बिखरे बाल और लाल कमीज़ वाला लड़का-3
बिखरे बाल और लाल कमीज़ वाला लड़का-3
मैं प्रायः दिन भर की मशक्कत में अपने आप को इतना थका लेता था कि बिस्तर पर लेटते ही नींद आ जाए। यहां तक कि शाम को ऑफिस से लौट कर आने के बाद घर पर ही होते हुए भी मैं किसी न किसी घरेलू काम या छत पर टहलने में ही अपने को इस तरह उलझाए रखता था कि रात गहराते ही नींद के अलावा और कुछ भी न सूझे।
लेकिन आज रोजाना से कुछ अलग था। मैं घर पर अकेला नहीं था। यहां तक कि घर तो क्या, अपने बिस्तर पर भी अकेला नहीं था।
तत्काल लाइट बुझाए जाने के बाद एकबारगी घना अंधेरा गहराता है लेकिन कुछ क्षण के बाद ही आँखें अंधेरे की इस तरह अभ्यस्त हो जाती हैं कि अंधेरे का रंग काले से बदल कर गहरा ग्रे सा हो जाता है और फ़िर आलम कुछ - कुछ दिखाई देने लग जाता है। फ़िर बाहरी दुनिया का हल्का सा प्रकाश खिड़की से पर्दा हटा देने के बाद भी आ रहा था। ये देखना ही नहीं, बल्कि सोचना भी रोमांच भरा था कि महीनों बाद आज मैं घर में अकेला नहीं था। चंद दिनों पहले तक नितांत अजनबी रहा एक नवयुवक मेरे साथ सोया हुआ था। मैं यह भी जानता था कि यदि सोते हुए अनायास मेरा बदन उसके शरीर से कहीं छू भी गया तो लड़का किसी भी तरह ऐतराज़ नहीं करेगा क्योंकि घर में दूसरा पलंग होने के बाद एक ही बिस्तर पर मेरे साथ सोने का निर्णय स्वयं उसी का था। आज मुझे भी किसी के साथ होने पर असुविधा जैसा कुछ भी महसूस नहीं हो रहा था क्योंकि मेरे पास सोया हुआ लड़का न केवल युवा था बल्कि हम दोनों के बीच पिछले दिनों के प्रगाढ़ परिचय से आत्मीयता भी पनप गई थी। ऐसे में दो बदन पास - पास होने से यदि नींद की मात्रा में कोई कमी भी आती तो उसकी भरपाई अगले दिन हो जाने वाली थी। लेकिन नींद का ये व्यवधान कुछ कुछ मादक, भला भला सा था।
मैं नहीं जानता था कि लड़का भी नींद के आगोश में जा चुका था या वह भी मेरी तरह आँखें बंद किए करवटें ही बदल रहा था। हां, करवटें बदलने की इस प्रक्रिया में हर बार शरीर का कोई न कोई हिस्सा एक दूसरे से छू ज़रूर जाता था। अच्छी बात यह थी कि हर बार अंग छूने पर भी अपना बदन सिकोड़ कर हटाने की जहमत न मैं उठाता था और न वह लड़का ही।
यदि आपको पूरी तरह नींद न आई हो और आपके शरीर को कोई स्पर्श सुख मिल जाए तो न जाने क्यों गला कुछ सूख सा जाता है और फ़िर इसकी भरपाई के लिए आपके मुंह से कुछ निगलने जैसी आवाज़ आने लगती है। जैसे आप मुंह को अकारण ही चला कर मुंह में घुल आए पानी से सूखे गले को तर करने की कोशिश कर रहे हों। प्रकृति भी अदभुत है। इस तरह की ढेरों प्रणालियां हमारे बदन में इनबिल्ट हैं जो विभिन्न स्थितियों में हमारे बदन का नॉर्मलाइजेशन स्वतः कर देती हैं। महसूस होने वाली अनुभूति सुख हो या दुःख। सुख और आनंद की स्थिति में तो ध्वनि के ये मिसरे अपने ही अंतर के संगीत पर ताल देने वाले सिद्ध होते हैं। मज़ा आता है ज़िंदगी का।
सुबह जाग जाने के बाद चाहे इन प्रक्रियाओं को चाहे जो भी नाम दिया जाए, इन्हें प्रकृति विकृति के चाहे जिन तुलाओं पर तौला जाए, रात के अंधेरों में तो ये आनंद देते ही हैं। प्रकृति भी रात और दिन के अंधेरों उजालों की कितनी विलक्षण तासीर रखती है।
ओह, मैं ये न जाने क्या- क्या सोचे जा रहा था। किसी को लग सकता है कि इसमें कौन सी बड़ी बात थी, मेरे साथ सोने वाला एक लड़का ही तो था, कोई खूबसूरत लड़की तो नहीं!
लेकिन बात इतनी आसान नहीं थी। एक तो मैं कई महीनों से अपने घर- परिवार से दूर होने के कारण स्पर्श सुख के अभाव की गर्मी में तप रहा था, दूसरे मेरे क़रीब सोने वाला अजनबी लड़का उम्र से युवा होने के साथ- साथ बैचलर भी था और अपनी खुद की मनमर्जियों और मेरी वांछनाओं के बीच संतुलन का झूला झूलते हुए एक ही बिस्तर पर मेरे करीब सोया हुआ था। सामने एक भरी - पूरी सांवली रात थी और अगले दिन काम की छुट्टी होने की मादक खुमारी। ऐसे में आनंद का कौन सा क्षण झरा हुआ था जो हमें विचलित करता? पार्श्व में सुनसान अंधेरे और नेपथ्य में खुशबू - दार नव - परिचय। क्या नहीं था।
लेकिन तभी एक जोरदार बिजली कड़की। ये बिजली कोई आकाशीय उल्का पिंड सरीखी नहीं थी बल्कि निपट खामोशी से मेरे ही भीतर के खामोश सन्नाटे में उपजा झंझावात था। इसे बिजली इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि इसकी तीव्रता मेरे बदन ने किसी तड़ित आघात की ही भांति महसूस किया।
और स्पष्ट बताऊं तो साथ में सोते हुए बदन के स्पर्श से मुझे यह अहसास हुआ कि दाल में कुछ काला है। मुहावरा न कह कर सरल भाषा में कहूं तो मुझे अनुभव हुआ कि मैं किसी युवक के साथ नहीं सो रहा हूं बल्कि...

