भूख की निशानदेही
भूख की निशानदेही


वर्तमान में पूरे विश्व में फैली कोरोना महामारी और सरकारी लॉकडॉउन, दोनों ने सभी को बेहाल कर रखा है।किसी की रोज़ी गई,किसी की रोटी तो किसी के सिर से छत भी छिन गई।
फिर वो मज़दूर भला इस शहर से क्या वास्ता रखते।मुलुक से आये और शहर को अपना बना लिया, पर शहर ने उन्हें नहीं अपनाया।
क्या करते चल पड़े सब अपनी जड़ों की ओर!पैदल ही,पर कितना चलते?इंसान भी हैं,थकने लगे,साँसें उखड़ने लगीं।स्लीपर और जूतों ने पैरों में पहले घाव दिए,फिर वे फफोले बन कर टीस देने लगे।
सो बैठ गए रेल की पटरी पर।रोटी खाकर पानी पीया और आगे की जत्रा के लिए हिम्मत मिले,इसलिए वहीं लेट भी गए।ऐसी थकान लगी थी कि लेटते ही ऐसी सुखद नींद आई कि मालगाड़ी ने उन्हें इस लोक से उस लोक की यात्रा पर भेज दिया, बिना इसी आहट और टिकट के।
बचे रह गए पटरी पर उनके शरीर के लोथड़े,बैग,स्लीपर,जूते,उनकी पहचान कराते काग़ज़ात और चंद रोटियाँ।कार्रवाई के लिए जितना अंश पुलिस उठा पाई ले गई,पर बची रह गईं कुछ रोटियाँ, भूख की निशानदेही करती।
अचानक एक कुतिया इस ओर निकल आई,कुछ अनघटित को सूंघते -सूंघते।
रुक गई रोटियों के पास आकर, इधर -उधर देखा उसने ।कहीं कोई दुत्कारते न लगे इस भय से।
तभी कूं- कूं की आवाज़ ने उसे हिम्मत दी और वह दो -चार रोटी मुँह में दबा, आँखों में कृतज्ञता का भाव लिए दौड़ पड़ी अपने बच्चों की ओर।