Satyawati Maurya

Others

4.5  

Satyawati Maurya

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कान इधर देना ज़रा ,,,,

कान इधर देना ज़रा ,,,,

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शशि सुबह की चाय पीने बैठी ही थी,एक सिप लिया दूसरे के लिए कप का कान पकड़ने ही वाली थी कि मोबाइल बज उठा।

उधर सहेली वीणा थी।हैरान - परेशान सी,पति की कारस्तानियां बताने लगी। लव मैरेज किया था दोनों ने।

मैंने कहा,"अरे!अभी तो कुछ ही दिन हुए तुम्हारे विवाह को । कुछ समय दो एक- दूसरे को ;पसंद - नापसंद को समझो।ये क्या लड़ने बैठ गई और दुखी क्यों होती हो?कभी चुप्पी लगा लो तो देखो पतिदेव ढूंढते- पूछते नज़र आयेंगे तुम्हें।"उसे बात जंच गई , ख़ुश हो घर लौटी।


चाय पर नज़र गई, ठंडी हो गई थी।बेसिन में गिरा कर, दोपहर का लंच बनाने की सोच ही रही थी कि सहेली रागिनी आ धमकी उतरा चेहरा लिए।काम एक तरफ़ कर रागिनी को बैठाया। कंधे पर हाथ रखते ही वह फफक कर रो पड़ी।

पता चला गर्भ न ठहरने के कारण सास, ननद ताने मारती रहती हैं।पति उसे प्यार करते हैं,पर मां -बहन को कुछ कह नहीं पाते।


रागिनी को चुप कराया,"तुम लोग दूसरे डॉ को क्यों नहीं दिखाते? हताश-निराश होने की बात नहीं। पति साथ हैं तुम्हारे यह क्या काम है! और मान लो बच्चा न भी हुआ तो,गोद लेने की बात सोचना ,यह च्वाइस भी तो है तुम्हारे पास।"


" ठीक है दीदी",कहती वह मेरे थमाए गिलास से पानी पीकर घर लौट गई,शायद एक उम्मीद लेकर गई वाह वापस।


सोफे़ से उठने ही वाली थी कि एक कलीग का फ़ोन आ गया कि,"बॉस ने तो आज ख़ूब क्लास ली मेरी।ईमानदारी से काम करता हूं,पर उनकी नज़र में नहीं आता। उनको तो चापलूसी करने वाले लोग ही पसंद हैं और मुझे चापलूसी आती नहीं। सोचता हूं कहीं और जॉब देखूं।"


 आश्चर्य से उनसे कहा ,"अरे- अरे रुको ज़रा।जॉब क्यों छोड़ना, सब जगह ऐसे ही लोग मिलेंगे।तुम टिके रहो वहीं।जो काम करते हो पूरी ईमानदारी से करो,बॉस को और दूसरे लोगों को जब तब बताया भी करो अपने काम के बारे में। कभी लोगों से पूछो कुछ ,और कुछ उनको बताओ भी।चापलूसी ज़रूरी नहीं,पर लोगों से अपने काम को ज़रूर डिस्कस करो। भई,कुर्सी पर जो भी हो उसकी इज़्ज़त तो करनी पड़ती है।"


बात उन्हें जंच गई,बोले," थैंक्स ,तुम्हारी बात से बहुत राहत मिला मुझे,अब से मैं यही करूंगा।"


मोबाइल एक तरफ़ रख ब्रेड पर बटर लगा ही रही थी कि पड़ोसन आ धमकी,"ये क्या खा रही हो ! दोपहर में ब्रेड - बटर?"


उसे जब सारी दास्तान सुनाई तो वह बोली,"यार, तुमने तो जैसे सबकी बात सुनने का ठेका ले रखा है।जिसे देखो तुम्हें अपना दुखड़ा सुनाता रहता है।क्या तुम बोर नहीं होती लोगों का रोना - धोना और उनकी परेशानियां सुन कर।कैसे सुन लेती हो? रिटायर हो कर भी ख़ूब में बिजी रहती हो।"


मैंने हंस कर कहा,"मैडम आजकल सुनने वाले कान कहां रहे,सबको बस अपनी रामकहानी सुनानी होती है।पता है अगर किसी की बात को हम लोग कान धर कर सुन लें न,तो लोगों की आधी बीमारी,परेशानी,हताशा यूं ही चुटकी बजाते ग़ायब हो जाए।मुंह के साथ कान का रिश्ता कितना गहरा है ये दिल और दिमाग़ से पूछो तो जानो। अच्छा, बहुत हुई बातें ,बहुत तेज़ भूख लगी है ।अब तुम मुझे अपना कान दो और कुछ बना कर खिलाओ मेरा भूखा मन शांत हो!"हम दोनों एक- दूसरे को देख खिलखिला कर हंस पड़े।



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