ये कैसा प्यार,,,,
ये कैसा प्यार,,,,


मेरे मायके में यह बात मानी हुई है कि बाहर का कुछ कम हो या हॉस्पिटल का तो, सरगम को कह दो।
दरअसल कोई बीमार हो घर या हॉस्पिटल में तो मुझे उनकी तीमारदारी करना अच्छा लगता । मम्मी का ऑपरेशन यूटरस रिमूवल का था, तो मैं ही रही हॉस्पिटल में, भाभी थीं पर उनकी बच्ची अभी छोटी थी। लेडीज़ के पास लेडीज़ ही रुक सकती है, का नियम भी तो है।
अब कठोर कलेजे की थी मैं या दया भाव मुझे प्रेरणा देता था,यह तो ऊपर वाला ही जाने।
साल भर पहले की बात है, पड़ोसन को डिलीवरी होनी थी, जब दर्द शुरू हुआ तो उसका पति मुझे ले गया। आंटी आप पढ़े -लिखे हो तो साथ में चलो। मुझे तो कुछ समझ नहीं आएगा, अकेले क्या करूँगा? रात के 7 बजे गई उसके साथ । दर्द से पड़ोसन का हाल बेहाल था । थोड़ी- थोड़ी देर में उसे लेबर रूम में ले जाकर चेक करते फिर कहते अभी टाइम है।
वह फिर रूम में आ जाती । कभी बेड पर तो कभी कमरे में टहलने लगती।
मैं उसके साथ लगी हुई थी। डॉक्टर,नर्सों से पूछती सब ठीक तो है न। वे भी आश्वस्त करते मैडम सब ठीक है। नॉर्मल डिलीवरी होगी। क़रीब 9 बजे उसको फिर भीतर ले गये।
बाहर मैं और पड़ोसन का पति चहलकदमी कर रहे थे। थक जाने पर उसके रूम में कुर्सी पर बैठ गई।
आधा घण्टा बीता की एक 19-20 साल की लड़की जो गर्भवती थी आई।
फ़टाफ़ट उसका पेपर बना और पड़ोसन के बगल वाली कॉट पर वह आ गई। कभी लेटती कभी दर्द बढ़ने पर चिल्लाती । फिर किसी तरह गिलास से दो घूंट पानी पीकर लेट जाती।
मुझसे उसका दर्द देखा नहीं जा रहा था, उससे पूछा बेटा तुम्हारे साथ कौन आया है?
तुम्हारा पति कहाँ है।
उसने मेरा चेहरा देखा और बोली मेरे साथ कोई नहीं है आंटी, पति बाहर है।
वह ज़्यादा बात नहीं कर रही थी।
मुझे दया आ गई उसे चाय मंगवा कर दिया,इंकार किया उसने, पर ज़ोर दिया तो चाय के साथ कुछ बिस्कुट्स खा लिया ।
वह करवट ले कर लेट गई पर रह -रहकर कराह रही थ
ी।
मैंने फिर इमरजेंसी रूम में जाकर देखा पड़ोसन अभी भी दर्द सहती इधर -उधर टहल रही थी। मैं रूम में वापस आ गई।
मैं कुर्सी पर न बैठ कर उस लड़की के बेड पर जाकर बैठ गई। धीरे -धीरे उसकी कमर को सहलाने लगी। उसने मेरी ओर देखा और थैंक्यू कहा। क़रीब घण्टे भर तक मैं उसको सहलाती, उठने,-बैठने में उसकी सहायता करती रही। अपनी पड़ोसन को भी दो बार जाकर देखा। इस सबमें रात के ग्यारह बजे गए । डॉक्टर ने बताया कि पड़ोसन की डिलीवरी सुबह ही होगी आप जाकर आराम करो कहा।
मैं घर में अपनी चार साल की बेटी और उसके बड़े भाई को छोड़कर आई थी। तो पड़ोसी से कहा मैं घर जाती हूँ बच्चे अकेले हैं। अभी डिलीवरी में टाइम है ऐसा डॉक्टर ने बताया। ज़रूरत होगी तो फ़ोन करना, नहीं तो सुबह 8 बजे तक मैं आ जाऊंगी ।
रिक्शे से अकेले ही घर आ गई।
पर रात भर वह बच्ची मेरे ख्यालों में रही, उसके दर्द और कराह की आवाज़ से परेशान होती न जाने कब मेरी आँख लगी।
सुबह फिर हॉस्पिटल गई तो देखा पड़ोसन की बगल में गोलमटोल- सा बच्चा सफ़ेद नरम कपड़े में लिटाया हुआ है। पता चला लड़की है । दोनों पति - पत्नी को बधाई दी। दोनों बहुत ख़ुश थे।
तभी मैंने उस बेड को ख़ाली देखा जिस पर वह लड़की, शायद सपना नाम बताया था उसने।
पड़ोसन से उत्सुकतावश पूछा, वो लड़की डिलीवरी रूम में गई है क्या?
पड़ोसन ने कहा, आंटी मेरी बेटी तो छ बजे सुबह हुई और उसका बच्चा तो आपके जाने के आधे घण्टे बाद ही हो गया। लड़का हुआ था।
मैंने पूछा तो गए कहां दोनों।
इस पर उसने बताया वो लड़की अनाथ थीं, बगल के अनाथालय में रहती थी।
कहीं काम करने जाती थी, वहीं एक लड़के से प्यार हुआ और फिर ये बच्चा।
लड़का तो इसके प्रगनेंट होते ही भाग गया। आश्रम वालों ने दूसरे अनाथालय में बात करके बच्चा उनको वहाँ दे दिया, जहाँ से उसे किसी को गोद दे दिया जाएगा और लड़की अपने अनाथ आश्रम में चली गई।