्दी ही भांप गया कि मैं दफ़्तर में बाहरी हूं शायद इसीलिए औरों की तुलना में थोड़ा अधिक सम्मान देता हूं।
वह इस सम्मान को अपने तरीके से लौटाने की चेष्टा भी करता जैसे कभी- कभी ऑफिस में लगे वॉटर कूलर से गिलास में पानी भर के मुझे पिला जाता।
लड़के से परिचय धीरे - धीरे गहरा होता चला गया।
कभी मुझे फुर्सत में देख कर वो स्वयं मेरे पास चला आता और ऐसे में हमारी कुछ बात हो जाती।
उस लड़के को जब पता चला कि मैं इस शहर में अकेला ही रहता हूं तब उसने भी मुझे बताया कि उसका भी गांव यहां से कुछ दूरी पर दूसरे जिले में है और वह भी अपनी रिश्ते की एक बुआ के घर अकेला ही रहता है। गांव में उनकी थोड़ी बहुत खेती बाड़ी थी, और यहां दुकान करने वाले बुआ फूफा अपने लंबे चौड़े परिवार के साथ रहते थे।
उम्र के अंतर के बावजूद हम दोनों के बीच एक दोस्ताना सा व्यवहार पनपने लगा। एक दिन उसने मुझसे मेरे घर का पता भी ले लिया और कागज़ की पर्ची को जेब में रखते हुए बेहद उत्साह से बोला - मैं आपसे मिलने आपके घर आऊंगा।
वो ये भी पूछना नहीं भूला कि उसके आने से मुझे कोई परेशानी तो नहीं होगी?
मैं क्या कहता! मैंने ख़ुद उसे बताया कि कल शनिवार है, मैं घर पर कुछ जल्दी ही पहुंच जाता हूं, यदि वह आए तो मुझे अच्छा ही लगेगा।
लड़का चला गया। उसका उत्साह उसकी आंखों में झलक रहा था।