भविष्य का भय
भविष्य का भय


हाँ हाँ अंत होगा तो ज़रूर पर बीमारी की ऐसी गाज़ गिरी की हर व्यक्ति भीतर तक हिल गया है। आज हम भले मुसीबत के मारे हैं सरकारों ने हमको यूँ बेसहारा छोड़ दिया। पर तुम जान लो हम फिर हिम्मत जुटा कर खड़े होंगे। कह कर बुधई की सिसकी बंध गई। उसकी पत्नी ने भी अपनी आँखें पोंछी।
4 साल की बिटिया ने डेढ़ साल के अपने भाई को कमर से लटका रखा था। जाने कितने किलोमीटर की जत्रा पूरी हुई जाने कितनी बाक़ी है। आसपास के लोगों भीड़ शहर की झोपड़ी से गाँव जाने को निकली तो वो भी चल दिये। बिना काम के बैठ कर कितना दिन खाते। सोनिकल पड़े सबके साथ। आगे पीछे सब रुक कर एक -दूसरे की बाट जोहते दूर से जब अपने लोग नज़र आने लगते तो वो लोग आगे बढ़ जाते।
बिटिया ने पानी मांगा तो एक बोतल से पानी निकाल कर दोनों बच्चों को पिलाया। बच्ची थक गई तो बेटे को उसकी पत्नी ने अपनी गोद में ले लिया। बिटिया पैर पटक कर रो रही थी मेरा पैर दुख रहा है पापा।
चप्पलें थीं पैरों में पर चलते- चलते इतनी घिस गईं की आराम देने वाली चप्पल तकलीफ़देह बन गई थी। उसका आकार बदल जो गया था।
माँ ने उसको कहा थोड़ी देर नंगे पैर चलो फिर पहन लेना बिटिया । गाँव पहुँच के तोरा लिए नवा सैंडिल खरीदवा देंगे। अभी चलो उ देखो सब लोग आगे निकल गए।
मासूम बच्ची ने चप्पल हाथ में थामी और दौड़ पड़ी। उसने आगे चलते अपने पापा से पूछा गाँव कब आएगा दादी के पास जाने में कितना दिन लगेगा पापा।
पापा ने मन बहलाने को कह दिया कि 3-4लग सकता है बिटियाकोई सवारी मिलेगा तो जल्दी पहुँच जाएंगे।
बुधई मन ही मन भगवान से मना भी रहा था कोई सवारी मिल जाये तो सबको कुछ आराम मिल जाये।
कितनी गृहस्थी सजा के बनाई थी और सब छोड़ के 2 बैग में सिमट गई ।
बुधई की बीवी ने कहा ए रनिया के पापा सब कुछ पहिले जैसा हो जाएगा का।
बुधई भी कहाँ जानता था क्या और कैसे होगा। पर वह साहसी मर्द था उसने हिम्मत बधाई देख तू हमरा साथ है न। ई बाल बच्चा सब का और अब गाँव में अम्मा और बाबू हैंसबका जिनगी हम दुन्नो मिल कर सुधारेंगे। अरे ओतना दूर शहर में भी अच्छा कमा खा रहे थे । अम्मा बाबू को भी भेज रहे थे। अब तू घर का खेती संभालना और हम खेती के साथ -साथ कहूँ मज़दूरी भी कर लेंगे। ई बीमारी ने कम में जीना भी सीखा दिया न सब । देख 10 रोटी और 3 बिस्कुट के पानी से इतना दूर आ ही गए।
सरकार भले हम लोग का दुख न देख पा रही पर तोहर सब के हम सरकार हैंअपना भूखा रह के तुम सब को खिलाऊँगाबस हमरी हिम्मत बनी रह तुम। दुःख सुख में तो जीवन निकाला शहर मेंतो ई बीमारी महामारी का चीज है। इससे बच के जिएंगे हम लोग। निराश होने का कौनो ज़रुरत नहीं है जानी के नहीं।
बुधई की बीवी और बिटिया के पपड़ी पड़े हुए ओंठ पैर की बिवाई और फफोले भी दर्द में जैसे मुस्कुरा पड़े। आँखों के सामने घर अम्मा -बाबू और सुनहरे भविष्य की जैसे झलक दिख गई हो उन्हें पर बुधई की आँखों की कोर पर आँसू झिलमिलाने लगे भविष्य का भय उसकी आँखों से होता हुआ उसकी बांहों में समा गया। उसने रुक कर बांहों से उनको पोछ जो लिया।