बिखरे बाल और लाल कमीज़ वाला लड़का-2
बिखरे बाल और लाल कमीज़ वाला लड़का-2


शनिवार शाम को मैं रोजाना से कुछ जल्दी ही घर पहुंच गया था। कुछ देर आराम करने, चाय पीने और टीवी देख लेने के बाद अब मैं रसोई में अपने डिनर की तैयारी कर रहा था।
इसी समय मेरे फ्लैट की घंटी बजी। हाथ साफ़ करता हुआ मैं दरवाज़ा खोलने आया तो देखा कि वही लड़का दरवाज़े पर खड़ा है जो दफ़्तर में डाक लेकर आया करता था।
मुझे देखते ही उसके चेहरे पर गर्मजोशी की एक मुस्कराहट आ गई। मुझे भी अच्छा लगा।
ऑफिस में अपनी ड्यूटी पर आते समय लड़का अपनी वर्दीनुमा साधारण पोशाक में रहता था किन्तु इस समय उसने चटख सुर्ख रंग की कमीज़ पहन रखी थी। लाल कमीज़ में वह काफ़ी आकर्षक लग रहा था। बाहर की कुछ तेज़ हवा में साइकिल चला कर आने से उसके बाल भी माथे पर छितराए हुए थे जो उसके चेहरे को ताज़गी दे रहे थे।
मेरे दरवाज़ा बंद करते ही लड़का मेरे साथ भीतर आ गया। घर में अकेले मुझे देख कर उसका सारा संकोच जैसे झर गया और पल भर में ही हम दोनों मित्रवत हो गए। जैसे दो पुराने मित्र कई दिन बाद मिले हों। मुझे रसोई में काम करते देख कर वो मेरे साथ रसोई में ही आ गया और मेरी मदद करने लगा। सलाद काटते हुए उसके हाथों को देखते ही मुझे अहसास हो गया कि लड़का घरेलू काम-काज में पर्याप्त दक्ष है। वैसे भी जो बच्चे अपने माता- पिता से दूर रिश्तेदारों की सरपरस्ती में रहते हैं उन्हें घर के काम- काज और संजीदगी में दक्ष होते देखा ही जाता है। कहते हैं कि लड़की मां के साथ रह कर घरेलू काम-काज सीखती है और लड़का मां से दूर रहने पर काम - काज सीखता है।
हम दोनों ने मिलकर जल्दी ही खाना तैयार कर लिया और उसे डायनिंग टेबल पर ले आए। ऐसा अवसर बहुत दिन बाद आया था जब मेरे साथ खाने की मेज़ पर कोई और भी हो। अन्यथा मुझे अपना भोजन अकेले बैठ कर ही करना पड़ता था।
खाना खाकर बर्तन आदि समेटते हुए लगभग दस बज गए।
लड़का शायद इस संकोच में था कि खाना खाते ही जाने की बात कैसे करे। मैंने औपचारिकता के नाते उसे कहा कि यदि उसे कोई असुविधा न हो तो वह रात को वहीं रुक सकता है। अगले दिन रविवार होने के कारण हम दोनों की ही छुट्टी थी।
लड़के ने कुछ पल सोचा फ़िर वह रात को मेरे पास ही रुकने के लिए तैयार हो गया। हम कुछ और अनौपचारिक हो गए। लड़का एक बार बाहर जाकर अपनी साइकिल कुछ व्यवस्थित स्थान पर रख कर उसका ताला आदि चैक करके आया।
उसके आने पर मैं सोने की तैयारी में अपना बिस्तर ठीक करने के लिए कमरे में आया तो वह भी पीछे- पीछे साथ ही चला आया।
मैंने उससे पूछा कि यदि वह कहे तो हम बालकनी में एक्स्ट्रा
रखे हुए एक दूसरे पलंग को भी भीतर ले आएं और अलग बिस्तर बिछा दें।
लड़के ने कुछ झिझकते हुए मेरी ओर देखा फ़िर कुछ सोचकर बोला - रहने दीजिए सर, क्यों तकलीफ़ करते हैं।
उसके इस तकल्लुफ से मुझे भी कुछ अच्छा ही लगा। हम दोनों एक साथ सोने के इरादे से बेड पर ही आ गए।
टीवी पर कोई फ़िल्म चल रही थी। जिसे आधा - अधूरा सा हम देख चुके थे।
कुछ देर फिल्म देखने के बाद मैंने टीवी बंद कर दिया क्योंकि फ़िल्म कुछ उबाऊ सी थी और उसे भी ज़्यादा पसंद नहीं आ रही थी।
अब हम बातें करने लगे।
लड़का अब तक काफ़ी खुल चुका था और अब बेझिझक बातें कर रहा था। उसने मुझे बताया कि वैसे वह कभी भी घर से बाहर रात को इस तरह रुकता नहीं है पर आज उसकी बुआ का परिवार शहर से बाहर किसी शादी में गया हुआ है तो घर पर अकेला होने के कारण वह यहां रुक गया है। उसने बताया कि उसे यह संकोच भी था कि मैं उसे रात को यहां ठहर जाने के लिए कहूंगा या नहीं, इसलिए वह कुछ असमंजस में था।
मुझे उसकी सादगी और भोलेपन पर हंसी आई। उधर मैं सोच रहा था कि महीनों बाद ऐसा अवसर आया है जब रात को अकेले घर में मेरे साथ कोई दूसरा भी है वरना तो मैं अकेला ही इस सन्नाटे को टीवी की आवाज़ से काटने की कोशिश में रहता था।
बातों ही बातों में लगभग बारह बजने को आ गए।
लेटने के लिए लाइट बंद करने से पहले मैंने उससे एक बार पानी पीने के लिए पूछा। उसने खुद उठ कर पानी पिया और साथ ही मुझे भी पिलाया।
मैंने एक बार उससे पूछा कि वह सोने से पहले यदि कपड़े बदलना चाहे तो बदल सकता है। मैं खुद भी लोअर और टी- शर्ट में था। उसने कुछ झिझकते हुए अपनी कमीज़ उतार कर रख दी। मैंने अपने मित्र से कहा वह संकोच नहीं करे, चाहे तो पैंट भी उतार कर टांग दे और यदि ऐसे न सोना चाहे तो मैं उसे पायजामा निकाल कर दूं।
हमने लाइट बुझा दी।