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Rajesh Kumar Shrivastava

Horror

3  

Rajesh Kumar Shrivastava

Horror

भयानक चेहरा !

भयानक चेहरा !

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 ठक-ठक -ठक -शोर्मा जी ! ओ शोर्मा जी !! ठक-ठक-ठक-ठक !! ओ शोर्मा जी- ओ शोर्मा बाबू मोशाय—

लगातार कुण्डा खड़कने तथा पुकारे जाने पर पहले श्रीमती शर्मा जागीं, फिर शर्मा की निद्रा टूटी। उन्हें कोटाल बाबू की आवाज पहचानने में कोई भूल नहीं हुई। उस समय घड़ी पौने दो बजे का समय बता रही थी। 

कोटाल अवश्य किसी बड़ी मुसीबत में है। अन्यथा इतनी रात को उन्हें न जगाता -- शर्मा जी तत्काल चैतन्य हुए।


क्या हुआ होगा -लीला ने पूछा ?

क्या पता ? कोई गड़बड़ जरूर है, वरना बंगाली भाई इतनी रात को नहीं आता।

मिसेज शर्मा ने सहमति में सिर हिलाया।

शर्मा जी ने दरवाजा खोला।

सामने परिमल कोटाल खड़ा था। उसके चेहरे पर हवाईयां उड़ रही थी। शुरुआती मार्च की खुशनुमा रात में भी उनका बदन पसीने से तरबतर था।  

कोटाल ने शीघ्रता से शर्मा का हाथ थामा, मानो उसे सहारे की आवश्यकता हो।

भगवान का शुक्र है बाबू मोशाय - जो आप जल्दी जाग गये !

क्या हुआ कोटाल जी-

भूत बाबू मोशाय भूत बहुत सारे !

अच्छा ! कहाँ हैं भूत ?--शर्मा जी ने आश्चर्य से कहा ! वे भूत-प्रेतों पर विश्वास नहीं करते थे।

वो मेरे शोरोबी पड़ोसी के घर में।

गोपंती बाबू के यहाँ !- क्या कर रहे हैं भूत लोग – शर्मा जी भूतों के जिक्र से खुश हो गये।

पोर्टी कोर रहे हैं बाबू मोशाय -आप चोल के देखो तो सही।

ठीक है -अभी चोल के देखते हैं आपके भूत को –दो मिनट ठहरिये !

जोल्दी करो शोर्मा जी -बच्चे डोर रहे होयेंगे।

अभी कोटाल भाई ! 


शर्मा जी सचमुच में दो मिनट में कोटाल बाबू के साथ रवाना हो गये। आसमान में कृष्ण पक्ष के दूज का चाँद मुस्कराता हुआ अपनी चाँदनी बिखेर रहा था,फिर भी शर्मा जी के हाथ में टार्च थी, वक्त-जरुरत के लिये !

चंद्रिका प्रसाद शर्मा भूत-प्रेतों को मन का वहम मानते थे, भूत-प्रेत पर विश्वास करने वालों को उनका खुला चैलेंज था कि भूत दिखाओ और हजार रुपये नकद इनाम पाओ ! 

वे सिंचाई विभाग में क्लर्क थे तथा रामपुर कालोनी के सरकारी क्वार्टर में सपत्नीक रहते थे। उनके सामने वाली लाइन में पांचवीं ब्लाक के पहले क्वार्टर में परिमल कोटाल तथा उनके बाजू में त्रिलोक दास गोपंती रहते थे। गोपंती बाबू का मकान कालोनी का आखिरी मकान था, उसके बाद जंगल-झाड़ियाँ शुरु हो जाती थी।


त्रिलोक दास गोपंती खालिस छत्तीसगढिय़ा आदमी थे जबकि परिमल कोटाल बंगाली मानुष थे। शर्मा जी की कोटाल महाशय से ठीक ठाक मैत्री संबंध था जबकि त्रिलोक दास से मामूली दुआ सलाम थी, इसकी बड़ी वजह गोपंती बाबू का कदाचरण था।  

कोटाल परिवार का मोहल्ले में किसी से भी अधिक घनिष्ठता नहीं थी, वे लोग अपनी ही दिनचर्या में ही मगन रहते थे।

होलिका दहन की रात्रि में उनके पड़ोस में गोपंती बाबू के घर काफी हंगामा व शोरगुल हुआ था। त्रिलोक दास तथा उनके शराबी मित्रों ने खूब हुड़दंग किया था। इसकी वजह से कोटाल परिवार रात भर सो नहीं पाया था।

परिमल कोटाल ने तब चैन की सांस ली जब होलिकोत्सव वाला पूरा दिन उनका पड़ोस शांत रहा।


त्रिलोक दास गोपंती का रहन-सहन साधारण नहीं था। वे पक्के शराबी तथा व्याभिचारी मनुष्य थे। उम्र ५८-५९ की हो चुकी थी रिटायरमेंट करीब था, फिर भी उनका दिल जवान था।  

रामपुर के तमाम वाहियात तथा चरित्र हीन स्त्री-पुरुषों से उनका मेलजोल था। अलबत्ता उनकी धर्मपत्नी प्रभावती साध्वी महिला थी, जो यथासंभव व्रत-उपवास, भजन-पूजन, कथा-कीर्तन करती थी।

उनकी दो संतानें थी, एक लड़की आरती जिसका ब्याह हो चुका था, तथा उससे छोटा पुत्र अनिल, जो ट्रक ड्राइवर था। वह अपने पिता के आचरण तथा चाल-ढाल से त्रस्त था। इसलिए वह रामपुर में ही किराये का मकान लेकर अलग रहता था। प्रभावती प्रायः अपने पुत्र अनिल के साथ रहती थी, त्रिलोक दास को इसमें कोई आपत्ति नहीं थी। इससे उसे बेरोक-टोक ऐश करने की आजादी मिलती थी।


होली की वजह से कालोनी के ज्यादातर कर्मचारी अपने-अपने घरों (गाँव-शहरों) को जा चुके थे। इक्का-दुक्का परिवार ही कालोनी में रुका हुआ था।

कोटाल परिवार घर में दुबका हुआ था। इन्हें देखकर भी उनका बाहर आने का साहस न हुआ। अधखुली खिड़की में श्रीमती वैजयंती कोटाल का भयभीत चेहरा एक क्षण को दिखाई दिया, फिर तत्काल गायब हो गया।  

सुनो शोर्मा जी –परिमल धीरे से फुसफुसाया- बोजा बोजा के भूत लोग डाँस कर रहे हैं।

अच्छा – शर्मा जी के माथे पर पसीना चुहचुहा आया। भूत दिखाओ कहना जितना आसान होता है, भूत की काल्पनिक उपस्थिति भी उतनी ही भयभीत करने वाली होती है। यह शर्मा जी की मुखमुद्रा से स्पष्ट थी।

वातावरण में अजीब सा गंध फैला था, जिसे बर्दाश्त करना शर्मा जी को मुश्किल प्रतीत हुआ। उन्होंने तक्षण नाक पर गमछा लपेट लिया।   

कहीं चूहा मरा होगा शोर्मा जी।

शर्मा जी ने सहमति में अपना सिर हिलाया।

गोपंती बाबू का मकान अंधेरे में डूबा हुआ था, उसकी दो खिड़कियों में से एक थोड़ी खुली हुई थी। इसके बावजूद बिना पास गये भीतर क्या हो रहा है यह देख पाना संभव नहीं था। उनके तथा खिड़की के बीच काँटेदार तारों की फेंसिंग थी, खिड़की तक पहुँचने के लिए उन्हें लोहे का गेट ठेलकर भीतर जाना पड़ता।

दूर होने पर भी भीतर चल रही रहस्यमय संगीत की आवाज सड़क से सुनाई दे रही थी, हालांकि यह आवाज बहुत क्षीण थी। यदि परिमल कोटाल ने उन्हें पहले से न बताया होता तब शायद ही उनका ध्यान इस ओर जाता। भीतर कमरे में न होने जैसी हलचल उन्हें महसूस हुई।

भीतर शायद एक से अधिक लोग थे, रात के सन्नाटे में फुसफुसाहट भरी आवाजों को सुनकर शर्मा जी असमंजस में पड़ गये।


परिमल कोटाल शर्मा जी के पीछे दुबक चुके थे और आजू-बाजू से झांकते हुए हनुमान जी को याद करने लगे- बोचा लो- हनुमान जी बोचा लो, ! ये भूत लोग बहोत डरा रहा हैं बोचा लो प्रोभु जी, हम ओपके शोरण में हैं।

शर्मा जी ने उनके हाथ को दबाकर चुप रहने का इशारा किया। उन्हें कमरे में हलचल तेज होने का आभास हुआ फुसफुसाहटों का शोर एकाएक तेज हुआ हालांकि उसका एक भी शब्द परिमल कोटाल तथा चंद्रिका प्रसाद शर्मा के पल्ले नहीं पड़ा।  

परिमल कुछ कहने को हुआ। शर्मा जी ने उन्हें चुप रहने का इशारा किया। खिड़की के उस तरफ कोई था, जो उन्हें ही घूर रहा था। शर्मा जी के रोंगटे खड़े हो गये। एकाएक उनके पैर काँपने लगे और गला भी सूख गया। पूरा बदन पसीने से नहा उठा।  शर्मा जी ने इसे वातावरण का प्रभाव समझा।


शर्मा जी ने भीतर जाकर देखने का निश्चय किया। कोटाल ने उन्हें रोकने का बहुत प्रयास किया किन्तु वे न ही रुके। सड़क से नीचे उतर वे लोहे के गेट के सामने जा खड़े हुए। कोटाल डर के मारे थर-थर-थर-थर काँपने लगा।

मत जाओ शोर्मा बाबू मोशाय – कोटाल ने उन्हें रोकने का एक बार और प्रयास किया।  

कुछ नहीं होगा बंगाली भाई ! आप चुपचाप देखते जाओ- कहते हुए शर्मा जी जैसे ही लोहे का गेट खोलने को हुए उन्हें जोर का झटका लगा। मानो गेट में बिजली का करंट दौड़ रहा हो !

तभी कोटाल चीख उठा - बाबू मोशाय उधर !

उसने अधखुली खिड़की की ओर इशारा किया।  


शर्मा जी को सहसा विश्वास न हुआ। खिड़की से एक वीभत्स चेहरा उन्हें ही घूर रहा था, जिसके आधे चेहरे का माँस गायब था, उसकी आँखें लाल तथा क्रोध से भरी हुई थी। वह भयानक चेहरा गोपंती बाबू का था।

शर्मा जी की घिग्गी बँध गयी। उन्हें अपना सिर घूमता हुआ प्रतीत हुआ। उनकी सारी दिलेरी पल भर में हवा हो गयी। गोपंती बाबू का भयानक चेहरा कोटाल बाबू ने भी देखा। उन्होंने शर्मा जी को कसकर पकड़ लिया।  

उनके देखते ही देखते गोपंती बाबू का भयानक चेहरा खिड़की से गायब हो गया इसके साथ ही खिड़की बंद हो गयी।

बाकी की बची हुई रात कोटाल परिवार ने शर्मा जी के मकान में बिताई। कोटाल बाबू के बच्चों को भी नींद नहीं आई।  

चंद्रिका प्रसाद शर्मा ने जो कुछ देखा तथा अनुभव किया उससे वे अवाक थे। यदि वह सच था तो ऐसा कैसे हो सकता है और यदि वह भ्रम था तो एक साथ दो लोगों को कैसे हो सकता है ?


कोटाल परिवार अब किसी भी कीमत पर उस मकान में रहना नहीं चाहता था। मिसेज़ शर्मा भी मकान बदलने के पक्ष में थी।  

उस दिन सूर्य देवता दोनों परिवारों के लिए आश्चर्य लेकर उदित हुए थे। इससे पहले की शर्मा जी गोपंती बाबू के लड़के अनिल की तलाश में जाते, अनिल अपने पिता की खोज खबर लेने स्वयं ही आ गया।  

होली तथा भाई दूज दो-दो त्यौहार निकल गया और गोपंती बाबू अपनी पत्नी तथा पुत्र से मिलने नहीं गये तब जाकर उसे फिक्र हुई थी।

उसने अपने पिता को आवाज दिया। कुण्डी खटखटाई, खिड़कियों को ठोंका, दरवाजे को पीटा, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। भीतर से इनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। तब तक वहां तमाशाइयों का अच्छा-खासा हुजूम इकट्ठा हो चुका था।  


दरवाजा न खुलने पर अनहोनी की आशंका हुई । कोटाल बाबू तथा शर्मा जी भी भीड़ में शामिल थे तथा तमाशा देख रहे थे। उन्होंने रात को जो देखा तथा अनुभव किया उसे अनिल या किसी और से कहना उन्हें मुनासिब नहीं लगा।

मकान के आसपास रात के मुकाबले बदबू तेज थी। अब तक अनिल को भी किसी अनिष्ट की आशंका हो चुकी थी। किसी ने उसे सलाह दिया कि शायद भीतर आंगन तरफ का दरवाजा कहीं खुला हो ! 

नाक और मुख पर रुमाल बांधकर अनिल तथा एक और लड़का दीवार फांदकर भीतर गये। उधर का भी दरवाजा तथा खिड़की भीतर से बंद थी।  सभी खिड़की-दरवाजों का भीतर से बंद होना तथा वातावरण में फैली तेज दुर्गंध ने सभी को विश्वास करने पर मजबूर कर दिया कि गोपंती बाबू के साथ कोई अनिष्ट हो चुका है।


दरवाजा तोड़ने पर भीतर से गोपंती बाबू की दो दिन पुरानी लाश बरामद हुई। उनका आधा शरीर बिस्तर पर तथा आधा भूमि पर था, हाथ के करीब ही काँच का गिलास लुढ़का हुआ था।

सिरहाने की ओर स्टूल पर आधी प्लेट नमकीन तथा देशी शराब का आधा भरा हुआ अद्धा रखा था। उनकी मौत की वजह प्यास या फिर अधिक मदिरापान था।

गोपंती बाबू की लाश की इस तरह बरामदगी ने कोटाल तथा शर्मा परिवार को हिलाकर रख दिया। यदि वे दो दिन पहले मर चूके थे, तो रात में उन्हें किसने घूरा था। भीतर से बंद खिड़की क्यों कर खुली और दोबारा बंद कैसे हुई ? उसे किसने खोला और बंद किया।  

दहकते लाल सुर्ख आँखों वाला भयानक चेहरा क्या सचमुच गोपंती बाबू का था या परिमल और उन्हें दृष्टि भ्रम हुआ था या फिर उन्होंने सच में गोपंती बाबू के भूत को देखा था। यदि हाँ तो यह कैसे संभव है ?


उपरोक्त प्रश्नों का उत्तर न तो कोटाल बाबू के पास था और न ही शर्मा बाबू के पास। दिवंगत आत्मा के प्रति सम्मान रखते हुए दोनों ने इस मामले में खामोश रहना ही उचित समझा।  

कोटाल परिवार का मकान गोपंती बाबू के मकान से लगा हुआ था, इस कारण उनका मकान बदलना समझदारी भरा निर्णय था किन्तु पाँच ब्लाक दूर होने पर भी शर्मा जी ने पहला मौका मिलते ही मकान बदल लिया। उन्हें जिस तरह का अलौकिक अनुभव हुआ था, उसे देखते हुए यह निर्णय उचित ही था।


इसके बाद गोपंती बाबू वाला क्वार्टर जिस कर्मचारी को अलाट हुआ, उसे विचित्र तथा डरावना अहसास हुआ इससे भयभीत होकर उसने कुछ ही दिनों में क्वार्टर बदल दिया। इसके बाद वहाँ रहने आये दो-तीन परिवारों को भी वहाँ कुछ अटपटा (भूतिहा) अनुभव हुआ।

 इसके साथ ही वह ‘भुतहा मकान’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया था। फिर किसी की हिम्मत नहीं हुई वहाँ रहने की।  

 


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